आइए जाने श्री गणेश चतुर्थी पर कैसे करें विशेष वैदिक गणपति पूजन व विधि का शुभ मुहूर्त व कथा

नभस्ये मासि शुक्लायां
चतुर्थ्या॑म् मम जन्मनी
अष्टद्रव्यैः विशेषण
जुहुयाद्भक्ति संयुक्तः।
तस्येप्सितानि सर्वाणि
सिध्यन्त्यत्र न सशंयः।।

देशभर में गणेश चतुर्थी का त्योहार इस साल १० सितंबर दिन शुक्रवार को मनाया जा रहा है लेकिन इसकी धूमधाम अभी से ही हर तरफ़ देखने को मिल रही है। बीते साल कोरोना संकट के कारण गणेश पूजा को लोगों ने बहुत ही सादगी से अपने घरों में मनाया लेकिन अबकी बार लोग कोरोना नियम का पालन करते हुए गणेश चतुर्थी पर भव्य आयोजन भी कर रहे हैं और अपने-अपने घरों में भी गणपति बैठकर उनकी विधिवत पूजा करने की तैयारी में लगे हुए हैं।

पारंपरिक रूप से भाद्र शुक्ल चतुर्थी तिथि को श्रद्धालु अपने-अपने घरों में गणपति प्रतिमा को स्थापित करके उनकी प्राण-प्रतिष्ठा सहित पूजा करते हैं। गणपति पूजन में बहुत से लोग १० दिन के लिए घर में गणपति पूजन का आयोजन करते हैं और अनंत चतुर्दशी के दिन गणपति बप्पा को बड़ी धूम-धाम से विदाई देकर विसर्जन करते हैं और कामना करते हैं कि सब कुछ मंगलमय हो और अगले वर्ष फिर से हम आपकी पूजा कर पाएं।

इस वर्ष गणेश चतुर्थी के दिन भद्रा का साया भी लग रहा है। गणेश चतुर्थी के दिन ११ बजकर ०९ मिनट से रात १० बजकर ५९ मिनट तक पाताल निवासिनी भद्रा रहेगी। शास्त्रों के अनुसार पाताल निवासिनी भद्रा का होना शुभ फलदायी होता है। इससे समय धरती पर भद्रा का अशुभ प्रभाव नहीं पड़ता है। दूसरी बात यह भी है कि गणपतिजी स्वयं सभी विघ्नों का नाश करने वाले विघ्नहर्ता हैं इसलिए गणेश चतुर्थी पर लगने वाले भद्रा से लाभ ही मिलेगा।

गणपति स्थापना पूजन का शुभ मुहूर्त

इस बार गणपति पूजन का शुभ मुहूर्त दिन में १२ बजकर १७ मिनट पर अभिजीत मुहूर्त में शुरू होगा और रात १० बजे तक पूजन का शुभ समय रहेगा। पूजा के समय “ॐ गं गणपतये नमः” मंत्र का जप करते हुए गणपतिजी को जल, फूल, अक्षत, चंदन और धूप-दीप एवं फल नैवेद्य अर्पित करें। प्रसाद के रूप में गणेशजी को उनके अति प्रिय मोदक का भोग जरूर लगाएं।

।। सविधि श्री गणपति षोडशोपचार पूजन विधि लौकिक व वैदिक मन्त्र।।

गणेश षोडशोपचार पूजन विधि में हम भगवान् श्री गणेश की १६ उपचारों से पूजन करेंगे जिसमे – १-पाद्य, २-अर्ध्य, ३-आचमन, ४-स्नान, ५-वस्त्र, ६-आभूषण, ७-गन्ध, ८-पुष्प, ९-धूप, १०-दीप, ११-नैवेद्य, १२-आचमन, १३-ताम्बूल, १४-स्तवपाठ, १५-तर्पण और १६-नमस्कार आदि शामिल हैं | सबसे पहले भवन गणेश का ध्यान करें –

गणेश ध्यान मंत्र

हाथ में अक्षत पुष्प लेकर ध्यान करे-

एह्येहि हेरम्ब महेशपुत्र समस्त विघ्नौष विनाशदक्ष ।माङ्गल्य पूजा प्रथम प्रधान गृहाण पूजां भगवन् नमस्ते ।।

ध्यानार्थे अक्षतपुष्पाणि समर्पयामि ॐ भगवते श्री गणेशायनमः।

पुष्प अक्षत गणेश जी पर चढ़ा दें |

गणेश आवाहन मंत्र

फिर से हाथ में अक्षत लेकर निम्न मंत्र बोलें-

ॐ गणानां त्वा गणपति ग्वंग हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपति ग्वंग हवामहे निधीनां त्वा निधिपति ग्वंग हवामहे वसो मम। आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम् ।।

ॐ भूर्भुवः स्वः सिद्धिबुद्धिसहिताय गणपतये नमः, गणपतिमावाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि च।

