मूलतः गुरु वह होता है जो ज्ञान दे।जिसके ज्ञान से एक योग्य , सफल इंसान का निर्माण हो ।एक बच्चे की मां उसकी प्रथम गुरु होती है।जन्म के साथ ही ज्ञान का बोध माँ से प्रारम्भ होता है । इसके बाद पिता,परिवार, शिक्षक एवं मित्र- समाज होता है।
जीवन में गुरु की बड़ी महिमा होती है। गुरु रौशनी के समान हैं जो अंधेरे जीवन में प्रकाश लाते हैं।ज्ञान गुरु का प्रसाद है।आजकल समाज में सांसारिक , परिवारिक, एवं हर क्षेत्र में ज्ञान देने वाले व्यक्ति को गुरु कहा जाता है । शिक्षा देने वाला ही केवल गुरु नहीं होता बल्कि हर वह व्यक्ति जो कठिन परिस्थितियों में आपका सही मार्गदर्शन करें उसे भी गुरु के समान, सम्मान करना चाहिए।जब बचपन में क्रिकेट खेलते थे या और कोई खेल में जो सिखाता था वो भी गुरु के श्रेणी होता है।
पुलिस सेवा में आने पर जो प्रारम्भ में पुलिसिंग कैसे करे सिखाया उनको आज भी गुरु के रूप में याद करता हु। परोपकार करने वाले व्यक्ति को भी गुरु के समान दर्जा देना चाहिए। परोपकारी व्यक्ति हमेशा सही मार्ग दिखाते हैं। ऐसे गुणवान व्यक्ति को भी हमेशा गुरु मानना चाहिए।ऐसा व्यक्ति जो नौकरी या व्यापार में आपकी हमेशा सहायता करता हो वह भी गुरु की श्रेणी में आता है।
ऐसे व्यक्ति की सलाह हमेशा माननी चाहिए।। हिन्दू धर्म में गुरु का दर्जा भगवान से भी ऊपर माना गया है।भगवान कौन है हमें गुरु ने बताया । गुरु हमें ज्ञान का प्रकाश देकर सही राह दिखाते हैं। गुरु हमें सही और गलत को परखने की सीख देते हैं, जो हमेशा जीवनभर काम आती हैं। गुरु के अलावा जीवन में कई तरह के ऐसे लोग होते हैं, जो हमें सही राह दिखाते हैं। संकट के समय में मददगार साबित होने वाले इन लोगों का दर्जा भी गुरु से कम नहीं होता।गुरु का जीवन में होना विशेष मायने रखता है | गुरु हमारे अंदर बुराई – दुर्गुणों को ज्ञान देकर हटाता है |
गुरु के बिना हमारा जीवन अंधकारमय होता है | अँधेरे में जैसे हम कोई चीज टटोलते हैं,नहीं मिलती है वैसे गुरु के बिना टटोलने वाली जिन्दगी बन जाती है।जिस व्यक्ति के जीवन में गुरु नहीं मिला उसके जीवन में दुःख ही दुःख रहा होगा |
वह एक सहजयुक्त जीवन नहीं जी सकता | गुरु हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है | हमें जीवन जीने का सहीं रास्ता बताता है जिस रास्ते पर चलकर जीवन को संवारा जा सकता है | एक नई ऊँचाई को छुआ जा सकता है इसलिये गुरू हमारे लिये किसी मूल्यवान वस्तु से ज़्यादा महत्वपूर्ण होते है | माता- पिता गुरु रूप में तो हर किसी को होते हैं लेकिन गुरू का होना जीवन का ख़ूबसूरत मार्ग बदलने की तरह होता है।गुरु इस संसार में इंसान का सबसे शक्तिशाली अंग होता है |
ईश्वर अवतार श्रीराम के गुरु महर्षि विश्वामित्र ने शिक्षा देकर दुनिया में उन्हें श्रेष्ठ बनाया । अर्जुन को द्रोणाचार्य ने सर्वश्रेष्ठ धनुर्धारी बनाया तो एकलव्य ने गुरु की मूर्ति बनाकर श्रेष्ठ धनुर्धारी बना परंतु गुरु द्रोणाचार्य ने छल किए ।कोई चीज सीखने के लिये गुरू के बिना अध्ययन नहीं किया जा सकता है | अलग-अलग चीजें सीखने के लिये अलग-अलग गुण के गुरूओं की जरूरत होती है |
निशानेबाज़ी सीखने के लिये निशानेबाज़ गुरू का होना जरूरी है | ड्राईवर बनने के लिये ड्राईवर गुरू की जरूरत होती है | डॉक्टर बनने के लिये डॉक्टर गुरू के पास जाना पड़ेगा।यानी जिस कार्य – क्षेत्र में कुछ करना या सिखना है उस क्षेत्र के अनुभवी कोई गुरु होगा तब ही उस क्षेत्र में वो इंसान सफल होता है ।गुरू मिलने मात्र से नहीं होता है |
