बिहार पत्रिका /सत्येन्द्र पिलानी
पूरी दुनिया में नाम और अपने ही प्रदेश देश में गुमनाम रहे महान गणितज्ञ स्वर्गीय डा वशिष्ठ नारायण सिंह के जीवन के कई अनछुए पहलुओं से हमने पर्दा उठाने की कोशिश की है उसी कड़ी में आज पढ़िए कैसे उनके छोटे भाई अयोध्या सिंह ने आजीवन अपने बड़े भाई का कर्ज उतारा.
सुबह में उठने से लेकर रात में सोने तक वशिष्ठ बाबू एक शब्द हमेशा रटते थे जो उनकी स्मृतियों में रहता था कि हमार बबुआ .वह वास्तव में बबूआ अपने छोटे भाई अयोध्या बाबू के लिए संबोधित करते थे
अब इतिहास के पन्नों में दर्ज हो चुके बिहार के माटी की शान महान गणितज्ञ स्वर्गीय वशिष्ठ नारायण सिंह के जीवन के कई अनछुए पहलुओं को विगत 3 दिनों से देश दुनिया पढ़ रही है समझ रही है आज आपको हम बताने जा रहे हैं विगत दो दशकों से वशिष्ट बाबू की छाया बने उनके छोटे भाई अयोध्या बाबू के बारे में अयोध्या बाबू सेना में थे अपने बड़े भाई से बहुत ज्यादा प्यार करते थे।
मानसिक रूप से विक्षिप्त होने के बाद वशिष्ट बाबू को वह इलाज कराने के लिए बेंगलुरु ले जा रहे थे रास्ते में खंडवा स्टेशन पर वे ट्रेन से गायब हो गया अयोध्या बाबू बरसों तक अपने भाई को पागलों की तरह ढूंढते रहे गांव में लोगों ने तरह तरह की कहानियां बनाना लोग तो यहां तक कहते थे कि धन के लोभ में ही इन लोगों ने उन्हें गायब कर दिया है कोई कहता की ट्रेन से धक्का दे दिया गया.
दूसरी तरफ लोगों के ताने से दूर अयोध्या बाबू ने अपने भाई को ढूंढने के लिए अपना जीवन दाव पर लगा दिया मन्नतें मांगी गई अखबारों में विज्ञापन दिए गए पर वशिष्ठ ना मिले और जब मिले तब से मरने के दिन तक अयोध्या ने पल-पल अपने छोटे भाई होने का कर्ज उतारा वशिष्ट बाबु चाहे किसी को पहचाने या ना पहचाने पर अपने बुबुआ छोटे भाइ अयोध्या को पहचानते थे सुबह के नित्य कर्म से लेकर भोजन कराने कपड़े पहनाने समय से दवाई देने कहीं बाहर ले जाने सारी जिम्मेवारी अयोध्या बाबू खुद उठाते थे खुद को अपने भाई में समाहित कर लिया था अयोध्या बाबू ने वशिष्ट बाबू को छोड़कर ना कहीं जाते थे ना आते थे 24 घंटे बड़े भाई के साथ छाया की तरह चिपके रहते थे