विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग ने हाल ही में बताया कि खगोलविदों ने भारतीय सैटेलाइट ‘एस्ट्रोसैट’ की सहायता से मिल्की वे आकाशगंगा में तारों के एक विशाल क्लस्टर की खोज की है। इन तारासमूहों को ‘ब्रह्माण्ड का डायनासौर’ कहा जाता है। पहले भी ऐसे क्लस्टर्स ब्रह्माण्ड में पाए गए हैं लेकिन इस क्लस्टर में कई दुर्लभ गर्म यूवी-चमकीले तारे हैं। ऐसे तारे ब्रह्माण्ड में बहुत कम ही देखे गए हैं। भारत के विज्ञान और तकनीकी विभाग ने इस खोज के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि इस क्लस्टर में बहुत कम पाए जाने वाले ऐसे तारे हैं जो गर्म पराबैंगनी विकिरणों से चमकते हैं। ये तारे बहुत ही गर्म होते हैं जिस कारण इन तारों का केंद्र लगभग खुला हुआ है। इस तरह के तारे सूर्य जैसे तारे के विकास के अंतिम चरण में मौजूद होते हैं। इसलिए यह खोज भारतीय खगोलविदों एवं एस्ट्रोसैट के लिए बड़ी उपलब्धि है।
क्या है एस्ट्रोसैट?
एस्ट्रोसैट भारत की पहली समर्पित बहु तरंगदैर्घ्य अंतरिक्ष वेधशाला है। यह वैज्ञानिक उपग्रह मिशन हमारे ब्रह्मांड को अधिक विस्तृत समझने का प्रयास है। एस्ट्रोसैट मिशन की अनूठी विशेषताओं में से एक यह भी है कि यह उपग्रह अकेला ही विभिन्न खगोलीय वस्तुओं का समकालिक बहु-तरंग दैर्घ्य अवलोकन करने में सक्षम है।
एस्ट्रोसैट ऑप्टिकल, पराबैंगनी, निम्न और उच्च ऊर्जा विद्युत चुम्बकीय वर्णक्रम के एक्स-रे क्षेत्रों में ब्रह्मांड का अवलोकन करता है, जबकि अधिकांश अन्य वैज्ञानिक उपग्रह तरंगदैर्घ्य बैंड के सीमित दायरे के अवलोकन के लिए सक्षम हैं। एस्ट्रोसैट की बहु तरंगदैर्घ्य अवलोकनों को आगे समन्वित अन्य अंतरिक्ष यान और भू आधारित अवलोकनों का उपयोग कर बढ़ाया जा सकता है। सभी प्रमुख खगोल विज्ञान संस्थान और भारत में कुछ विश्वविद्यालय इन अवलोकनों में भाग लेते हैं।
एस्ट्रोसैट मिशन के वैज्ञानिक उद्देश्य:
1. न्यूट्रॉन तारे और ब्लैक होल युक्त द्विआधारी स्टार सिस्टम में उच्च ऊर्जा प्रक्रियाओं को समझना।
2. न्यूट्रॉन तारे का चुंबकीय क्षेत्र का अनुमान लगाना।
3. हमारी आकाशगंगा के बाहर स्थित स्टार जन्म क्षेत्रों और स्टार सिस्टम में उच्च ऊर्जा प्रक्रियाओं का अध्ययन करना।
4. आकाश में नए अल्पावधि उज्ज्वल एक्स-रे स्रोतों का पता लगाना।
5. पराबैंगनी क्षेत्र में ब्रह्मांड के सीमित गहण क्षेत्र का सर्वेक्षण करना।