हाथ के अक्षत गणेश जी पर चढ़ा दे।

गणेश प्राण प्रतिष्ठा मंत्र

हाथ में अक्षत लेकर निम्न मंत्र बोलें-

मनो जूति र्जुषता माज्यस्य बृहस्पति र्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञ ग्वंग समिमं दधातु। विश्वे देवास इह पादयन्तामों३ प्रतिष्ठ ।।

अस्यै प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणा: क्षरन्तु च। अस्यै देवत्वमर्चाये मामहेति च कश्चन ।।

भगवन श्री गणेश! सुप्रतिष्ठिते वरदे भवेताम् । प्रतिष्ठा पूर्वकम् आसनार्थे अक्षतान् समर्पयामि ॐ भगवते श्री गणेशाय नम:।

आसन के लिये अक्षत समर्पित करे।

पाद्य, अर्घ्य, आचमनीय,

ॐ देवस्य त्वा सवितुः प्रसवेऽश्विनोर्बाहुभ्यां स्नानीय, पुनराचमनीय पूष्णो हस्ताभ्याम् ॥

एतानि पाद्यार्घ्याचमनीयस्नानीयपुनराचमनीयानि समर्पयामि ॐ भगवते श्री गणेशाय नम: ।

इतना कहकर तीन बार जल चढ़ायें।

दुग्ध स्नान

भगवान को दूध से स्नान कराते हुए निम्न मंत्र बोलें

पयः पृथिव्यां पय ओषधीषु पयो दिव्यन्तरिक्षे पयो धाः । पयस्वतीः प्रदिशः सन्तु मह्यम् ॥
कामधेनुसमुद्भूतं सर्वेषां जीवन परम्। पावनं यज्ञहेतुश्च पयः स्नानार्थमर्पितम् ।।

ॐ भूर्भुवः स्वः भगवते श्री गणेशाय नम:, पयःस्नान समर्पयामि।

दघि स्नान

निम्न मंत्र बोलते हुए दधि से स्नान कराये

ॐ दधिक्राव्णों अकारिषं जिष्णोरश्वस्य वाजिनः । सुरभि नो मुखा करत्प्रण आयू ग्वंग षि तारिषत् ।।

पयसस्तु समुद्भूतं मधुराम्लं शशिप्रभम् । दध्यानीतं मया देव स्नानार्थं प्रति गृह्यताम् ॥

ॐ भूर्भुव: स्व: भगवते श्री गणेशाय नम:, दधिस्नानं समर्पयामि ।

घृत स्नान

निम्न मंत्र से भगवान् को घी से स्नान करायें-

ॐ घृतं मिमिक्षे घृतमस्ययोनिर्घृते श्रितो घृतम्वस्य धाम । अनुष्वधमा वह मादयस्व स्वाहा कृतं वृषभ वक्षि हव्यम् ॥

नवनीतसमुत्पन्न सर्वसंतोषकारकम्। घृतं तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ।।

ॐ भूर्भुवः स्वः भगवते श्री गणेशाय नम:, घृतस्नानं समर्पयामि।

मधु स्नान

निम्न मंत्र से भगवान् को शहद से स्नान कराये

ॐ मधु वाता ऋतायते मधु क्षरन्ति सिन्धवः । मध्विर्न: सन्त्वोषधीः ॥ मधु नक्तमुतोषसो मधुमत्पार्थिव ग्वंग रजः । मधु द्यौरस्तु नः पिता ॥

पुष्परेणुसमुद्भूतं सुस्वादु मधुरं मधु । तेजः पुष्टिकरं दिव्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ भूर्भुवः स्वः भगवते श्री गणेशाय नम:, मधुस्नानं समर्पयामि।

शर्करा स्नान

निम्न मंत्र से भगवान को शक्कर से स्नान करायें-

ॐ अपा ग्वंग रसमुद्वयस ग्वंग सूर्ये सन्त समाहितम् । अपा ग्वंग रसस्य यो

रसस्तं वो गृह्णाम्युत्त ममुपया मगृहीतोऽसीन्द्राय त्वा जुष्टं गृह्णाम्येष ते योनि

रिन्द्राय त्वा जुष्टतमम्॥

इक्षुरससमुद्भूतां शर्करां पुष्टिदा शुभाम्।मलापहारिकां दिव्यां स्नानार्थ प्रतिगृह्यताम् ।।

ॐ भूर्भुवः स्वः भगवते श्री गणेशाय नम:, शर्करा स्नानं समर्पयामि।

पञ्चामृत स्नान

निम्न मंत्र द्वारा गणेश जी को पञ्चामृत से स्नान कराये।

ॐ पञ्च नद्यः सरस्वतीमपि यन्ति सस्रोतसः । सरस्वती तु पञ्चधा सो देशे ऽ भव त्सरित् ॥

पञ्चामृतं मयानीतं पयो दधि घृतं मधु । शर्करया समायुक्तं स्नानार्थ प्रति गृह्यताम् ।।

