कमल की कलम से !
दिल्ली की कथित भूतिया जगह
आज हम आपकी सैर करवा रहे हैं दिल्ली के एक और कथित भूतिया जगह की जिसे जमाली कमाली मस्जिद के नाम से जाना जाता है.
जमाली-कमाली मस्जिद खतरनाक जगहों में से एक मानी जाती है. किंवदंतियों के अनुसार जमाली और कमाली नाम के दो सूफी फकीर हुआ करते थे जो महरौली के इस मस्जिद में धर्म से जुड़ी शिक्षा दिया करते थे.
इन दोनों संतो को इनके इंतकाल के बाद इसे मस्जिद में दफना दिया गया था और ऐसा माना जाता है कि तभी से यहां जिन्न रहते हैं, जो लोगों को जानवरों की आवाज निकाल कर डराते हैं और अपनी तरफ बुलाते हैं.
परन्तु मेरे हिसाब से यह गलत बात है और सिर्फ मनोरंजन के लिए ये बातें गढ़ी गई होगी. या अगर वैज्ञानिकों की माने तो बहुत ध्यान देकर सुनने पर कुछ गम्भीर और रहस्यमय आवाजें सुनाई देने लगती है.
मुस्लिम वास्तुकला के क्षेत्र में दिल्ली का दुनियाँ में एक अनूठा स्थान है क्योंकि यहाँ अनगिनत स्मारक हैं इतिहास में जो बिखरे हुए हैं.
यदि आप जी पी एस के सहारे यहाँ पहुँचना चाहेंगे तो करीब 3 किलोमीटर भटकते रहेंगे जबकि यह कुतुब मीनार के ठीक बगल में है जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं.
जो लोग इसके बारे में जानते हैं वे सिर्फ यह जानते हैं कि यह दिल्ली की मस्जिद और खंडहरों में से एक है.
यह स्थल जमाली-कमाली का मकबरा और मस्जिद है , लेकिन अब इस स्थल को केवल जिन और भूतों से संबंधित अफवाहों के लिए जाना जाने लगा है.
मकबरे के कक्ष को लाल और नीले रंग से रंगा गया है और साथ ही उसपर कुरान की कुछ आयतों का भी उल्लेख किया गया है मकबरे की कक्ष की दीवारो पर रंगीन टाइल्स लगायी हुई है जिस पर जमाली की कविताओं को लिखा गया है. मकबरे की सजावट को “एक गहने की पेटी में घुसने” की धारणा से की गयी है.
जमाली कमाली मस्जिद और मकबरे, के समाधि कक्ष में संगमरमर से बानी दो कब्रे है : एक जमाली की, जो एक फकीर व् कवि थे और दूसरी कमाली की.
“जमाली” एक उर्दू शब्द है जो शब्द जमाल से बना है जिसका अर्थ होता “सुंदरता”. जमाली उर्फ़ शेख़ फज़लुल्लाह, जिन्हे शेख जमाली कम्बोह व् जलाल खान के नाम से भी जाना जाता है , एक प्रसिद्ध सूफी संत थे जिन्होंने अपना जीवन पूर्व मुगल वंश के लोदी साम्राज्य के दौरान व्यतीत किया था.
सिकंदर लोधी के शासन काल से लेकर मुग़ल शासक बाबर और हुमायूँ के शासन काल की अवधि को लोदी साम्राज्य के नाम से जाना जाता है.
जमाली, शेख हामिद बिन फजलू का नाम था , जिन्हें शेख जमाल-उद-दीन कम्बोह देहलवी उर्फ जलाल खान के नाम से भी जाना जाता था। जो एक सूफी फकीर थे, जिन्हें उनकी शायरी के लिए जाना जाता था.
कई विद्वानों द्वारा यह माना गया है कि सिख धर्म की पवित्र किताब गुरु ग्रंथ साहिब में, ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के शिष्य शेख बाबा फरीद के नाम से जो काव्य रचनाये है, वो वास्तव में सूफी जमाली की लिखी हुई है.
यह एक पूर्ण रहस्य है कि जमाली के साथ ये कमाली कौन था य़ा थी. उर्दू में “कमाल” का अर्थ चमत्कार होता है. इस पर कई धारणाएं हैं कि वह कौन था य़ा थी.
ऐसा कहा जाता है कि वह जमाली के एक शिष्य थे , या कोई अन्य सूफी कवि, या जमाली की पत्नी, या उनका भाई, या शायद सिर्फ एक नौकर.
जमाली-कमाली का एक गौरवशाली इतिहास रहा है. लेकिन दुख की बात है कि इस स्थल को झूठी भूतिया कहानियों से जोड़ दिया गया है.मेरा दावा है कि यहाँ पर भूतिया जैसी कोई बात नहीं है.
मेरे पूछताछ करने पर, ड्यूटी पर मौजूद एक सुरक्षाकर्मी ने कहा कि वह मस्जिद में कई बार ड्यूटी पर रहा है. दिन में भी और रात में भी
हालांकि, उन्होंने कभी भी किसी भी असामान्य या भूत जैसी चीज को महसूस नहीं किया, लोग शुद्ध मनोरंजन के लिए ऐसी कहानियां बना रहे हैं
जमाली को आज भी उनके दो सबसे प्रसिद्ध और लोकप्रिय कार्यों के लिए जाना जाता है, जिन्हें ‘द स्पिरिचुअल जर्नी ऑफ द मिस्टिक ’ और‘ द सन एंड मून ‘नाम दिया गया है.
मैं यहाँ करीब दो घण्टे से ज्यादा समय तक घूमता रहा और वहाँ बैठकर समय ब्यतीत किया.
ना तो कोई सांय साँय सुनाई पड़ी न कोई असामान्य आवाज न ही भूतों के चलने की आहट.
हाँ अंतिम लम्हों में मेरा सर बहुत चकराने और फिर घबड़ाहट होने लगी जो शायद इस कारण रहा होगा कि अचानक गर्मी और इस बात का अहसास कि उतने देर से मैं वहाँ अकेला हूँ.
पर मैं कहीं से भी इस बात को नहीं मान सकता कि यहाँ पर भूत पिशाच या कोई रहस्यमयी ताकत है.
पुरातत्व अवशेषों में जिन्हें दिलचस्पी हो उन्हें यहाँ अवश्य जानी चाहिए.
यहाँ से डी टी सी की कई बसें गुजरती है.
604 , 617 , 615 , 523 , 534
बस स्टैंड का नाम है अहिंसा स्थल। जहाँ से यह पैदल 800 मीटर की दूरी पर है.
चूँकि यह आर्कियोलॉजिकल पार्क के अंदर बहुत दूरी पर है तो सिर्फ पैदल ही जा सकते हैं.
मेट्रो स्टेशन कुतुबमीनार मेट्रो है जहाँ से यह सवा किलोमीटर है जहाँ आप ऑटो लेकर जा सकते हैं पर ऑटो बाहर ही तक छोड़ देगा जहाँ से 600 मीटर पैदल चलना पड़ेगा.
परन्तु अब आप इसके पास तक अपनी सवारी से भी पहुँच सकते हैं.
निजी वाहन से आने पर आर्कियोलॉजिकल डिपार्टमेंट से अनुमति लेकर यहाँ तक आप आ सकते हैं।