दिल्ली डायरी:न देखा न सुना होगा ऐसा म्यूजियम

कमल की कलम से!
आज की सैर एक विशिष्ट संग्रहालय की.
पुस्तकों,हथियारों,कलाकृतियों और चित्रों के संग्रहालय तो आपने बहुत देखे होंगे मगर क्या आपने कभी शौचालयों का संग्रहालय देखा है?
आज हम आपको लिये चलते हैं एक ऐसे अनोखे ‘शौचालय संग्रहालय’ को जिसे “टाइम्स” ने दुनियाँ के 10 अनोखे संग्रहालयों में शामिल किया है.
बड़ी अजीब बात है कि दिल्ली के सुलभ ग्राम,महावीर एन्क्लेभ,पालम डाबड़ी रोड में स्थित इस संग्रहालय को दिल्ली के लोग भी नहीं जानते हैं.

आपको बता दें कि दुनियाँ को शौचालय की सोच देने वाला देश हमारा भारत ही है.

तस्वीरों के माध्यम से ये दर्शाया गया है कि करीब 2500 ईशा पूर्व हड़प्पा संस्कृति के लोग शौचालय का प्रयोग करते थे.

इस संग्रहालय में दुनियाँ के करीब 60 देशों में प्रयुक्त होने वाले टॉयलेट शीट प्रदर्शित है या दर्जनों देशों के टॉयलेट सीटों के चित्र फ्रेम में जड़े हुए हैं.
अब आपको बता दें कि सुलभ इंटरनेशनल सामाजिक सेवा संगठन की स्थापना डा. बिंदेश्वर पाठक द्वारा वर्ष 1970 में की गई. यह राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त सबसे बड़ी अखिल भारतीय सामाजिक सेवा प्रदान करने वाली संस्था है,जिसमें 50,000 से ज्यादा स्वयंसवेक कार्यरत हैं, जो मानव अधिकारों, पर्यावरण,स्वच्छता,जागरूकता अभियान के माध्यम से सामाजिक सुधारों के लिए काम कर रहे हैं.
इसने मैला ढोने से मुक्त एक दोहरा गड्ढ़े वाला फ्लश शौचालय(सुलभ शौचालय)का विकास किया है।

यहाँ फ़्रांस के सम्राट लुई तेरहवें के राजगद्दीनुमा शौचालय से लेकर महारानी विक्टोरिया के शौचालय की अनुकृति मौजूद है, जिसमें हीरे-जवाहरात लगे हैं.
इस राजगद्दीनुमा कुर्सी के नीचे लगे शौचालय के बारे में बताया गया कि “दुनिया की यह इकलौती राजगद्दी होगी जिसमें शौचालय लगा है.”
लुई तेरहवें के बारे में कहा जाता है कि वह मंत्रियों के साथ गहरे विचार-विमर्श के बीच भी ज़रूरत पड़ने पर शौच कार्य करने लगते थे.

यूरोप और फ्रांस के कई शौचालय और उनके चित्र यहाँ मौजूद हैं.कुछ शौचालय किताबों की शक्ल में हैं तो कुछ मेज़ की तरह.

बुकशेल्फ़ के आकार का भी एक शौचालय है जिसे देखकर अंदाज़ा लगाना मुश्किल है कि ये शौचालय भी हो सकता है.
संग्रहालय में ऐसे भी शौचालय हैं जो किताब की शक्ल के हैं.
संग्रहालय में यूरोप में प्रयोग होने वाले’रासायनिक शौचालय’ हैं.
इसमें मल की सफ़ाई रसायनों से होती है.ये ऐसा शौचालय है जिसे यात्रा पर भी ले जाया जा सकता है.
संग्रहालय में अब तक का सबसे आधुनिक शौचालय भी मौजूद है, जिसे 1993 में अमरीका ने बाज़ार में उतारा था.
इंसिनोलेट नाम का ये शौचालय माइक्रोवेव ओवन के सिद्धांत पर काम करता है.इसमें मल की सफ़ाई के लिए पानी की ज़रूरत ही नहीं पड़ती.
बिंदेश्वरी पाठक जब लंदन गए थे तो मैडम तुसॉद का वैक्स म्यूज़ियम देखा.उसी से उन्हें अनोखा संग्रहालय बनाने की प्रेरणा मिली.

इसके कैम्पस में बायो गैस बनाकर उस से बिजली पैदा किया जाता है.इस से लैम्प जलाया जाता,आग जलाया जाता या रसोई घर का चूल्हा जलाया जाता है.ये सभी यहाँ प्रदर्शित हैं.
बताते चलें कि पटना में 1978 में जब हर मुख्य जगहों पर सुलभ शौचालय बनबाया गया था तो सिर्फ 10 पैसे शुल्क चुका कर इसका प्रयोग किया जाता था.
आधुनिक भारत में शौचालय को सोच की दिशा देनेवाले और घर घर तक सुलभ शौचालय पहुंचाने वाले,शौच क्रांति के जनक,आदरणीय पाठक जी भारत रत्न के हकदार हैं.
यहाँ पहुँचना बहुत आसान है । यह मेट्रो से भी जुड़ा हुआ है.निकटवर्ती मेट्रो स्टेशन दशरथपुरी है.
नई दिल्ली स्टेशन से 77 नम्बर की बस यहाँ से गुजर कर मंगलापुरी तक जाती है. 947,772,801,741 नम्बर की बस भी यहाँ से गुजरती है.
एयरपोर्ट से इसकी दूरी 8 किलोमीटर है.
यहाँ तक आने के लिए हर पॉइंट से ई रिक्शा उपलब्ध है.

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