ॐ भूर्भुवः स्वः भगवते श्री गणेशाय नम:, पञ्चामृतस्नानं समर्पयामि ।

गन्धोदक स्नान

निम्न मंत्र द्वारा भगवान् को गंधोदक स्नान करायें-

ॐ अ ग्वंग शुना ते अ ग्वंग शुः पृच्यतां परुषा परुः । गन्धस्ते सोममवतु मदाय रसो अच्युतः॥

मलयाचलसम्भूतचन्दनेन विनिःसृतम् । इदं गन्धोदकस्नानं कुङ्कुमाक्तं च गृह्यताम ।।

ॐ भूर्भुवः स्वः भगवते श्री गणेशाय नम:, गन्धोदकस्नानं समर्पयामि ।

शुद्धोदक स्नान

शुद्ध जल से स्नान कराये।

शुद्धवालः सर्वशुद्धवालो मणिवालस्त आश्विनाः श्येत: श्येताक्षोऽरुणस्ते रुद्राय पशुपतये कर्णा यामा अवलिप्ता रौद्रा नभोरूपाः पार्जन्याः ॥

गङ्गा च यमुना चैव गोदावरी सरस्वती। नर्मदा सिन्धुकावेरी स्नानार्थं प्रति गृह्यताम् ।।

 

ॐ भूर्भुवः स्वः भगवते श्री गणेशाय नम:, शुद्धोदकस्नान समर्पयामि।

आचमन

शुद्धोदक स्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि। आचमन के लिये जल दे।

वस्त्र
वस्त्र समर्पित करे

युवा सुवासाः परिवीत आगात् स उ श्रेयान् भवति जायमानः । तं धीरासः कवय उन्नयन्ति स्वाध्यो३ मनसा देवयन्तः ।।

शीतवातोष्णसंत्राणं लज्जाया रक्षणं परम् । देहालङ्करणं वस्त्रमतः शान्तिं प्रयच्छ मे॥

ॐ भूर्भुवः स्वः भगवते श्री गणेशाय नम:, वस्त्रं समर्पयामि

 

आचमन

वस्त्रान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि।आचमन के लिये जल दें |

उप वस्त्र
उपवस्त्र समर्पित करे।

ॐ सुजातो ज्योतिषा सह शर्म वरूथमाऽसदत्स्वः । वासो अग्ने विश्वरूप ग्वंग सं व्ययस्व विभावसो ।

यस्याभावेन शास्त्रोक्तं कर्म किञ्चिन्न सिध्यति । उपवस्त्रं प्रयच्छामि सर्वकर्मोपकारकम् ।।

ॐ भूर्भुवः स्वः भगवते श्री गणेशाय नम:, उपवस्त्रं समर्पयामि।

आचमन

उप वस्त्रान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि। आचमन के लिये जल दे।

यज्ञोपवीत
निम्न मंत्र से भगवान् को यज्ञोपवीत अर्पित करें –

ॐ यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात् । आयुष्यमग्नयं प्रतिमुश्च शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः ।।

यज्ञोपवीतमसि यज्ञस्य त्वा यज्ञोपवीतेनोपनह्यामि । नवभिस्तन्तुभिर्युक्तं त्रिगुणं देवतामयम् । उपवीतं मया दत्तं गृहाण परमेश्वर ।।

ॐ भूर्भुवः स्वः भगवते श्री गणेशाय नम:, यज्ञोपवीतं समर्पयामि।

आचमन

यज्ञोपवीतान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।  आचमन के लिये जल दें |

चन्दन

निम्नलिखित मंत्र से चन्दन अर्पित करे ।

ॐ त्वां गन्धर्वा अखनंस्त्वामिन्द्रस्त्वां बृहस्पतिः । त्वामोषधे सोमो राजा विद्वान् यक्ष्माद मुच्यत ।।

श्रीखण्डं चन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम्। विलेपनं सुरश्रेष्ठ ! चन्दनं प्रति गृह्यताम्॥

ॐ भूर्भुव: स्व: भगवते श्री गणेशाय नम:, चन्दनानुलेपनं समर्पयामि ।

अक्षत
निम्न मंत्र बोलते हुए अक्षत चढ़ाये।

ॐ अक्षन्नमीमदन्त ह्यव प्रिया अधूषत । अस्तोषत स्वभानवो विप्रा नविष्ठया मतीयोजा विन्द्र ते हरी ॥

अक्षताश्च सुरश्रेष्ठ कुङ्कुमाक्ताः सुशोभिताः । मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वर

ॐ भूर्भुव: स्व: भगवते श्री गणेशाय नम:, अक्षतान समर्पयामि।

 

पुष्पमाला
पुष्पमाला समर्पित करे ।

ॐ ओषधीः प्रति मोदध्वं पुष्पवती: प्रसूवरीः । अश्वा इव सजित्वरीवर्वीरुधः पारयिष्णवः ।।

माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि वै प्रभो। मयाहृतानि पुष्पाणि पूजार्थं प्रतिगृह्यताम् ।

ॐ भूर्भुव: स्व: भगवते श्री गणेशाय नम:, पुष्पमालां समर्पयामि ।

दूर्वा

निम्नलिखित मंत्र से दूर्वा चढ़ाये।

ॐ काण्डाकाण्डात्प्ररोहन्ती परुषः परुषस्परि । एवा नो दूर्वे प्रतनु सहस्त्रेण शतेन च ॥

दूर्वाङ्कुरान् सुहरितानमृतान् मङ्गलप्रदान् । आनीतांस्तव पूजार्थं गृहाण गणनायक ।।

ॐ भूर्भुव: स्व: भगवते श्री गणेशाय नम:, दूर्वाङ्कुरान समर्पयामि ।

सिंदूर

सिन्दूर अर्पित करे।

ॐ सिन्धोरिव प्राध्वने शूघनासो वातप्रमियः पतयन्ति यह्वा:। घृतस्य धारा अरुषो न वाजी काष्ठा भिन्दन्नूर्मिभिः पिन्वमानः ।।

सिन्दूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यं सुखवर्धनम्। शुभदं कामदं चैव सिन्दूरं प्रति गृह्यताम् ।।

ॐ भूर्भुव: स्व: भगवते श्री गणेशाय नम:, सिन्दूरं समर्पयामि ।

अबीर-गुलाल

अबीर आदि चढ़ाये।

ॐ अहिरिव भोगैः पर्येति बाहुं ज्याया हेतिं परिबाधमानः । हस्तघ्नो विश्वा वयुनानि विद्वान् पुमान् पुमा ग्वंग सं परि पातु विश्वतः ।।

अबीरं च गुलालं च हरिद्रादिसमन्वितम् । नाना परिमलं द्रव्यं गृहाण परमेश्वर ।।

ॐ भूर्भुव: स्व: भगवते श्री गणेशाय नम:, नानापरिमलद्रव्याणि समर्पयामि।

सुगन्धित द्रव्य

सुगन्धित द्रव्य अर्पण करे।

दिव्यगन्धसमायुक्तं महापरिमलाद्भुतम् । गन्धद्रव्यमिदं भक्त्या दत्तं वै परि गृह्यताम् ।।

ॐ भूर्भुव: स्व: भगवते श्री गणेशाय नम:, सुगन्धितद्रव्यं समर्पयामि ।

धूप
धूप दिखाये।

ॐ धूरसि धूर्व धूर्वन्तं धूर्व तं योऽस्मान् धूर्वति तं धूर्व यं वयं धूर्वाम:। देवानामसि वह्नितम ग्वंग सस्नितमं पप्रितमं जुष्टतमं देवहूतमम् ।।

वनस्पतिरसोद्भूतो गन्धाढ्यो गन्ध उत्तमः । आघ्रेय: सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रति गृह्यताम् ।।

ॐ भूर्भुव: स्व: भगवते श्री गणेशाय नम:, धूपमाघ्रापयामि।

दीप

दीप दिखाये।

ॐ अग्निर्ज्योतिर्ज्योतिरग्निः स्वाहा सूर्योज्योतिर्ज्योति: सूर्यः स्वाहा । अग्निर्वर्चो ज्योतिर्वर्चः स्वाहा सूर्यो वर्चो ज्योतिर्वर्चः स्वाहा ।। ज्योतिः सूर्यः सूर्यो ज्योतिः स्वाहा ।।
साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वह्निना योजितं मया ।दीपं गृहाण देवेश त्रैलोक्यति मिरा पहम् ॥
भक्त्या दीपं प्रयच्छामि देवाय परमात्मने । त्राहि मां निरयाद् घोराद् दीप ज्योति र्नमोऽस्तु ते ॥

ॐ भूर्भुव: स्व: भगवते श्री गणेशाय नम:, दीपं दर्शयामि ।

हस्त प्रक्षालन

ॐ हृषीकेशाय नमः’ कहकर हाथ धो ले।

नैवेद्य
नैवेद्य निवेदित करे।

ॐ नाभ्या आसीदन्तरिक्ष ग्वंग शीर्ष्णो द्यौः समवर्तत । पद्भ्यां भूमिर्दिशः श्रोत्रात्तथा लोकाँ२ अकल्पयन् ।।

ॐ अमृतोपस्तरणमसि स्वाहा ।
ॐ प्राणाय स्वाहा । ॐ अपानाय स्वाहा । ॐ समानाय स्वाहा ।
ॐ उदानाय स्वाहा । ॐ व्यानाय स्वाहा । ॐ अमृतापिधानमसि स्वाहा।

शर्कराखण्डखाद्यानि दधिक्षीरघृतानि च। आहारं भक्ष्यभोज्यं च नैवेद्यम् प्रतिगृह्यताम् ।।

