ई सिवान है- सिवान का विदेशी कनेक्शन

अनूप नारायण सिंह, वरिष्ठ पत्रकार की रिपोर्ट
बीस से ज्यादा कोरोना पॉजिटिव मरीज मिलने के बाद दुनिया भर में चर्चा के केंद्र में आए बिहार के सिवान जिले की कहानी भी अजीब है.कभी विदेशों से संपन्नता कमा कर आने वाले लोग इस बार मौत की सौगात लेकर आएं है. पिछले महीने सिवान गया था एक राष्ट्रीय टीवी चैनल के लिए स्टोरी करने स्टोरी का सब्जेक्ट भी था कमासुत परदेशी सिवान के कई सारे गांव में जाने का मौका मिला.पंजवार भी गया था. पंजवार को भारत का बुहान बताया जा रहा है जहां सबसे ज्यादा मरीज मिले हैं.सिवान की बड़ी आबादी कई दशकों से खाड़ी के देशों में रह रही है। बाहर गए लोगों ने अपनी मेहनत की कमाई से यहां की मिट्टी को सोना बनाने का जो संकल्प कभी लिया था वह अब यहां साफ दिखता है। संपन्नता यहां शहर की गलियों से लेकर गांव की पगडंडियों तक दिखती है। यह खाड़ी के पैसे का असर तो है ही, बाहर अपनी मेहनत से नाम कमा रहे लोगों की यहां की मिïट्टी के प्रति मोह को भी दर्शाता है।दूसरे जिलों में जहां गांव छोड़कर शहर में बसने की होड़ है, सिवान में ग्र्राम्य संस्कृति का असर साफ दिखता है। हजारों मील की दूरी तय कर लोग सीधे गांव आते हैं। व्यावसायिक मजबूरी में भी जिन लोगों ने गांव छोड़ शहर में रहना शुरू किया वे भी हर मौके पर गांव में दिखते हैं।जिले के चाहे जिस इलाके में जाएं, ऊंची हवेलीनुमा इमारतें दिखती हैं। ये बाहर बसे लोगों की मेहनत और गांव के प्रति उनके लगाव की मिसाल हैं। अपनी मिïट्टी के प्रति मोह का ही असर है कि दशकों तक खाड़ी देशों में रहने वाले भी सिवान में रहने की बजाय अपने गांव में रात बिताना ज्यादा पसंद करते हैं। इसी कारण यहां गांवों की इमारतें शहरों से मुकाबला करती दिखती हैं। हुसैनगंज, बड़हरिया, महाराजगंज, पचरुखी, हसनपुरा, दारौंदा, दरौली, रघुनाथपुर, सिसवन जैसे प्रखंडों में एक नहीं दर्जनों गांव ऐसे हैं जहां की इमारतें आंखें चुंधिया देती हैं।
विदेशों में बसे लोगों ने यहां की आर्थिक स्थिति को पूरी तरह बदल दिया है। यहां की पूरी अर्थव्यवस्था को कभी मनीआर्डर इकोनॉमी कहा जाता था। यह स्थिति आज भी है। यहां वेस्टर्न मनी यूनियन और इस जैसी अन्य संस्थाओं के जरिए हर दिन लाखों की आवक होती है।
जब सीधे बैंक से लेनदेन होता था, सिवान जिले की बड़हरिया प्रखंड मुख्यालय स्थित कैनरा बैंक को ग्र्रामीण इलाकों में देश का सबसे धनी बैंक होने का खिताब हासिल हुआ था। इस प्रखंड के सिसवा, माधोपुर, छक्का टोला, भादा, बहादुरपुर, लकड़ी दरगाह, करबला, बालापुर , महमदा बाद जैसे गांवों की तस्वीर दस पंद्रह साल में बिल्कुल बदल गई है।अमूमन यह माना जाता है कि खाड़ी देशों में जाने वालों में मुस्लिम ही होते हैं पर सिवान के लोगों ने यह मिथक भी तोड़ा है। यहां मुस्लिम के साथ हिंदू युवक भी बड़ी संख्या में बाहर गए हैं। एक ही गांव के दर्जनों हिंदू-मुस्लिम युवक बाहर जाकर वहां भी अपनी संस्कृति को यथासंभव जीवंत रखने की कोशिश करते हैं। सद्भाव का यह नजारा गांवों में साफ दिखता है।

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