धरोहर – दरभंगा के महाराज का यह किला उत्तर बिहार के दुर्लभ और आकर्षक इमारतों में से एक है

धरोहर – दरभंगा के महाराज का यह किला उत्तर बिहार के दुर्लभ और आकर्षक इमारतों में से एक है

दरभंगा बस स्टैंड के समीप स्थित दरभंगा राज का किला , सामने वाली सड़क से गुजरने वालों का ध्यान बरबस ही खीच लेता हैं । दरभंगा के महाराज का यह किला उत्तर बिहार के दुर्लभ और आकर्षक इमारतों में से एक है ।

भारत सरकार के पुरातत्व विभाग ने 1977-78 में इस किले का सर्वेक्षण भी कराया था , तब इसकी ऐतिहासिक महत्वता को स्वीकार करते हुए किले की तुलना दिल्ली के लाल किले से की थी । ये जो राज का किला है, दिल्ली के लाल किले से कम नहीं है। फर्क बस यह है कि लाल किले का रख-रखाब किया जाता है और राज किले का नहीं।

किले के अन्दर रामबाग पैलेस स्थित होने के कारण इसे ‘ राम बाग़ का किला’ भी कहा जाता है । वैसे दुखद बात यह है की दरभंगा महाराज की यह स्मृति है अब रख – रखाव के अभाव में एक खंडहर में तब्दील हो रहा है । शहर की पहचान के रूप में जाने वाले इस किले की वास्तुकारी पर फ़तेहपुर सीकरी के बुलंद दरवाजे की झलक मिलती है ।

किले के निर्माण से काफी पूर्व यह इलाका इस्लामपुर नामक गाँव का एक हिस्सा था जो की मुर्शिमाबाद राज्य के नबाब , अलिबर्दी खान , के नियंत्रण में था । नबाब अलिबर्दी खान ने दरभंगा के आखिरी महाराजा श्री कामेश्वर सिंह के पूर्वजों यह गाँव दे दिया था ।

इसके उपरांत सन 1930 ई० में जब महाराजा कामेश्वर सिंह ने भारत के अन्य किलों की भांति यहाँ भी एक किला बनाने का निश्चय किया तो यहाँ की मुस्लिम बहुल जनसँख्या को जमीन के मुआवजे के साथ शिवधारा , अलीनगर , लहेरियासराय- चकदोहरा आदि जगहों पर बसाया।

रामबाग कैम्पस चारों ओर से दीवार से घिरा हुआ है और लगभग 85 एकड़ जमीन में फैला हुआ है

किले की दीवारों का निर्माण लाल ईंटों से हुई है । इसकी दीवार एक किलोमीटर लम्बी और करीब ५०० मीटर चौड़ी है । किले के मुख्य द्वार जिसे सिंहद्वार कहा जाता है पर वास्तुकला से दुर्लभ दृश्य उकेड़े गयें है । किले के भीतर दीवार के चारों ओर खाई का भी निर्माण किया गया था। उसवक्त खाई में बराबर पानी भरा रहता था । ऐसा किले और वस्तुतः राज परिवार की सुरक्षा के लिए किया गया था ।किले की दीवार काफी मोटी थी ।

दीवार के उपरी भाग में वाच टावर और गार्ड हाउस बनाए गए थे ।महाराजा महेश ठाकुर के द्वारा स्थापित एक दुर्लभ कंकाली मंदिर भी इसी किले के अंदर स्थित है । जैसा की हमने बताया था की महाराजा महेश ठाकुर को देवी कंकाली की मूर्ति यमुना में स्नान करते समय मिली थी । प्रतिमा को उन्होंने लाकर रामबाग के किले में स्थापित किया था ।

यह मंदिर राज परिवार की कुल देवी के मन्दिर से भिन्न है और आज भी लगातार श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करती है ।

दरभंगा राज वस्तुतः एक बेहद समृद्ध जमीदारी व्यवस्था थी , किन्तु , औपचारिक रूप से राजाओं का दर्जा नहीं होने की बात महाराजा कामेश्वर सिंह को यह बात अक्सर खटकती रहती थी । इतिहास के बदलते घटनाक्रम में जब देश की तत्कालीन अंग्रेज सरकार ने यह तय किया की वह दरभंगा महाराज श्री कामेश्वर सिंह को ‘ नेटिव प्रिंस’ की उपाधि देगी तो इसका अर्थ यह निकाला गया की उस स्थिति में दरभंगा राज एक ‘ प्रिंसली स्टेट’ अर्थात एक स्वतंत्र राजशाही बन जाएगी ।

इस ऐतिहासिक क्षण की याद में दरभंगा राज किले का निर्माण 1934 ई० में आरम्भ किया गया । किले के निर्माण के लिए कलकत्ता की एक कम्पनी को ठेका दिया गया । किन्तु जब तीन तरफ से किले का निर्माण पूर्ण हो चूका था और इसके पश्चिम हिस्से की दीवार का निर्माण चल रहा था कि भारत देश को अंग्रेजी हुकूमत से आजादी मिल गयी ।

भारत में तब सत्ता में आयी नयी सरकार ने ‘प्रिंसली स्टेट’ और जमींदारी प्रथा बंद कर दी । फलस्वरूप, अर्धनिर्मित दीवार जहाँ तक बनी थी , वहीँ तक रह गयी और किले का निर्माण बंद कर दिया गया ।

महाराजा कामेश्वर सिंह की मृत्यु के बाद उनके उत्तराधिकारियों ने रामबाग़ परिसर की कीमती जमीन को बेचना शुरू कर दिया ।देखते ही देखते जमीन खरीदने वालों ने भी अपने -अपने मकान बना कर कालोनियों का निर्माण कर लिया और आलीशान होटल एवं सिनेमा घर की भी स्थापना हो गयी। किन्तु इस सबके बावजूद दरभंगा का राज किला आज भी दरभंगा अपितु सम्पूर्ण मिथिलांचल के लिए एक आकर्षण का केंद्र बना हुआ है । जिला प्रशासन एवं पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को इस एतिहासिक विरासत की सुरक्षा और सरंक्षण का जिम्मा उठाना चाहिए।

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