ॐ भूर्भुव: स्व: भगवते श्री गणेशाय नम:, नैवेद्य निवेदयामि ।

आचमन

नैवेद्यान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि। जल समर्पित करे।

ऋतुफल
ऋतुफल अर्पित करे।

ॐ याः फलिनीर्या अफला अपुष्पा याश्च पुष्पिणीः । बृहस्पतिप्रसूतास्ता नो मुञ्चन्त्व ग्वंग हसः ।।

इदं फलं मया देव स्थापितं पुरतस्तव । तेन मे सफला वाप्ति र्भवेज्जन्मनि जन्मनि ।।

ॐ भूर्भुव: स्व: भगवते श्री गणेशाय नम:, ऋतुफलानि समर्पयामि ।

आचमन

फलान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि । आचमनीयं जल अर्पित करे।

उत्तरा पोऽशन

उत्तरापोऽशनार्थे जलं समर्पयामि। गणेशाय नमः । जल दे।

करोद्वर्तन

मलयचन्दन समर्पित करे।

ॐ ग्वंग शुना ते अ ग्वंग शुः पृच्यतां परुषा परुः । गन्धस्ते सोममवतु मदाय रसो अच्युतः ।।

चन्दनं मलयोद्भूतं कस्तूर्यादिसमन्वितम् । करोद्वर्तनकं देव गृहाण परमेश्वर ।।

ॐ भूर्भुव: स्व: भगवते श्री गणेशाय नम:, करोद्वर्तनकं चन्दनं समर्पयामि ।

ताम्बूल

इलायची, लौंग-सुपारी के साथ ताम्बूल अर्पित करे।

ॐ यत्पुरुषेण हविधा देवा यज्ञमतन्वत । वसन्तोऽस्यासीदाज्यं ग्रीष्म इध्मः शरद्धविः ।।

पूगीफलं महाद्दिव्यं नागवल्लीदलैर्युतम् । एलादिचूर्णसंयुक्तं ताम्बूलं प्रति गृह्यताम्॥

ॐ भूर्भुव: स्व: भगवते श्री गणेशाय नम:, मुखवासार्थम् एलालवंगपूगीफलसहितं ताम्बूलं समर्पयामि ।

दक्षिणा

द्रव्य दक्षिणा समर्पित करे ।

ॐ हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेक आसीत् । स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम ।।

हिरण्यगर्भगर्भस्थं हेमबीजं विभावसोः । अनन्त पुण्यफलदमतः शान्तिं प्रयच्छ मे ॥

ॐ भूर्भुव: स्व: भगवते श्री गणेशाय नम:, कृतायाः पूजायाः सद्गुण्यार्थे द्रव्यदक्षिणां समर्पयामि ।

आरती

कर्पूर की आरती करे-

ॐ इद ग्वंग हविः प्रजननं मे अस्तु दशवीर ग्वंग सर्वगण ग्वंग स्वस्तये। आत्मसनि प्रजासनि पशुसनि लोकसन्य भयसनि । अग्निः प्रजां बहुलां मे करोत्वनं पयो रेतो अस्मासु धत्त ।।

ॐ आ रात्रि पार्थिव ग्वंग रजः पितुरप्रायि धामभिः । दिवः सदा ग्वंग सि बृहती वि तिष्ठस आ त्वेषं वर्तते तमः ।।
कदलीगर्भसम्भूतं कर्पूरं तु प्रदीपितम्। आरार्तिकमहं कुर्वे पश्य मे वरदो भव ॥

ॐ भूर्भुव: स्व: भगवते श्री गणेशाय नम:, आरार्तिकं समर्पयामि।

आरती के बाद जल गिरा दे

पुष्पाञ्जलि

पुष्पाञ्जलि अर्पित करे।

ॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन् । ते ह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः ।।

नानासुगन्धिपुष्पाणि यथाकालोद्भवानि च। पुष्पाञ्जलिर्मया दत्तो गृहाण परमेश्वर ।

ॐ भूर्भुव: स्व: भगवते श्री गणेशाय नम:, पुष्पाञ्जलिं समर्पयामि।

प्रदक्षिणा

प्रदक्षिणा करे।

ॐ ये तीर्थानि प्रचरन्ति सृकाहस्ता निषङ्गिणः । तेषा सहस्रयोजनेऽव धन्वानि तन्मसि ।

यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च। तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणां पदे पदे ।।

ॐ भूर्भुव: स्व: भगवते श्री गणेशाय नम:, प्रदक्षिणां समर्पयामि ।

विशेषार्घ्य मंत्र
ताम्रपात्र में जल, चन्दन, अक्षत, फल, फूल, दूर्वा और दक्षिणा रखकर अर्घ्यपात्र को हाथ में लेकर निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए विशेषार्घ्य दे।

रक्ष रक्ष गणाध्यक्ष रक्ष त्रैलोक्यरक्षक । भक्तानामभयं कर्ता त्राता भव भवार्णवात् ।।

