पुराने ढर्रे पर लौट रही भोजपुरी सिनेमा के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे अवधेश मिश्रा व रजनीश मिश्रा   

किसी भी चीज में बदलाव के लिए लोगों को जिम्‍मेवारी का एहसास होना बेहद जरूरी है। शायद यही वजह है कि कभी पारिवारिक, सामाजिक व साफ – सुथरी फिल्मों की पहचान रखने वाली भोजपुरी पर फूह‍ड़ता के कीचड़ उछाले गए, तब दो शख्‍स ने इसे साफ करने का बीड़ा उठाया। उस शख्‍स का नाम अवधेश मिश्रा व रजनीश मिश्रा है, जिसे भोजपुरी पर्दे पर कई प्रभावशाली भूमिका में देखा जा सकता है।

एक कलाकार के नाते उन्‍हें अपनी जिम्‍मेवारी का एहसास हुआ और वे निकल पड़े इंडस्‍ट्री पर लगे अश्‍लीलता के टैग को अनटैग करने। पिछले डेढ़ दशक में जितनी भी भोजपुरी फ़िल्म बनी, उसने भोजपुरी सिनेमा की असल पहचान को ही तार तार कर दिया। नई पहचान बनी अश्लीलता और डबल मिनिग संवाद व आइटम सॉन्ग। यही वजह भी रही कि पिछले डेढ़ दशक में अपना दर्शक भी दिन प्रतिदिन खोते चले गए। दोष खराब स्थिति में पहुची सिनेमा हॉल को दिया जाने लगा। कहा तो यहां तक जाने लगा कि भोजपुरिया लोगो को अपनी भाषा से प्यार नही है, सरकार कोई मदद नही कर रही है। भोजपुरी में खराब वितरण व्यवस्था है।

तब खलनायक अवधेश मिश्रा व संगीतकार रजनीश मिश्रा ने इस आलोचनाओं को सुन एक पारिवारिक कहानी की नींव डाली। कहानी तो तैयार की मगर निर्माता नहीं मिले। बाद में निर्माता अनजय रघुराज ने इस फ़िल्म को बनाने के लिए कदम बढ़ाया। वह भी इस शर्त पर की कम बजट में मार्केट का हीरो लाइये। तब भोजपुरी फिल्मों के सुपर स्टार खेसारीलाल यादव को यह कहानी सुनाई गई। खेसारीलाल यादव तैयार हुए। फ़िल्म बनी ‘मेहंदी लगा के रखना’। तब बात आई प्रचार प्रसार की, तो इसका जिम्मा दिया गया रंजन सिन्हा को। रंजन ने भी अपनी ताकत झोंक डाली और लोगो को यह बताने में कामयाब रहे कि यह फ़िल्म अलग है। फ़िल्म हिट हुई।

फ़िल्म ने सभी का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया जो यह मान बैठे थे कि बगैर अश्लीलता के भोजपुरी फिल्म चल ही नहीं सकती। यह फ़िल्म एक बाप बेटे की कहानी पर आधारित थी। इस फ़िल्म में अवधेश मिश्रा ने अपनी खलनायकी छोड़ बात का चरित्र निभाई, जबकि खेसारी लाल यादव ने बेटे की। इसके बाद अवधेश मिश्रा और रजनीश मिश्रा ने लगातार तीन और फिल्में बनाई ‘मैं सेहरा बांध के आऊंगा’ ‘डमरू’ और ‘राज तिलक’। ‘मैं सेहरा बांध के आऊंगा’ के निर्माता थे अनिल काबरा और प्रदीप सिंह बाकी दोनों के निर्माता प्रदीप के शर्मा थे। फ़िल्म अच्छी चली।
इसके बाद कई निर्माताओ ने अवधेश मिश्रा के साथ फ़िल्म करने की सोची। निर्माता रत्नाकर कुमार व निर्देशक पराग पाटिल ने ‘संघर्ष’ बनायी। यह फ़िल्म फ़िल्म भी सुपर डुपर हिट रही। यह फ़िल्म बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ पर केंद्रित थी। इसके बाद कई फिल्में बनी जो न सिर्फ दर्शकों का ध्यान अपनी और खिंचा बल्कि सभी जगह उनकी प्रसंशा भी हुई। जिनमे विवाह, मेहंदी लगा के रखना पार्ट 2, मेहंदी लगा के रखना पार्ट 3।

अब आ रही है निर्माता प्रदीप सिंह व निर्देशक पराग पाटिल की फ़िल्म ‘दोस्ताना’। यह फ़िल्म बाप बेटे के रिश्तों व भ्रष्ट मेडिकल सिस्टम के खिलाफ में बनी है। इन सभी में एक दो फ़िल्म ही ऐसी है जिसमे अवधेश मिश्रा नजर नहीं आये। बाकी सभी फिल्मों अवधेश मुख्य केंद्र बिंदु है। जब उनसे इस बाबत पूछा गया कि 150 फिल्में करने के बाद आपकी आंख खुली? तब अवधेश मिश्रा ने बताया कि पहले तो मैं तो शुरुआत में भोजपुरी फिल्में करता ही नही था। लेकिन मुम्बई में गुजर बसर करने को पैसों जरूरत पड़ी तो भोजपुरी फिल्म करनी शुरू कर दी। पैसे जब आने लगे तो कहानियों पर ध्यान गया ही नही जो मिला करता गया। नाम, पैसा व शोहरत तो कमा लिया। मगर इस ओर कभी ध्यान गया ही नहीं कि मैं कर क्या रहा हूं।

ध्यान तो तब गया जब मां ने कहा कि बेटा तू कैसी फ़िल्म करता जो हमलोग पूरे परिवार के साथ बैठ कर देख भी नही सकती। तब मैं छह महीनों तक कोई कार्य नही किया। एक दिन संगीतकार मित्र कम छोटे भाई रजनीश मिश्रा जी घर पर आए और बोले भैया अब भोजपुरी की दशा देख बर्दास्त नही होता। क्या हम लोग ऐसे सपना के साथ मुम्बई आये थे। कुछ अच्छा कीजिये। फिर हम लोगो ने ‘मेहंदी लगा के रखना’ के लिए बैठ गए। अब तो एक से एक फ़िल्म अच्छी फिल्में बन रही है। रजनीश मिश्रा अब जल्द ही ‘बलमुआ कैसे तेजब हो’ लेकर आ रहे है जिसकी पूरी शूटिंग लंदन में कई गई है।

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