मकर संक्राति के दिन से सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण होने की शुरुआत होती हैं। सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के समय को शुभ माना जाता है और मांगलिक कार्य आसानी से किए जाते हैं।
पृथ्वी दो गोलार्द्धों में बंटी हुई है ऐसे में जब सूर्य का झुकाव दाक्षिणी गोलार्द्ध की ओर होता है तो इस स्थिति को दक्षिणायन और सूर्य जब उत्तरी गोलार्द्ध की ओर होता है तो इस स्थिति को उत्तरायण कहते हैं। साथ ही 12 राशियां होती हैं जिनमें सूर्य पूरे साल एक-एक माह के लिए रहते हैं। सूर्य जब मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो इसे मकर संक्रांति कहते हैं। मकर संक्रांति को पिता-पुत्र के पर्व के रूप में भी जाना जाता है।
इस दिन पुत्र और पिता को तिलक लगाकर उनका स्वागत करना चाहिए। कहा जाता है कि इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि की राशि में प्रवेश करते हैं और दो माह तक रहते हैं। मकर संक्रांति से कई कथाएं भी जुड़ी हैं। मकर संक्रांति के दिन गंगा स्नान का महत्व उस समय से माना जाता है जब पहली पर गंगा पृथ्वी पर आई और महाराज भगीरथ के पीछे-पीछे चलते हुए कपिल मुनि के आश्रम में सगर के पुत्रों का उद्धार किया और सागर से मिल गई।
इस दिन को सुख और समृद्धि का दिन माना जाता है। आज के दिन तिल के दान का बड़ा महत्व है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार आज के दिन तिल से बनी सामग्री ग्रहण करने से कष्टदायक ग्रहों से छुटकारा मिलता है।गंगा स्नान और दान-पुण्य से परिवार में सुख और शन्ति बनी रहती है। मकर संक्राति के दिन पतंग उड़ाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। संक्राति के दिन लोग चूड़ा-दही खाने के बाद मकानों की छतों, खुले मैदानों की ओर दौड़े चले जाते है और पतंग उड़ाकर आनंदित होते हैं।मकर संक्रांति के पावन स्नान के बाद लोग चूड़ा, दही, तिलकुट खाते और खिलाते हैं तथा इससे परस्पर प्रेम और सद्भाव बढ़ता है।