द्वैमातुर कृपासिन्धो षाण्मातुराग्रज प्रभो । वरदस्त्वं वरं देहि वाञ्छितं वाञ्छितार्थद ।।

अनेन सफलार्घ्येण वरदोऽस्तु सदा मम ।

ॐ भूर्भुव: स्व: भगवते श्री गणेशाय नम:, विशेषार्घ्यं समर्पयामि ।

प्रार्थना

विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लम्बोदराय सकलाय जगद्धिताय ।नागाननाय श्रुति यज्ञ विभूषिताय गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते ।।

भक्तार्ति नाशन पराय गणेश्वराय सर्वे श्वराय शुभदाय सुरेश्वराय । विद्याधराय विकटाय च वामनाय भक्त प्रसन्न वरदाय नमो नमस्ते ।।

नमस्ते ब्रह्मरूपाय विष्णुरूपाय ते नमः नमस्ते रुद्र रूपाय करि रूपाय ते नमः ।विश्व रूप स्वरूपाय नमस्ते ब्रह्मचारिणे भक्त प्रियाय देवाय नमस्तुभ्यं विनायक ।।

साष्टाङ्ग नमस्कार करे ।

गणेशपूजने कर्म यन्यूनमधिकं कृतम्। तेन सर्वेण सर्वात्मा प्रसन्नोऽस्तु सदा मम ।।

ॐ भूर्भुव: स्व: भगवते श्री गणेशाय नम:, प्रार्थनापूर्वकं नमस्कारान् समर्पयामि ।

अनया पूजया भगवतो श्री गणेश प्रीयंताम् न मम ।

ऐसा कहकर समस्त पूजन कर्म भगवान को समर्पित कर दे|

पुनः यथा शक्ति गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करे या ब्राह्मणों द्वारा करवावें अथवा पुष्प ,दूर्वांकुर या मोदकों द्वारा शाहस्त्रार्चन करावें।

।।आथ श्री गणपति अथर्वशीर्ष।।

ॐ नमस्ते गणपतये।
त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसि
त्वमेव केवलं कर्ताऽसि
त्वमेव केवलं धर्ताऽसि
त्वमेव केवलं हर्ताऽसि
त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि
त्व साक्षादात्माऽसि नित्यम्।।1।।
ऋतं वच्मि। सत्यं वच्मि।।2।।
अव त्व मां। अव वक्तारं।
अव श्रोतारं। अव दातारं।
अव धातारं। अवानूचानमव शिष्यं।
अव पश्चातात। अव पुरस्तात।
अवोत्तरात्तात। अव दक्षिणात्तात्।
अवचोर्ध्वात्तात्।। अवाधरात्तात्।।
सर्वतो मां पाहि-पाहि समंतात्।।3।।
त्वं वाङ्‍मयस्त्वं चिन्मय:।
त्वमानंदमसयस्त्वं ब्रह्ममय:।
त्वं सच्चिदानंदाद्वितीयोऽसि।
त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि।
त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि।।4।।
सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते।
सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति।
सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति।
सर्वं जगदिदं त्वयि प्रत्येति।
त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभ:।
त्वं चत्वारिवाक्पदानि।।5।।
त्वं गुणत्रयातीत: त्वमवस्थात्रयातीत:।
त्वं देहत्रयातीत:। त्वं कालत्रयातीत:।
त्वं मूलाधारस्थितोऽसि नित्यं।
त्वं शक्तित्रयात्मक:।
त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यं।
त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं
रूद्रस्त्वं इंद्रस्त्वं अग्निस्त्वं
वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चंद्रमास्त्वं
ब्रह्मभूर्भुव:स्वरोम्।।6।।
गणादि पूर्वमुच्चार्य वर्णादिं तदनंतरं।
अनुस्वार: परतर:। अर्धेन्दुलसितं।
तारेण ऋद्धं। एतत्तव मनुस्वरूपं।
गकार: पूर्वरूपं। अकारो मध्यमरूपं।
अनुस्वारश्चान्त्यरूपं। बिन्दुरूत्तररूपं।
नाद: संधानं। सं हितासंधि:
सैषा गणेश विद्या। गणकऋषि:
निचृद्गायत्रीच्छंद:। गणपतिर्देवता।
ॐ गं गणपतये नम:।।7।।
एकदंताय विद्‍महे।
वक्रतुण्डाय धीमहि।
तन्नो दंती प्रचोदयात।।8।।
एकदंतं चतुर्हस्तं पाशमंकुशधारिणम्।
रदं च वरदं हस्तैर्विभ्राणं मूषकध्वजम्।
रक्तं लंबोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम्।
रक्तगंधाऽनुलिप्तांगं रक्तपुष्पै: सुपुजितम्।।
भक्तानुकंपिनं देवं जगत्कारणमच्युतम्।
आविर्भूतं च सृष्टयादौ प्रकृ‍ते पुरुषात्परम्।
एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनां वर:।।9।।
नमो व्रातपतये। नमो गणपतये।
नम: प्रमथपतये।
नमस्तेऽस्तु लंबोदरायैकदंताय।
विघ्ननाशिने शिवसुताय।
श्रीवरदमूर्तये नमो नम:।।10।।
एतदथर्वशीर्ष योऽधीते।
स ब्रह्मभूयाय कल्पते।
स सर्व विघ्नैर्नबाध्यते।
स सर्वत: सुखमेधते।
स पञ्चमहापापात्प्रमुच्यते।।11।।
सायमधीयानो दिवसकृतं पापं नाशयति।
प्रातरधीयानो रात्रिकृतं पापं नाशयति।
सायंप्रात: प्रयुंजानोऽपापो भवति।
सर्वत्राधीयानोऽपविघ्नो भवति।
धर्मार्थकाममोक्षं च विंदति।।12।।
इदमथर्वशीर्षमशिष्याय न देयम्।
यो यदि मोहाद्‍दास्यति स पापीयान् भवति।
सहस्रावर्तनात् यं यं काममधीते तं तमनेन साधयेत्।13।।
अनेन गणपतिमभिषिंचति
स वाग्मी भवति
चतुर्थ्यामनश्र्नन जपति
स विद्यावान भवति।
इत्यथर्वणवाक्यं।
ब्रह्माद्यावरणं विद्यात्
न बिभेति कदाचनेति।।14।।
यो दूर्वांकुरैंर्यजति
स वैश्रवणोपमो भवति।
यो लाजैर्यजति स यशोवान भवति
स मेधावान भवति।
यो मोदकसहस्रेण यजति
स वाञ्छित फलमवाप्रोति।
य: साज्यसमिद्भिर्यजति
स सर्वं लभते स सर्वं लभते।।15।।
अष्टौ ब्राह्मणान् सम्यग्ग्राहयित्वा
सूर्यवर्चस्वी भवति।
सूर्यग्रहे महानद्यां प्रतिमासंनिधौ
वा जप्त्वा सिद्धमंत्रों भवति।
महाविघ्नात्प्रमुच्यते।
महादोषात्प्रमुच्यते।
महापापात् प्रमुच्यते।
स सर्वविद्भवति से सर्वविद्भवति।
य एवं वेद इत्युपनिषद्‍।।16।।