गुरू के प्रति हृदय में श्रध्दा होनी चाहिये जब हृदय में श्रध्दा होगी तब आप उस कार्य की समस्त बारीकियाँ सीख सकते हैं | गुरू पूर्णरूपेण आपको पारंगत कर देगा।जो व्यक्ति हमेशा धर्म और अध्यात्म के कार्यों में लिप्त रहता हो, उसे भी गुरु के बराबर का दर्जा देने चाहिए। अगर धर्मात्मा व्यक्ति कभी कोई सलाह दे तो उसे भी गुरु के समान समझकर उसकी आज्ञा का पालन करना चाहिए।
भारतीय संस्कृति में गुरुओं को ब्रह्माण्ड के प्रमुख देवता ब्रह्मा, विष्णु और महेश के समान पूज्यनीय माना गया हैं। पुराणों में कहा गया हैं की गुरु ब्रह्मा के समान होते हैं और मनुष्य योनि में किसी एक विशेष व्यक्ति को गुरु बनाना बेहद जरूरी हैं। क्योंकि गुरु अपने शिष्य का सृजन करते हुए उन्हें सही राह दिखाता हैं। इसलिए गुरु पूर्णिमा के दिन बहुत से लोग अपने ब्रह्मलीन गुरु या संतो के चरण एवं उनकी चरण पादुका की पूजा अर्चना करते हैं। गुरु के प्रति समर्पण भाव गुरु पूर्णिमा के दिन देखा जा सकता हैं।पौराणिक गाथाओं एवं शास्त्रों की मानें तो अनेक ग्रन्थों की रचना करने वाले वेदव्यास जी को सभी मानव जाति का गुरु माना गया हैं।
किसी भी इंसान के जीवन के सफ़र में कभी कभी धूर्त एवं कपटी गुरू रूप से भी मुलाक़ात हो जाती है।वाणी से लोग चुंगल में आ जाते है।जब इंसान किसी संकट में होता है और अगले किसी इंसान से उसकी हानि का भय हो तो धूर्त – कपटी गुरु रूप चेहरा अगले को उस तरह का ज्ञान देगा कि उससे दूसरे को हानि हो एवं उसके प्रतिष्ठा से जुड़ी चीझो को उलझाने की कोसिस करेगा ।
वैसे गुरु का लिबास ओढ़ें धूर्त – कपटी गुरु रूप से समाज को बचना चाहिए।वैसे धूर्त गुरु रूप से ज़्यादा पूजा , मंत्र , ज्ञान की जानकारी कई अगले को होती है ।धूर्त , कपटी गुरु पूरा ज्ञान अपने शिष्य को नहीं देता है | अधूरा ज्ञान न उसके लिये ही लाभदायक होता है न दूसरे के ही जीवन को संवार सकता है | गुरू चुनते समय हमें सच्चे गुरू की तलाश करनी चाहिये | कपटी गुरू रूप से हम सच्चे हुनर को नहीं प्राप्त कर सकते हैं |
गुरु को कभी भी धूर्त – कपटी नहीं होना चाहिये ।यदि शिष्य पूरी तरह से गुरु के प्रति समर्पित रहता है और सहज भाव में जो विद्या ज्ञान लेना चाहता है तो उसे पूर्ण तल्लीन होकर पूर्णज्ञान देना चाहिये तभी गुरू शिष्य की परंपरा को जिन्दा रखता जा सकता है |
गूरू शिष्य की परंपरा सदियों से चली आ रही है | इस शुध्द परंपरा का पालन करने वाला ही सच्चा गुरू व शिष्य कहलायेगा, तभी दोनो का जीवन सार्थक हो सकता है एवं जीवन गौरवशाली बन सकता है | गूरू को अपनी मर्यादा पालन करते रहना चाहिये और शिष्य गुरू के प्रति समर्पित होकर ज्ञान- शिक्षा लेता है तो वह एक महान लक्ष्य को हासिल कर लेता है |
कोई बाधायें उन्हें नहीं रोक सकती है।’गुरु’ शब्द में ‘गु’ का अर्थ है ‘अंधकार’ और ‘रु’ का अर्थ है ‘प्रकाश’ अर्थात गुरु का शाब्दिक अर्थ हुआ ‘अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला मार्गदर्शक’। सही अर्थों में गुरु वही है जो अपने शिष्यों का मार्गदर्शन करे और शिष्य को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते रहे ।हमारे देश में गुरु और शिष्य का रिश्ता बड़ा ही पवित्र माना गया हैं एवं गुरु को देव तुल्य माना गया हैं।