आरोग्य सेतु एप्प- मूल अधिकारों की श्रेणी में रखा गया है ”निजता का अधिकार”

डॉo सत्यवान सौरभ

अगर वैज्ञानिक एवं प्रौद्योगिकीय में  यह भुला दिया जाता है कि मानवाधिकारों का आदर या सम्मान नहीं होगा तो, किसी भी तरह का विकास टिकाऊ साबित नहीं होगा। इन्हीं मानवाधिकारों में ‘निजता का अधिकार’ भी शामिल है। सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों के अनुसार, भारतीय संविधान के अनुच्छेद-21 के अंतर्गत ‘निजता का अधिकार’ मूल अधिकारों की श्रेणी में रखा गया है।

भारत सरकार ने भी ‘आरोग्य सेतु’  के माध्यम से कोविद-19 से संक्रमित व्यक्तियों एवं उपायों से संबंधित जानकारी उपलब्ध कराने का प्रयास किया है। परंतु इसके साथ ही विभिन्न देशों की सरकारों पर नागरिकों की निजता के उल्लंघन का आरोप भी लग रहा है। फ्रांस के सिक्योरिटी एक्सपर्ट और एथिकल हैकर इलियट एंडरसन ने पिछले महीने ट्वीट करके आरोग्य सेतु ऐप की प्राइवेसी को लेकर सवाल खड़ा किया था। उन्होंने दावा किया था कि आरोग्य सेतु ऐप इस्तेमाल करने वालों का डेटा खतरे में है। ऐसे में अब सरकार ने आरोग्य सेतु ऐप में बग ढूंढने वाले और इसकी प्रोग्रामिंग को बेहतर बनाने का सुझाव देने वाले को एक लाख का पुरस्कार देने की घोषणा की है।

कोरोना वायरस संक्रमण से बचने के लिए सरकार ने आरोग्य सेतु ऐप को अनिवार्य किया है। पर इस कोरोना कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग ऐप की सुरक्षा को लेकर सवाल उठ रहे हैं। हालांकि तमाम सवालों के बावजूद करीब 10 करोड़ लोग आरोग्य सेतु ऐप डाउनलोड कर चुके हैं। कई बड़े एथिकल हैकर्स ने भी आरोग्य सेतु ऐप की प्राइवेसी पर सवाल उठाए हैं।

आरोग्य सेतु एप के बारे में-

अरोग्य सेतु इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र  द्वारा विकसित एक संपर्क-ट्रेसिंग ऐप है। कोविद-19 महामारी से जुडी स्वास्थ्य प्रतिक्रियाओं को संग्रहित  आरोग्य सेतु ऐप द्वारा  जनसांख्यिकीय डेटा, संपर्क डेटा, आत्म-मूल्यांकन डेटा और स्थान डेटा एकत्रित  किया जाता है, इसे सामूहिक रूप से प्रतिक्रिया डेटा कहा जाता है।जनसांख्यिकीय डेटा में नाम, मोबाइल नंबर, आयु, लिंग, पेशे और यात्रा इतिहास जैसी जानकारी शामिल है। संपर्क डेटा किसी भी अन्य व्यक्ति के बारे में है जो किसी दिए गए व्यक्ति के साथ निकटता में आया है, जिसमें संपर्क की अवधि, व्यक्तियों के बीच समीप दूरी, और भौगोलिक स्थान जिस पर संपर्क हुआ है। सेल्फ-असेसमेंट डेटा का मतलब है कि ऐप के भीतर दी गई सेल्फ असेसमेंट टेस्ट के लिए उस व्यक्ति द्वारा दी गई प्रतिक्रियाएं और स्थान डेटा में अक्षांश और देशांतर में किसी व्यक्ति की भौगोलिक स्थिति शामिल होती है।

