कमल की कलम से
रहस्यमयी जगहों की कड़ी में हमने पिछले लेख में आपकी सैर जमाली कमाली की करवाई थी। ऐसे ही एक और जगह की तलाश में मुझे पता चला , रहस्य से भरे हुए ‘ पीर ग़ैब ‘ की। बीच दिल्ली में ऐसी भी कोई एक जगह है इसे दिल्ली बाले भी नहीं जानते हैं।
ऐसा कहा जाता है कि एक दिन एक पीर (सूफी संत) इस इमारत के अंदर ध्यान कर रहे थे लेकिन कभी बाहर नहीं आये। लोगों का कहना है कि वह इमारत से बिना किसी निशान के गायब हो गये। यही कारण है कि वे इस जगह को पीर ग़ैब (जहां संत गायब हो गए) कहने लगे। और यह जगह पीर गायब के नाम से जाना जाने लगा।
क्या यह महज एक संयोग है कि दिल्ली में एक और रहस्यमयी जगह , मालचा महल भी उसी युग का एक शिकारगाह था ?
उत्तरी रिज के पास बाड़ा हिन्दू राव अस्पताल के अहाते में अनगढ़े पत्थरों से निर्मित जर्जर स्मारक है। इस दो मंजिले स्मारक में दो संकरे कमरे हैं। इसकी दूसरी मंजिल पर भी दो कमरे हैं। इसके उत्तरी कमरे में एक स्मारक है जिसमें कब्र है।
यह कब्र किसकी है इस बारे में कोई प्रमाणिक जानकारी नहीं है। लेकिन इस कमरे को एक पीर प्रार्थना स्थल की तरह इस्तेमाल किया करते थे। लेकिन बाद में वो फकीर रहस्यमय तरीके से गायब हो गए। इसलिए इस स्मारक को लोग पीर गायब भी कहते हैं।
कहते हैं कि इसे चौदहवीं शताब्दी में फिरोज शाह तुगलक ने अपने शिकार लॉज के एक हिस्से के रूप में बनाया था। क्योंकि यह क्षेत्र रिज जंगलों का हिस्सा था और इसमें बहुत सारे खतरनाक जंगली जानवर भरे हुए थे।
दिलचस्प बात यह है कि यह एक वेधशाला के रूप में भी काम करता था। यह निचली मंजिल की छत और दूसरी मंजिल की छत में खुदे हुए छेदों से देखा जा सकता है। इस छेद को ढकने के लिए एक छतरी या एक आवरण भी होता है।
इस स्मारक के दक्षिणी कमरे के फर्श और छत को भेदता हुआ एक सुराख है जो एक खोखली चिनाई में गोलाकार है। इससे संभावना जताई जा सकती है कि इस कमरे का इस्तेमाल खगोलीय घटनाएं जानने के लिए किया जाता होगा। तुगलक काल में बने शिकारगाह की तरह इसकी बनावट भी शिकारगाह की है। इसलिए इसका इस्तेमाल एक शिकारगाह की तरह भी किया जाता रहा होगा। ऐसा इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि यह भी कुश्के जहांनुमा (शिकार गाह) का हिस्सा है।
अब यह स्मारक बेहद जर्जर हालत में है लेकिन शेष बचे हुए स्मारक को देखकर कहा जा सकता है कि कभी यह भव्य इमारत रही होगी।
आप सीढ़ियाँ चढ़ सकते हैं और ऊपरी मंजिल तक पहुँच सकते हैं। परन्तु ऊपर चढ़कर आपको निराशा ही हाथ लगेगी क्योंकि वहाँ आपको दीवारों पर प्रेमी प्रेमिकाओं के लिखे स्लोगन के अलावा और कुछ नहीं मिलेगा।
यहाँ एक बावली भी है जो आज पेड़ों से ढका हुआ है और इसमें दरारें पड़ गई है। परन्तु इस कुएँ में कुछ पानी आज भी मौजूद है। इसकी कहानी 1857 के ग़दर से भी जुड़ी हुई है। 1857 के विद्रोह के दौरान ब्रिटिश अधिकारियों और सैनिकों के लिए यह पानी का एकमात्र स्रोत था। कहा जाता है कि ब्रिटिश सेना को डर था कि सेना में कार्यरत भारतीय सिपाही उसके पानी में जहर घोल देंगे, इसलिए इस क्षेत्र में स्थायी रूप से एक गार्ड तैनात कर दिया गया था।
यहाँ के निवासी बताते हैं कि बावली में मूल रूप से एक सुरंग भी थी जो अब नहीं है।
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि पीर ग़ैब केवल शिकारगाह नहीं था बल्कि एक खगोलीय वेधशाला थी। उनका मानना है कि शीर्ष पर अजीबोगरीब, बेलनाकार संरचना एक जेनिथ ट्यूब थी जिसका उपयोग विभिन्न गणनाओं के लिए किया जाता था।
लेकिन जैसा कि इसके बारे में कोई प्रामाणिक दस्तावेज उपलब्ध नहीं है तो शायद हमलोग निश्चित रूप से कभी नहीं जान पाएंगे कि आखिर यह है क्या।
कैसे पहुँचें ?
निकटतम मेट्रो स्टेशन रेड लाइन पर तीस हजारी है।
जहाँ से आप ई रिक्शा लेकर यहाँ पहुँच सकते हैं।
चूँकि यह अस्पताल कैम्पस में स्थित है तो बस आपको हिंदू राव अस्पताल पहुंचने की जरूरत है।
बस स्टैंड से आप यहाँ पैदल चलकर भी पहुँच सकते हैं।
बस नम्बर 212 यहाँ से गुजरती है।
721 , 883 , 813 , भी उपलब्ध है।