पटना शहरी क्षेत्र- क्या इस बार फिर से क्लीन स्वीप करेगी भाजपा ? जल्दी नेतृत्व नहीं बदलते हैं पटना के लोग

बीजेपी के लिए क्लीन स्वीप मानी जाने वाली पटना शहरी क्षेत्रों की चारों सीटों पर पार्टी ने एक बार फिर पुराने सिपाहियों पर हीं दांव चला है. पटना साहिब से नंदकिशोर यादव 6 बार यहाँ से जीत चुके हैं तो कुम्हरार से अरुण सिन्हा, बांकीपुर से नीतिन नवीन भी कई बार अपनी सीटों का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. वहीं दीघा से संजीव चौरसिया दूसरी बार मैदान में हैं.

पटना के लोगों की खासियत है कि ये जल्दी अपने नेतृत्व को नहीं बदलते हैं. यही कारण है कि यहाँ के सांसद और विधायक लम्बी पारी खेलते हैं.

पटना साहिब का कौन बनेगा साहेब ?

पटना साहिब में पिछली बार नंदकिशोर यादव को राजद के उम्मीदवार संतोष मेहता ने जबरदस्त टक्कर दी थी. श्री यादव अपने नजदीकी उम्मीदवार संतोष मेहता से महज 3 हजार के लगभग वोटों से विजयी हुए थें. संतोष मेहता पुराने भाजपाई है और नन्द किशोर के काफी करीबी माने जाते थें. बीजेपी से अलग होने के बाद आरजेडी ने उनपर दांव फेंका था और नंदकिशोर यादव की आसान जीत को कठिन बना दिया था.

यह सीट बीजेपी के लिए प्रतिष्ठा की सीट भी है क्योंकि पिछले 25 सालों से इस सीट पर भाजपा का कब्ज़ा रहा है.

पटना साहिब राज्य की पुरानी सीटों में से एक

बिहार की प्रमुख सीट पटना साहिब विधानसभा सबसे पुरानी सीटों में से भी एक है. पहले इसका नाम पटना पूर्वी हुआ करता था. इस विधान सभा के गठन के बाद जब 1957 में पहली बार चुनाव हुआ था तो आरंभिक दौर में दो चुनावों में कांग्रेस बाजी मारी थी. उसके बाद से यहां जनसंघ ने अपने संगठन को मजबूत बनाया. हालाँकि जनता पार्टी भी आई. लेकिन 1995 में यहां भारतीय जनता पार्टी ने जीत दर्ज की और तब से अबतक ये सीट बीजेपी के पास ही है.

समझिये सामाजिक समीकरण को ?

इस विधान सभा में कुल वोटर लगभग 3.5 लाख के करीब हैं. इनमे 54 फीसदी पुरुष वोटर हैं. इस क्षेत्र के जातिगत और सामाजिक समीकरण को देखें तो वैश्य और यादव मतदाता परिणाम को प्रभावित करने की स्थिति में रहते हैं. वैश्य बीजेपी के परंपरागत वोटर होते हैं वहीं यादव उम्मीदवार होने के कारण नंदकिशोर यादव इसका फायदा मिलता है. इस क्षेत्र में कोइरी, कुर्मी और मुस्लिम मतदाताओं की संख्या भी बड़ी संख्या में हैं. नन्दकिशोर यादव की जीत में अनुकूल सामाजिक समीकरण बहुत मायने रखता है.

पिछले चुनाव के नतीजे कैसे थे ?

पिछले चुनाव में भारतीय जनता पार्टी का मुकाबला जेडीयू और राजद गठबंधन से था. इस चुनाव में नंदकिशोर यादव काफी कम अंतर से चुनाव जीते थें. बीजेपी के श्री यादव को लगभग 88 हजार तो राजद के संतोष मेहता को लगभग 85 हजार वोट मिले थें. जबकि इस बार स्थितियां काफी बदली हुई हैं. यह सीट गठबंधन के खाते में जाने के बाद शायद हीं संतोष मेहता को टिकट मिले, ऐसे में बीजेपी की राह और आसान हो सकती है.

