कमल की कलम से
खोदा पहाड़ निकला चूहा !
हमने आपको दिल्ली के एक से एक डरावनी , भूतिया और अभिशापित जगहों की सैर कराई है. जहाँ जाकर मैंने भी रोमांच का अनुभव किया और आपको भी सब से रु ब रु करवाता रहा.
क्या आप दिल्ली की गलियों को जानते हैं ? पुरानी दिल्ली की तंग गलियां जिनसे गुजरना भले मुश्किल काम हो, मगर असली दिल्ली वहीं पर बसती है. इन गलियों के नाम भी बड़े दिलचस्प हैं. ‘भूतों वाली गली’
पूर्वी दिल्ली के नांगलोई जाट में एक ऐसी ही गली है ‘भूतों वाली गली.’
इसी क्रम में जब मुझे पता चला कि नांगलोई में एक जगह है भूतों वाली गली और भूतों से मिलने की चाहत रखते हुए मैं निकल पड़ा इसी गली की ओर.
मन बहुत रोमांचित था कि एक दो तीन नहीं बल्कि क़ई भूतों से मुलाकात होगी क्योंकि यह तो गली ही है भूतों वाली. तो कितने तरह के रंग विरंगे और उधम मचाते या किलकारी पारते या वेलेंटाइन वेलेंटाइन खेलते भूत भूतनी नजर आ जायेंगे. काफी रोमांचित मन और उत्सुक भाव लिए हुए उस गाँव के प्रवेश द्वार से लेकर अंदर शिव मंदिर तक की 500 मीटर की दूरी तय कर लिया पर भूत भूतनी क्या छोटा भूत भी कहीं नहीं मिला.
मन्दिर के पास बैठे कुछ लोगों से जब हमने अपनी जिज्ञासा प्रकट की तो वे लोग खूब ठहाका मार कर हँस पड़े. पास ही खड़े एक युवक ने मेरी हँसी उड़ाते हुए कहा कि अंकल सभी भूत भूतनी वैलेंटाइन के समापन के बाद तीज की तैयारी हेतु बहादुरगढ़ गये हुए हैं. तब उनमें से एक बुजुर्ग ने पूरी कहानी बताई कि क्यों ये भूतों वाली गली कहलाती है.
रोहतक रोड से गांव के शिव मंदिर तक आने वाली इस गली का पहली बार नाम सुनकर लोग डरें भले नहीं, लेकिन चौंक जरूर जाते हैं. आखिर ‘भूतों वाली गली’ को यह नाम कैसे मिला ? इसके पीछे की कहानी क्या है ? क्या यहां पर भूतों का बसेरा है ? आइए जानते हैं दिल्ली की एक दिलचस्प नाम वाली इस गली के बारे में.
मेन रोहतक रोड पर नांगलोई फ्लाईओवर के नीचे भूतों वाली गली शुरू होती है. यह गली श्मशान घाट रोड पर जाती है.
गली के एक छोर पर शिव मंदिर है.पहली बार जब कोई गली का नाम सुनता है तो उसे लगता है कि यह भुतहा है. चूंकि यह गली श्मशान रोड से लगी है तो मन में आशंकाएं उमड़ने लगती हैं. हालांकि ऐसा है कुछ भी नहीं. गली में हमारी-आपकी तरह आम लोग रहते हैं. पूरी गली में कई दुकानें हैं. फिर इसका नाम ‘भूतों वाली गली’ कैसे पड़ा ?
उनके मुताबिक, गली के नाम की दो वजहें समझ आती हैं.
पहली :
काफी वक्त पहले यहाँ पर खेत हुआ करते थे. लोग दिनभर खेतों में काम करके जब इधर से लौटते तो मिट्टी से उनका मुँह सना होता है. शाम के धुंधलके में हुलिया किसी भूत जैसा दिखता था. धीरे-धीरे गली का नाम ‘भूतों वाली गली’ पड़ गया.
तब मुझे याद आया कि इस किस्से का जिक्र पत्रकार रवीश कुमार जी ने अपने ब्लॉग ‘नई सड़क’ पर भी किया है.
दूसरी :
इस गली में जाट लोगों का एक परिवार रहता था. वे लोग रात को खेतों में काम करते थे. इंसान तो अपने काम दिन में निपटाता है और रात सोने के लिए होती है. हां, भूतों के लिए जरूर रात सक्रिय होने का वक्त बताते हैं. मोहल्ले के लोगों ने धीरे-धीरे उस परिवार को भूतों की उपाधि दे डाली और गली का नाम पड़ गया- भूतों वाली गली.
दिनभर खेत में काम करने के बाद जब शाम को वो घर लौटते थे तो उनके चेहरे मिट्टी से सने होते थे. इस पर गांव में कुछ लोग चुटकी लेने के लिए उन्हें भूत कह दिया करते. बस तभी से इस गली को यह नाम दे दिया गया.
फिलहाल, भूतों वाली गली का यह नाम केवल अंजान आदमियों को डराने के काम आ रहा है.
इस भूत वाली गली के श्री श्याम रसोई में सिर्फ 1 रुपये दे कर आप अपना पेट भी भर सकते हैं. यहाँ हर दिन अलग-अलग तरह की 3 सब्जियां, चावल, पूरी और हलवा खाने में दिया जाता है.
तो चलिए भूत तो न मिलेंगे आपको यहाँ पर 1 रुपये में स्वादिष्ट भोजन अवश्य मिल जायेगा.
अगली बार एक सच्ची कहानी द्वारका सेक्टर 8 में भूतिया सड़क पर मुलाकात एक सफेद सलवार सूट वाली भूतनी से।