पटना, 10 अगस्त 2020 : जनता द्वारा चुने जाने के बाद मुख्यमंत्री व मंत्री संविधान सम्मत शपथ ग्रहण के दौरान प्रदेश की जनता की रक्षा का शपथ लेते हैं, मगर बिहार में इन्हीं लोगों ने शपथ की गरिमा को तार – तार कर दिया। खुद नीतीश कुमार गुमशुदा नजर आये। वे बिहार के गुमशुदा मुख्यमंत्री हैं। कोरोना संकट में उनकी गुमशुदगी ताजा उदाहरण है। उक्त बातें आज जनतांत्रिक विकास पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल कुमार ने आज पार्टी कार्यालय में आयोजित प्रेस कांफ्रेंस कर कही। साथ ही उन्होंने गुमशुदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के 15 साल के कार्यकलापों का पोल खोलने के लिए आगामी 16 अगस्त को ‘बिहार नवनिर्माण रैली’ के नाम से डिजिटल रैली करने का भी एलान किया।
उन्होंने कहा कि वैश्विक महामारी कोरोना में देश में अचानक लॉकडाउन हुआ, जिसमें दूसरे प्रदेशों में फंसे बिहार के 40 लाख से अधिक श्रमिक फंस गए। उस वक्त उनके पास रहने – खाने का भी संकट हो गया था। तब गुमशुदा मुख्यमंत्री अपने ही लोगों को लाने को तैयार नहीं थे और जब हम लोगों ने सरकार पर दवाब बनाया, तो उनकी वापसी तो हुई। लेकिन इस सरकार ने अपने ही श्रमिक भाईयों को प्रवासी बता दिया। हद तो तब हो गई, जब इनकी पुलिस ने नोटिफिकेशन जारी कर कहा कि इन मजदूर भाईयों को वजह से क्राइम बढ़ेगी। यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण था, जिसकी खिलाफत हमने पुरजोर तरीके से की।
अनिल कुमार ने बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था और सरकार की भूमिका पर भी सवाल खड़े किये। उन्होंने कहा कि हमने पहले से ही सरकार को प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर आगाह किया था, लेकिन प्रदेश की गुमशुदा नीतीश सरकार सुनने को तैयार नहीं थी। नतीजा आज बिहार में कोरोना संक्रमण के केस 80 हजार को पार करने वाले हैं। वो भी तब जब एक ओर जांच घोटाला भी जोर – शोर से जारी है। बिहार ऐसा पहला प्रदेश बन गया, जहां कोरोना काल में तीन – तीन स्वास्थ्य सचिव बदल दिये गए। मेरा मानना है कि बिहार पहला ऐसा प्रदेश है, जहां बिना जांच के भी स्वास्थ्य विभाग रिपोर्ट देने को आतुर है। ऐसे मैसेज हमारे पास भी आये, जो यह साबित करता है कि जांच के आंकड़ों का दावा पूरी तरह फर्जी है। वहीं, नोबल कोरोना वायरस के कारण भारत में होने वाली डॉक्टर की कुल मौतों का 0.5 प्रतिशत है। हालांकि, बिहार में, डॉक्टरों की मृत्यु का प्रतिशत 4.75 प्रतिशत है, जो राष्ट्रीय औसत से नौ गुना अधिक है। ऐसे में थाली, ताली, दीया और फूल की वर्षा तो खूब हुई, मगर उनके जान की हिफाजत के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। और जो घोषणा कोरोना की लड़ाई में शहीद डॉक्टरों के लिए हुई, उसका लाभ उनके परिजनों को भी नहीं मिला।हम मांग करते है कि सभी कोरोना वॉरियर्स जिसमें विशेषकर डॉक्टर,स्वास्थ्य कर्मी , पुलिसकर्मी,आशा ,ममता,जीविका इत्यादि सभी के परिजनों को 1 करोड़ का अनुदान राशि दी जाए साथ ही उन सभी को शहीद का दर्जा दिया जाए।