स्थानीय विधायक का रिपोर्ट कार्ड

नंद किशोर यादव बिहार सरकार में कैबिनेट मंत्री के साथ-साथ बिहार बीजेपी के प्रमुख भी रह चुके हैं. राज्य के टॉप नेताओं में उनका नाम आता है. वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से होते हुए कैबिनेट मंत्री तक के सफ़र को तय किया है. उन्होंने पटना साहिब सीट से 1995 में चुनाव लड़ा था और तब से अबतक हर चुनाव जीते हैं. यानी पिछले 25 साल से वो ही इस सीट पर विधायक हैं. अभी वो बिहार सरकार में पथ निर्माण मंत्री हैं. इससे पहले स्वास्थ्य मंत्री समेत कई पदों पर रह चुके हैं.

कुम्हरार पर कौन करेगा राज ?

कुम्हरार विधान सभा क्षेत्र भी बीजेपी की प्रतिष्ठा की सीट मानी जाती है. वर्तमान में यहाँ अरुण कुमार सिन्हा विधायक हैं. यह सीट पूर्व में पटना मध्य के नाम से जानी जाती थी. परिसीमन के बाद इस सीट का नाम कुम्हरार किया गया. यह सीट भी दशकों से बीजेपी की रही है. पूर्व में राज्य के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं.

जलजमाव से ट्रस्ट जनता के लिए हर बार यह क्षेत्र चुनौतीपूर्ण रहता है. इस सीट पर बीजेपी के सीटिंग कैंडिडेट का कोई विकल्प नहीं होना अरुण सिन्हा की जीत को काफी आसन कर देता हैं. पूर्व में जो भी उम्मीदवार खड़े हुए हैं वो बड़े अंतर से चुनाव हार चुके हैं.

हालाँकि इस क्षेत्र में कांग्रेस से पूर्व विधायक अकील हैदर और निर्दलीय प्रत्याशी अजय वर्मा की पैठ काफी अच्छी होने के बावजूद भी वो वोट परिवर्तन करने में सफल नहीं हो पाते हैं.

इस क्षेत्र में कायस्थ और भूमिहार जाति का दबदबा है. जिनके तरफ इनका झुकाव होता है वो चुनाव जीतते हैं.

बांकीपुर बन रहा है हॉट सीट

बांकीपुर विधान सभा के बारे में हमने पिछले अंक में भी चर्चा की थी, जैसे जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं वैसे-वैसे समीकरण और परिस्थितयां बदल रही हैं. वैसे तो यह सीट बीजेपी के लिए आसान है पर इसमें एक नया ट्विस्ट आ रहा है. जहाँ एक और प्लुरल्स की पुष्पम प्रिय चौधरी ने इस सीट से चुनाव लड़ने की घोषणा की है वहीँ दूसरी ओर कांग्रेस के टिकट पर सिने स्टार और पूर्व सांसद शत्रुघ्न सिन्हा के बेटे लव सिन्हा को के चुनाव लड़ने की बात ने इस सीट को दिलचस्प बना दिया है.

दीघा विधानसभा सीट पर भीड़ चुके हैं बीजेपी और जेडीयू

परिसीमन के बाद पटना पश्चिम विधान सभा के कुछ क्षेत्रों के साथ दीघा विधानसभा क्षेत्र बना. यहाँ अबतक हुए दो चुनाव में पहली बार जदयू ने सीट पर कब्ज़ा किया था. लेकिन पिछले चुनाव में बीजेपी के संजीव चौरसिया ने यहाँ से जेडीयू के राजीव रंजन प्रसाद को हराया था. संजीव चौरसिया को 92 हजार तो जदयू नेता को 62 हजार के करीब वोट मिल पाए थे. अब इस चुनाव में जदयू-भाजपा साथ हैं, इसलिए भी यह सीट आसान समझी जा सकती है.

संजीव चौरसिया बीजेपी के सीनियर नेता गंगा प्रसाद के पुत्र हैं. ये बीजेपी के कई पदों पर रह चुके हैं. राजनितिक विरासत में मिलने के कारण इन्हें वैसे तो कोई खास परेशानी नहीं होती है पर सीटों के बंटवारे में गठबंधन का असर इस सीट पर हमेशा दिखने को मिल सकता है. शहरी क्षेत्र होने के कारण इस यह सीट भी बीजेपी के लिए अनुकूल मानी जा सकती है.

 

मधुप मणि “पिक्कू”

मुख्य संपादक, रेस मीडिया ग्रुप

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