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश बी. एन. श्रीकृष्ण, जिन्होंने व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक के पहले मसौदे के साथ समिति की अध्यक्षता की आरोग्य सेतु ऐप के अनिवार्य उपयोग को अवैधनिक करार दिया, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने सरकारी एजेंसियों और तीसरे पक्षों के साथ इस तरह के डेटा को साझा करने के लिए दिशानिर्देश देने के लिए, अरोग्या सेतु ऐप के लिए एक डेटा-साझाकरण और ज्ञान-साझाकरण प्रोटोकॉल जारी किया। न्यायमूर्ति श्रीकृष्ण ने कहा कि डेटा की सुरक्षा के लिए प्रोटोकॉल पर्याप्त नहीं होगा। “यह एक अंतर-विभागीय परिपत्र के समान है। यह अच्छा है कि वे व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक के सिद्धांतों के साथ रख रहे हैं, लेकिन उल्लंघन होने पर कौन जिम्मेदार होगा? यह नहीं कहा गया है कि किसे अधिसूचित किया जाना चाहिए ”

निजता संबंधी चिंताएँ-

इस एप को लेकर कई विशेषज्ञों ने निजता संबंधी चिंता जाहिर की है। हालाँकि केंद्र सरकार के अनुसार, किसी व्यक्ति की गोपनीयता सुनिश्चित करने हेतु लोगों का डेटा उनके फोन में लोकल स्टोरेज में ही सुरक्षित रखा जाएगा तथा इसका प्रयोग तभी होगा जब उपयोगकर्त्ता किसी ऐसे व्यक्ति के संपर्क में आएगा जिसकी कोविद -19 की जाँच पॉजिटिव/सकारात्मक रही हो। विशेषज्ञों के अनुसार, कौन सा डेटा एकत्र किया जाएगा, इसे कब तक संग्रहीत किया जाएगा और इसका उपयोग किन कार्यों में किया जाएगा,

इस पर केंद्र सरकार की तरफ से पर्याप्त जानकारी उपलब्ध नहीं है। सरकार ऐसी कोई गारंटी नहीं दे रही कि हालात सुधरने के बाद इस डेटा को नष्ट कर दिया जाएगा।
इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस के जरिये एकत्रित किये जा रहे डेटा के प्रयोग में लाए जाने से निजता के अधिकार का हनन होने के साथ ही सर्वोच्च न्यायलय के आदेश का भी उल्लंघन होगा जिसमें निजता के अधिकार को संवैधानिक अधिकार बताया गया है। जिस तरह आधार नंबर एक सर्विलांस सिस्टम बन गया है और उसे हर चीज़ से जोड़ा जा रहा है वैसे ही कोरोना वायरस से जुड़े एप्लिकेशन में लोगों का डेटा लिया जा रहा है जिसमें उनका स्वास्थ्य संबंधी डेटा और निजी जानकारियाँ भी शामिल हैं। अभी यह सुनिश्चित नहीं है कि सरकार किस प्रकार और कब तक इस डेटा का उपयोग करेगी।

प्रभाव-

ऐसी परिस्थितियों में निजता के हनन से कोई भी व्यक्ति सामाजिक भेदभाव का शिकार हो सकता है। इसकी वजह से लोग वायरस का टेस्ट कराने से भी भागेंगे क्योंकि अगर उनका टेस्ट पॉज़िटिव मिलता है तो उनकी जानकारी सार्वजनिक होने का डर रहेगा। व्यापक स्तर पर इस जानकारी का दुरुपयोग हो सकता है। ई-कॉमर्स कंपनियां ऐसे लोगों की निगेटिव लिस्ट बना लेंगी और संक्रमण के डर से उनके निवास स्थान पर डिलीवरी से इनकार कर सकती हैं। एकत्र किये जा रहे डेटा के माध्यम से इस समस्या के समाप्त होने के बाद भी सरकारें नागरिकों की गतिविधियों की निगरानी कर सकती हैं।

निजता का महत्त्व क्यों?