।।इति शुभम्।।

तदुपरांत ब्राह्मण भोजन व दक्षिणा दें और गोदान, अन्नदान करें पुनः ब्राह्मणों को संतुष्ट कर उनसे आशीर्वाद लेकर सभी बड़े बुजुर्गों , कुल देवता ,स्थान देवता, ग्राम देवता आदि का आशीर्वाद ले कर सभी आये हुवे अतिथियों को सपरिकर प्रसाद वितरण करें पुनः स्वयं प्रसाद ग्रहण करें।
इस विधि से जो भगवान श्री गणेश की या किसी भी भगवद स्वरूप की उपासना करता है वह राजोपचार पूजन का पूर्ण फल प्राप्त कर सर्वत्र विजय श्री को प्राप्त कर पूजित होता है।

भोगअर्चन सामग्री
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०१. बेसन के लड्डू या खोए का मोदक

०२. लावा

०३. जौ का सत्तू

०४. सफेद तिल

०५ गन्ना

०६. केला

०७. संपूर्ण नारियल

 

श्री गणेश जी की आरती
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जय गणेश, जय गणेश,
जय गणेश देवा.

माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा॥

जय गणेश, जय गणेश,
जय गणेश देवा॥

एक दंत दयावंत,
चार भुजाधारी.

माथे पे सिंदूर सोहे,
मूसे की सवारी॥

जय गणेश, जय गणेश,
जय गणेश देवा॥

अंधन को आंख देत,
कोढ़िन को काया.

बांझन को पुत्र देत,
निर्धन को माया॥

जय गणेश, जय गणेश,
जय गणेश देवा॥

हार चढ़ै, फूल चढ़ै
और चढ़ै मेवा.

लड्डुअन को भोग लगे,
संत करे सेवा॥

जय गणेश, जय गणेश,
जय गणेश देवा॥

दीनन की लाज राखो,
शंभु सुतवारी.

