कोरोना काल में बच्‍चों का मनोभाव समझना बेहद जरूरी, खुद को बदलकर करने होंगे ये उपाय

कहावत है ‘बच्‍चे मन के सच्‍चे’, यही वजह है कि वे अपनी भावनाओं को बहुत लम्‍बे समय तक दबाकर नहीं रख पाते हैं। वे जैसा अ‍नुभव करते हैं, वही बोल भी देते हैं। यह भी सत्य है कि बच्चों के मुस्कुराते हुए चेहरे बेहद प्यारे लगते हैं। मगर गंभीर बात यह है कि कोरोना महामारी का सबसे अधिक प्रभाव इन्हीं बच्चों को झेलना पड़ा है। जी हां, कोरोना काल में इनके ऊपर सबसे बड़ा संकट खड़ा हो गया है और वह है अपनी अभिव्‍यक्‍ति को खुलकर मूर्तरूप देने की आजादी का छिन जाना। दरअसल, लॉकडाउन में नन्हे-मुन्ने घरों में लॉक हैं। बड़े लोगों ने तो वक्त की नजाकत को समझते हुए अपनी दिनचर्या बदल ली, लेकिन इन बच्चों के स्वभाव पर इसका खासा असर देखा जा रहा है। आइए अब विस्तार से जानते हैं इन गंभीर समस्याओं के बारे में और इन्हें दूर करने के उपायों के बारे में…

बच्चों में समय रहते ऐसे बदलाव होने से रोकना बेहद जरूरी 

वास्‍तव में पहले खुले मैदान में दोस्‍तों के बीच, स्‍कूल की पाठशाला में या विद्यालय के किसी कौने में इनके लिए अपनी बातें रखना आसान था, लेकिन अब कोरोना के चलते लम्‍बे लॉकडाउन के बीच घरों तक सीमित हो जाने से इनके अंदर का भाव खुलकर कहीं व्‍यक्‍त नहीं हो पा रहा है। माता-पिता से भी ये बच्‍चे अपने मन की हर बात कहने में संकोच करते हैं, ऐसे में इनके भीतर कहीं चिड़चिड़ापन या अवसाद के गुण पनपने लगे हैं, जिन्‍हें आज समय रहते नहीं रोका गया तो आनेवाले वक्‍त में यह हमारे नन्‍हें-मुन्‍नों के लिए बहुत ही घातक हो जाएगा। इस विषय में बाल मनोचिकित्‍सक क्‍या कहते हैं आइए जानते हैं।

बच्‍चों के साथ बातचीत में प्रेम का व्‍यवहार जरूरी 

राष्‍ट्रपति सम्‍मान प्राप्‍त प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक डॉ. राजेश शर्मा बताते हैं कि संवेदना के स्‍तर पर बच्‍चे बहुत कोमल मन होते हैं, यह समय बच्‍चों को सदैव प्‍यार देते रहने का है। कई बार माता-पिता की मजबूरियों को बाल मन नहीं समझ पाता, परिवार जन की डांट उनके मन पर नकारात्‍मक असर डालती है और यह उनके विकास को रोकने का भी कारण बनती है। इसलिए यह जरूरी है कि कोरोना के इस संकट में परिवार के हर सदस्‍य बच्‍चों के साथ बातचीत में प्रेम का व्‍यवहार करें। यदि उनसे कोई गलती हो भी जाए तो कोशिश यही रहे कि कैसे उन्‍हें ज्‍यादा से ज्‍यादा प्‍यार से समझाया जा सकता है।

बच्‍चों को चलने दें उनके बायलॉजिकल शेड्यूल से 

खासकर बच्‍चों के मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य पर पिछले 25 वर्षों से काम कर रहे मनोवैज्ञानिक डॉ. राजेश कहते हैं कि दुनिया भर में कोरोना वायरस को लेकर जो स्थितियां बनी हैं, उससे बच्चों के दिमाग में बहुत कुछ चल रहा है। एकदम से उनका रूटीन भी बदल गया है। कइयों ने अपने माता, पिता या दोनों को ही खो दिया है, स्कूल बंद है और बाहर खेल भी नहीं सकते। स्‍वभाविक है इन परिस्‍थ‍ितियों में उनके अंदर चिड़चिड़ा पन बढ़ रहा है। ऐसे में उन्हें उनके बायलॉजिकल शेड्यूल के अनुसार चलने दें। जबरदस्ती उनके लिए नया शेड्यूल और काम तय करने से बचे।