अनिल कुमार ने कहा कि मुख्यमंत्री, स्वास्थ्य मंत्री या कोई वरीय अधिकारियों ने एक दिन भी डॉक्टरों या कोरोना वारियर्स को लेकर हाई लेवल मीटिंग तक नहीं की। उनकी मुख्यमंत्री स्तर पर कोई प्रॉपर ट्रेनिंग नहीं हुई। सभी बिहार से गायब हैं। सभी सांसद और विधायक अपने क्षेत्र से गायब हैं। क्या इसी के लिए जनता ने उन्हें चुना था। कुमार ने आगे कहा कि डॉक्टरों पीपीई किट की सुविधा मुहैया नहीं करवाने वाली नीतीश सरकार अपनी नाकामी छुपा कर आज वर्चुअल रैली कर चुनाव की तैयारी में लगी है। जो लोग आज वर्चुअल रैली कर रहे हैं, उन्होंने कभी दूर देहात के अस्पतालों का हाल जानना भी जरूरी नहीं समझा। शहरों में अस्पताल की हालत कितनी खराब है, ये केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल के नेतृत्व में बिहार आयी तीन सदस्य टीम ने अपनी रिपोर्ट में उजागर कर दिया। बिहार की बिगड़ती गुई कोरोना स्थिति पर उनकी टीम ने रिपोर्ट किया कि बिहार के अस्पताल कोरोना से लड़ाई में सबसे फिसड्डी है।
उन्होंने कहा कि एनएमसीएच में 700 बेड का अस्पताल है, लेकिन कोरोना काल में 100 बेड भी तैयार नहीं थी। जब इसकी शिकायत एनएमसीएच अधीक्षक ने की तो उन्हें ही निलंबित कर दिया गया। जो एक अस्पताल एम्स, जहां अच्छे इलाज की सुविधा है, उसको वीवीआई बना दिया गया, क्यों। पीएमसीएच की कुव्यवस्था किसी से छुपी नहीं है। यही वजह है कि सिर्फ राजधानी पटना में कोरोना का संक्रमण 13 हजार के पार जा चुकी है और हर रोज 500 के करीब लोग संक्रमित हो रहे हैं, जब यहां जांच की रफ्तार काफी कम है। 17 जुलाई की मेडिकल जर्नल लैंसेट की रिपोर्ट में भारत के तमाम राज्यों के 20 ज़िलों का ‘वल्नरबिलिटी इंडेक्स’ बताया गया है। 20 में से 8 ज़िले अकेले बिहार के हैं। इसमें ये बताया गया है कि कौन सा राज्य कोरोना की चपेट में आने के बाद उससे लड़ने के लिए कितना तैयार है। इस इंडेक्स में मध्य प्रदेश के बाद नंबर आता है बिहार का। WHO और ICMR दोनों ही संस्थाएँ कोरोना के ख़िलाफ़ लड़ाई में टेस्टिंग को सबसे महत्वपूर्ण लड़ाई मानती है। लेकिन प्रदेश की सरकार उसी में पिछड़ती जा रही है।
उन्होंने कहा कि ये कितना दुर्भाग्यूपर्ण है कि राज्य के गुमशुदा मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री, स्वास्थ्य मंत्री किसी ने भी कोरोना वारियर्स, स्वास्थ्य कर्मियों, डॉक्टरों, पुलिस आदि के लिए संवदेना के दो शब्द तक कहना जरूरी नहीं समझा। हम पहले ही लॉकडाउन से सरकार से अस्पतालों की हालत सुधारने, डॉक्टरों को पीपीई किट उपलब्ध करवाने और जांच में तेजी लाने का आग्रह किया। लेकिन ये सरकार सुनती कहां है। सत्ता का अहंकार इतना है कि प्रदेश की जनता पर आयी विपदा से उन्हें कोई मतलब नहीं है। वे कुर्सी रिन्यूल में लगे हैं। 15 सालों में बिहार को बर्बाद कर दिया। जहां दूसरे राज्य विकास की रफ्तार में तेजी से भाग रहे हैं, वहां बिहार आज भी सालों पुरानी चीजों को लेकर पेरशान है। ऐसी सरकार को सत्ता में रहने का कोई हक नहीं है। इसलिए हम आपसे अपील करते हैं कि अब वक्त है फैसला लेने का।