कामना को पूर्ण करो,
जग बलिहारी॥

जय गणेश, जय गणेश,
जय गणेश देवा।

गणेश जी का विवाह किस से और कैसे हुआ और उनके विवाह में क्या रुकावटें आई…?
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भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र गणेश जी की पूजा सभी भगवानों से पहले की जाती है। प्रत्येक शुभ कार्य करने से पहले इन्हे ही पूजा जाता है। गणेश जी को गणपति के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि यह गणों के देवता है और इनका वाहन एक मूषक होता है। ज्योतिषी विद्या में गणेश जी को केतु के देवता कहा गया है।

गणेश जी के शरीर की रचना माता पार्वती द्वारा की गई थी उस समय उनका मुख सामान्य था, बिल्कुल वैसा जैसा किसी मनुष्य का होता है। एक समय की बात है माता पार्वती ने गणेश को आदेश दिया कि उन्हें घर की पहरेदारी करनी होगी क्योंकि माता पार्वती स्नानघर जा रही थी।

गणेश जी को आदेश मिला की जब तक पार्वती माता स्नान कर रही है घर के अंदर कोई न आए तभी दरवाज़े पर भगवान शंकर आए और गणेश ने उन्हें अपने ही घर में प्रवेश करने से मना कर दिया, जिसके कारण शिव जी ने गणेश का सर धड़ से अलग कर दिया। गणेश को ऐसे देख माता पार्वती दुखी हो गई तब शिव ने पार्वती के दुख को दूर करने के लिए गणेश को जीवित कर उनके धड़ पर हाथी का सिर लगा दिया और उन्हें प्रथम पूज्य का वरदान दिया।

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गणेश जी के दो दन्त भी थे जो उनके हाथी वाले सिर की सुंदरता बढ़ाते थे। किन्तु परशुराम के साथ युद्ध करने के कारण गणेशजी का एक दांत टूट गया था। तब से वे एकदंत कहलाए जाते है।

दो कारणों की वजह से गणेश जी का विवाह नहीं हो पा रहा था। उनसे कोई भी सुशील कन्या विवाह के लिए तैयार नहीं होती थी। पहला कारण उनका सिर हाथी वाला था और दूसरा कारण उनका एक दन्त इसी कारणवश गणेशजी नाराज रहते थे।

गणेश जी का विवाह किससे और कैसे हुआ
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जब भी गणेश किसी अन्य देवता के विवाह में जाते थे तो उनके मन को बहुत ठेस पहुँचती थी। उन्हें ऐसा लगा कि अगर उनका विवाह नहीं हो पा रहा तो वे किसी और का विवाह कैसे होने दें सकते है। तो उन्होंने अन्य देवताओं के विवाह में बाधाएं डालना शुरू कर दिया।

इस काम में गणेश जी की सहायता उनका वाहन मूषक करता था। वह मूषक गणेश जी के आदेश का पालन कर विवाह के मंडप को नष्ट कर देता था जिससे विवाह के कार्य में रूकावट आती थी गणेश और चूहे की मिली भगत से सारे देवता परेशान हो गए और शिवजी को जाकर अपनी गाथा सुनाने लगे। परन्तु इस समस्या का हल शिवजी के पास भी नहीं था तो शिव-पार्वती ने उन्हें बोला कि इस समस्या का निवारण ब्रह्मा जी कर सकते है।

यह सुनकर सब देवतागण ब्रह्मा जी के पास गए, तब ब्रह्माजी योग में लीन थे। कुछ देर बाद देवताओं के समाधान के लिए योग से दो कन्याएं ऋद्धि और सिद्धि प्रकट हुई| दोनों ब्रह्माजी की मानस पुत्री थीं|दोनों पुत्रियों को लेकर ब्रह्माजी गणेशजी के पास पहुंचे और बोले की आपको इन्हे शिक्षा देनी है। गणेशजी शिक्षा देने के लिए तैयार हो गए। जब भी चूहे द्वारा गणेश जी के पास किसी के विवाह की सूचना अति थी तो ऋद्धि और सिद्धि उनका ध्यान भटकाने के लिए कोई न कोई प्रसंग छेड़ देतीं थी। ऐसा करने से हर विवाह बिना किसी बाधा के पूर्ण हो जाता था।

परन्तु एक दिन गणेश जी को सारी बात समझ में आई जब चूहे ने उन्हें देवताओं के विवाह बिना किसी रूकावट के सम्पूर्ण होने के बारे में बताया। इससे पहले कि गणेश जी क्रोधित होते, ब्रह्मा जी उनके सामने ऋद्धि सिद्धि को लेकर प्रकट हुए और बोलने लगे कि मुझे इनके लिए कोई योग्य वर नहीं मिल रहा है कृपया आप इनसे विवाह कर लें।

इस प्रकार गणेश जी का विवाह बड़ी धूमधाम से ऋद्धि और सिद्धि के साथ हुआ और इसके बाद इन्हे दो पुत्रों की प्राप्ति हुई जिनका नाम था श्रीशुभ और श्रीलाभ और उनकी एक दिव्य पुत्री भी हुईं जिनका नाम माता सन्तोषी है।

अस्तु भगवान श्री गणेश की उपासना करने से सपरिवार इनकी कृपा बनी रहती है।

।।जय श्री गणेश।।

आचार्य स्वामी विवेकानन्द जी
ज्योतिर्विद, वास्तुविद व सरस् सङ्गीत मय श्री रामकथा व श्रीमद्भागत कथा व्यास श्रीधाम श्री अयोध्या जी
संपर्क सूत्र :- 9044741252

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