ज्ञान रंजन मिश्र, आरा, भोजपुर
साल की आखिरी महीना अर्थात दिसंबर भोजपुरी लोकगीत के प्रेमियों के लिए बेहद खास मानी जाती है, क्योंकि इसी दिसंबर से महीने में बहुमुखी प्रतिभा के धनी भिखारी ठाकुर का जन्म सारण जिला के छोटे से क़ुतुबपुर गांव में हुआ था. उनसे लोक कला का कोई भी पहलू अनछूआ नहीं रहा. वे एक ही साथ कवि, गीतकार, नाटककार, नाट्य निर्देशक , लोक संगीतकार और अभिनेता थे. भिखारी ठाकुर की मातृभाषा भोजपुरी थी और उन्होंने भोजपुरी कोई अपने काव्य एवं नाटक की भाषा बनाया. वह एक सफल समाजिक कार्यकर्ता भी थे. उनकी मुख्य कृत्यां थी विदेशिया रामलीला गीत आदि.
विदेशी आलोक नाटक में भिखारी ठाकुर ने अपने आवाज की जादू को बिखेरा है. उनके द्वारा बिखेर गए लहरा को आज भी लोग बड़ी ध्यान से सुनते हैं. उनके गानों का उद्देश्य मनोरंजन के साथ ही साथ समाजिक सारोकार को भी प्रस्तुत करना था. उन्होंने अपने गानों में भाषा एवं शब्दों के चयन में विशेष ध्यान रखा. वह कहां कहा करते थे कि आवाज कितनी भी मधुर क्यों ना हो, यदि शब्द एवं भाषा में गंभीरता एवं मर्यादा ना हो तो सब कुछ बेकार है. वह अपने समय में भोजपुरी गीतों को काफी ऊंचाई तक ले गए. जिसे आज ना केवल भारत में बल्कि पड़ोसी मुल्कों में भी सुना जाता है. वह आज के भोजपुरी संगीतकारो एवं गीत कारों की तरह नहीं थे जिन्हें ना सुर की समझ नहीं ताल की, बस यूं ही गाते चले जा रहे हैं. उन्हें सुर एवं ताल की बेहतर समझते थी. उनकी एक गाने की लाइन है ‘रुपवा गिनाई दिहल, पगहा धराई दिहल’ जिसमें न सिर्फ सुर एवं ताल की बेहतर प्रस्तुति की गई है बल्कि सामाजिक सारोकार को भी दर्शाया गया है.
आज के आधुनिक भोजपुरी गानों में जिन शब्दों का इस्तेमाल हो रहा है, वह भोजपुरी गानों के भविष्य पर गंभीरता से विचार करने के लिए विवश करता है. भोजपुरी गाने लिखने वाले को भी इस पर गंभीरता से विचार करनी चाहिए. आज हमारे भोजपुरी गीत-संगीत इंडस्ट्रीज के सामने एक बेहद महत्वपूर्ण प्रश्न खड़ा हो चुका है, कि किस तरीके से भोजपुरी गानों में मर्यादा बनाए रखने के साथ ही साथ इसे लोकप्रिय भी बनाया जाए. मर्यादा रहित गानों का भविष्य बहुत लंबा नहीं टिक पाता है.
आज इस गीत संगीत के प्रति स्पर्धा पूर्ण बाजार में हम कुछ भी बेचे रहे हैं क्योंकि हमें कम समय में नाम एवं पैसा दोनों कमाना है. कुछ संगीतकार एवं गीतकार का कहना है कि हम वहीं बेचते हैं अर्थात गाते हैं जिसे लोग सुनना पसंद करते है. लेकिन एक सभ्य समाज में इस तर्क को कभी भी सही नहीं ठहराया जा सकता है. आज कल बाजार में ऐसे ऐसे इंजेक्शन एवं दवाइयां बिक रही हैं, जिसे लेने के बाद आदमी आसानी से मर सकता है. तो फिर हमें हॉस्पिटल खोलने की जरुरत क्यों पड़ी. हमने हॉस्पिटल इसीलिए खुला ताकि लोगों की जान बचाई जा सके.
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एक संगीतकार , फिल्मकार एवं गीतकार की भी कुछ समाजिक जिम्मेदारियां होती है. जिसके लिए वह अपने गाने एवं फिल्मों का सहारा ले सकता है. फिल्म एवं संगीत किसी भी समाज पक अपनी प्रभाव बहुत गहराई तक छोड़ती है. जिसे लोग काफी समय तक भूल नहीं पाते हैं. यदि आज के भोजपुरी के संगीतकार भिखारी ठाकुर के बनाए हुए रास्ते पर चल नहीं सकते तो, उनके द्वारा बनाए गए ऐसे प्राचीन रास्ते को बिगाड़ने का भी हक नहीं है.
भिखारी ठाकुर की परंपरा को जीवित रखने में बिहार सरकार को भी अपने स्तर पर कुछ विशेष उपाय करने चाहिए. स्कूली पाठ्यक्रम के माध्यम से बच्चों को भिखारी ठाकुर के बहुमुखी प्रतिभा के बारे में अवगत करानी चाहिए. ऐसे भोजपुरी फिल्मकारों को जो भिखारी ठाकुर की जीवन पर फिल्म बनाने के इच्छुक हो उन्हें राज्य सरकार के द्वारा प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. आज भिखारी ठाकुर जिसे हम “भोजपुरी के शेक्सपियर” के नाम से भी जानते हैं, किसी परिचय के मोहताज नहीं है.