आज हम सभी स्मार्टफोंस का प्रयोग करते हैं। चाहे एपल का आईओएस हो या गूगल का एंड्राइड या फिर कोई अन्य ऑपरेटिंग सिस्टम, जब हम कोई भी एप डाउनलोड करते हैं, तो यह हमारे फोन के कॉन्टेक्ट, गैलरी और स्टोरेज़ आदि के प्रयोग की अनुमति मांगता है और इसके बाद ही वह एप डाउनलोड किया जा सकता है। ऐसे में यह खतरा है कि यदि किसी गैर-अधिकृत व्यक्ति ने उस एप के डाटाबेस में सेंध लगा दी तो उपयोगकर्ताओं की निजता खतरे में पड़ सकती है। तकनीक के माध्यम से निजता में दखल, राज्य की दखलंदाज़ी से कम गंभीर है। हम ऐसा इसलिये कह रहे हैं क्योंकि तकनीक का उपयोग करना हमारी इच्छा पर निर्भर है, किन्तु राज्य प्रायः निजता के उल्लंघन में लोगों की इच्छा की परवाह नहीं करता।

अपराध और दंड:-

वर्तमान में, भारत का निजी डेटा संरक्षण बिल संसद द्वारा अनुमोदित किए जाने की प्रक्रिया में है।  विधेयक के तहतए डीपीए कानून में विभिन्न उल्लंघनों के लिए जुर्माना पर जुर्माना लगा सकता है। इनमें ;डेटा प्रोसेसिंग बाध्यताओं का अनुपालन करने में विफलताए ; डीपीए द्वारा जारी दिशा.निर्देश और ; सीमा.पार डेटा भंडारण और स्थानांतरण आवश्यकताएं शामिल हैं। उदाहरण के लिए किसी भी डेटा ब्रीच के डीपीए को अधिसूचित करने के लिए फिडुयुशरी द्वारा डाटा प्रिंसिपल को नुकसान पहुंचाने की संभावना होने पर तथा डाटा संरक्षण प्राधिकरण को तुरंत अधिसूचित करने में विफलता फिडुयुशरी पर से पांच करोड़ रुपये या दुनिया भर के कारोबार के दो प्रतिशत तक का अर्थदंड आरोपित किया जा सकता है इसके अलावा कोई भी व्यक्ति जो व्यक्तिगत और संवेदनशील व्यक्तिगत डेटा बेचने एवं  प्राप्त करने स्थानांतरित करने बेचने या ऑफ़र करने पर पांच साल तक की कैद या तीन लाख रुपये तक का जुर्माना करेगा।

आगे की राह :-

सामान्य कालीन परिस्थियों में यह निजता के उलघन को दर्शाता है परन्तु यह आपातकालीन समय में जहाँ सर्वाइवल की बात हो वहां अन्य आयाम गौड़ हो जाते हैं। परन्तु यदि कोई अवैधनिक रूप से डाटा ब्रीच करता है उसको दण्डित करना अनिवार्य है। नि:संदेह यह संकट का समय है जिसमें कोविद -19 महामारी से होने वाली हानि को कम करने के लिये असाधारण उपायों की ज़रूरत है। आरोग्य सेतु एप को इन्स्टॉल करने संबंधी सरकार के हालिया दिशा-निर्देश से आम लोगों के मन में संदेह उत्पन्न हुए हैं, जिसमें देश के नागरिकों की व्यक्तिगत जानकारी भी मांगी जा रही है।

विपक्ष व सोशल मीडिया सरकार के इस आदेश का विरोध कर रहे हैं और उन्होंने एप को निजता पर केतु की तरह बताया है जो निजता के लिए शुभ नहीं है।  सरकार ने संपर्क ट्रेसिंग ऐप द्वारा एकत्रित की जा रही डाटा की गोपनीयता के बारे में चिंताओं को दूर करने के लिए स्त्रोत कोड खोला है। नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने कहा कि  पारदर्शिता, गोपनीयता और सुरक्षा आरोग्य सेतु का मुख्य सिद्धांत रहा है। डेवलपर समुदाय के लिए स्त्रोत कोड खोलना भारत सरकार की इन प्रतिबद्धताओं को निरंतर जारी रखने का संकेत देता है।

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

डॉo सत्यवान सौरभ, 

रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस, दिल्ली यूनिवर्सिटी, 
कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार

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