पीसी, टैब से हटकर निकालें बच्‍चों के लिए समय 

उन्‍होंने बताया कि हाल ही के दिनों में बच्‍चों के मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड जैसी कई संस्थाओं ने अलग-अलग देशों में कई अध्‍ययन किए हैं। सभी का निष्‍कर्ष लगभग एक जैसा ही है। उनके बढ़ते नकारात्‍मक प्रभाव को आप अपने प्रेम के स्‍पर्श से ही कम कर सकते हैं या समाप्‍त कर सकते हैं। उसके लिए जरूरी यह है कि यदि अभिभावकों के लिए घर से काम करना आवश्‍यक है तो वे अपने पीसी या टैब से ही न चिपके रहें। मोबाइल पर इतने तल्‍लीन न हों कि उनके पास बच्‍चों के साथ घर पर रहते हुए भी समय बिताने का वक्‍त न रहे।

बच्‍चों को आदर परिवर्तन के लिए धीरे-धीरे करें तैयार 

डॉ. राजेश का कहना है कि यदि आपको लगता है कि उन्‍हें सुबह जल्दी उठना चाहिए, नियमित योग करने की आदत को अपनाना चाहिए। ऑनलाइन क्लास लेकर कुछ नया सीखने के लिए आगे आना चाहिए तो इसके लिए आवश्‍यक है, धीरे-धीरे उन्‍हें इन बदली हुई परिस्थितियों में एडजस्ट होने के लिए तैयार किया जाए। यह नहीं कि हम माता-पिता या अभिभावक हैं इसलिए बच्‍चे को जो कहेंगे उसे तुरंत मान लेना चाहिए।

उन्‍होंने दो भाई-बहन रुद्रांश और कौशिकी का उदाहरण देते हुए कहा कि लॉकडाउन के पहले वे झगड़ते नहीं थे, आपस में मिलजुलकर रहते थे, लेकिन कोरोना कर्फ्यू का असर ऐसा हुआ है कि वे एक दूसरे को मारने-पीटने तक लगे। चुपचाप अपने माता-पिता की बात माननेवाले ये बच्‍चे इस लॉकडाउन के समय में उन्‍हें जवाब देने लगे। जिसके बाद इन दोनों के माता-पिता को बताया गया कि इस समय उनसे कैसा व्‍यवहार करना है। अब वे पूरी तरह तो पहले जैसे नहीं हुए हैं, लेकिन बहुत बदल गए हैं। उनकी एक दूसरे पर गुस्‍सा होने की प्रवृत्‍त‍ि कम हुई है। पहले से चिड़चिड़े पन में भी अंतर आ गया है।

अभिभावक नई अभिरुचियों में जिज्ञासा पैदा करने का करें प्रयास 

वे कहते हैं कि इसके लिए करना यह पड़ा कि स्कूलों के बंद होने के बावजूद बच्चों को पहले के रूटीन के मुताबिक ही पढ़ाई करते रहने का अभ्‍यास बनाए रखने के लिए उनके परिजनों से कहा गया, जोकि उन्‍होंने अपनाया। अपने साथ पेड़-पौधों में पानी डालने के लिए बताया, पूजा यदि घर में होती है तो साथ में बच्‍चों को भी पूजा में बैठाएं कहा गया । पहले उन्‍हें पौधों को पानी डालने में आलस आता था फिर वे खुद ही आगे से कहने लगे कि समय हो गया पौधों में पानी डालने चलो।

बच्‍चों की कही हर बात को नकारें नहीं, सही समय का इंतजार करने को कहें

डॉ. राजेश शर्मा कहते हैं कि इसी प्रकार से कई घरों में कैरम और लूडो के साथ शतरंज भी परिवार जनों के साथ बैठकर खेलना शुरू करवाया गया है, इससे बच्‍चों की मोबाइल पर बैठने या टीवी के सामने घण्‍टों बैठने की आदत छूट गई है। इसके साथ ही जो किया गया वह है बच्‍चों से पहले से अधिक प्रेम पूर्वक बर्ताव करना, किसी भी बात को आराम से सहजता के साथ समझाना। जब बच्‍चे किसी चीज को लेकर जिद कर रहे होते हैं तो उन्‍हें उस समय धैर्य के साथ सुनना और यह कहना कि हां हम जरूर इस पर विचार करेंगे। लॉकडाउन खुलने दो, बाहर स्‍थ‍ितियां सामान्‍य होने दो, फिर जो तुम्‍हारे लिए करना है और तुम्‍हारी जो इच्‍छाएं हैं, उन पर काम करेंगे। इस प्रकार कहते हुए आप बच्‍चों के चिड़चिड़े पन को भी उत्‍साह एवं उमंग में बदल सकते हैं।

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