हमारे देश में ऐसे बहुत कम राजनेता हुए हैं, जिन्हें किसी ऐसी उपाधि से नवाजा गया है, जो जनता के बीच बेहद प्रसिद्ध हो और लोगों के दिलों में उनके लिए आज भी सम्मान हो। आज हम जिस शख्सियत का जिक्र कर रहे हैं, उनके लिए जनता के दिलों में सिर्फ सम्मान ही नहीं बल्कि लोक नायक के नाम से मशहूर इस महान स्वतंत्रता सेनानी के लिए अगाध प्रेम भी है। हम बात कर रहे हैं आपातकाल के खिलाफ सम्पूर्ण क्रांति का आह्वान करने वाले लोकनायक जयप्रकाश की, जो समाजवाद के सबसे बड़े पुरोधा, समाज सुधारक और राजनेता भी रहे। भारतीय राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाने वाले जयप्रकाश नारायण की आज जन्म जयंती है।
जे.पी. बिहार के सारण जिले के एक छोटे से गांव सिताबदियारा में आज ही के दिन 2 अक्टूबर 1902 को पैदा हुए थे। आधुनिक भारतीय इतिहास में अनोखा स्थान रखने वाले जे.पी. ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा बिहार से प्राप्त की और उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका चले गए।
सामान्य पृष्ठभूमि से रहा जे.पी. का ताल्लुक
एक साधारण परिवार में जन्मे जे.पी. जब उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका गए, तो वहां उन्हें अपना जीवन चलाने के लिए खेतों और रेस्टोरेंट में काम करना पड़ा। इन संघर्षों के बीच उनकी माता जी का स्वास्थ्य बिगड़ने लगा और वे अपनी पढ़ाई छोड़कर स्वदेश वापस आ गये। भारत वापस आने पर उनका विवाह प्रसिद्ध गांधीवादी बृजकिशोर प्रसाद की पुत्री प्रभावती के साथ हुआ। ऐसा माना जाता है कि जे.पी. के जीवन में अमेरिका की यह यात्रा बेहद प्रभावशाली रही और उन्हें समाज को देखने के लिए एक नया दृष्टिकोण मिला।
स्वदेश लौटते ही स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े
जब वे अमेरिका से वापस लौटे तब भारत में स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन चरम पर था। वे भी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा बन गए और 1932 में अन्य प्रमुख नेताओं के जेल जाने के बाद भारत के स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व किया। अंततः उन्हें भी इसी वर्ष जेल में डाल दिया गया। नासिक जेल में उनकी मुलाकात मीनू मसानी,अच्युत पटवर्धन, सी के नारायणस्वामी सरीखे कांग्रेस नेताओं से हुई। जेल में चर्चा के बाद कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का जन्म हुआ। यह पार्टी समाजवाद में विश्वास रखती थी। 1939 में उन्होंने अंग्रेज सरकार के खिलाफ लोक आंदोलन का नेतृत्व किया। सबसे बड़ी बात यह है कि जयप्रकाश स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन में हथियार उठाने के पक्षधर थे। उन्होंने किराया और राजस्व को रोकने का अभियान चलाया। टाटा स्टील कंपनी में हड़ताल करवाकर यह प्रयास किया कि अंग्रेजों को स्टील, इस्पात आदि न पहुंच सके। इस कारण उन्हें फिर हिरासत में लिया गया।
संघर्ष और आंदोलन जे.पी. के जीवन का पर्याय
जयप्रकाश नारायण भारतीय राजनीतिक इतिहास में अकेले ऐसे शख्स हैं, जिन्हें देश के तीन लोकप्रिय आंदोलनों में सक्रिय रूप से भाग लेने का गौरव हासिल है। जीवन को जोखिम में डालते हुए उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी। सत्तर के दशक में भ्रष्टाचार और अधिनायकवाद के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व किया। इसके पहले 50 और 60 के दशकों में भूदान आन्दोलन में भाग लेकर लोगों की सोच बदलने की कोशिश की और बड़े पैमाने पर सामाजिक परिवर्तन लाने का काम किया।
इंदिरा गांधी के घोर विरोधी थे जे.पी.
जयप्रकाश नारायण इंदिरा गांधी की प्रशासनिक नीतियों के खिलाफ थे। उन्होंने इंदिरा गांधी के खिलाफ ऐसी बिगुल फूंकी की उन्हें सत्ता से हाथ धोना पड़ा। गिरते स्वास्थ्य के बावजूद उन्होंने 1977 में विपक्ष को एकजुट कर इंदिरा गांधी को सत्ता से बेदखल कर दिया। संपूर्ण क्रांति का उनका दर्शन और आंदोलन भारतीय राजनीति में बड़ा बदलाव तो लाया ही साथ ही देश के सामाजिक तानेबाने को बदलने में भी कारगर साबित हुआ। आपातकाल के खिलाफ सम्पूर्ण क्रांति का आह्वान करने वाले लोकनायक जयप्रकाश को 1998 में उनके सम्मान में मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया। लोकनायक आजादी के बाद वे बड़े-बड़े पद हासिल कर सकते थे, पर उन्होंने गांधीवादी आदर्शों की अपनी सोच नहीं छोड़ी और सादा जीवन जीकर बेमिसाल हो गए।