शराबबंदी के बाद घर-समाज के फैसलों में बढ़ी महिलाओं की भूमिका

राज्य सरकार ने माना है कि शराबबंदी के बाद सूबे की महिलाएं सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त हुई हैं. विधानमंडल में पेश आर्थिक सर्वेक्षण में सरकार ने बताया है कि महिलाएं अब अधिक सम्मानित महसूस कर रही हैं और घर के फैसलों में उनकी भूमिका पहले से व्यापक हुई है. विकास प्रबंधन संस्थान (डीएमआई) द्वारा कराये गये एक सर्वेक्षण का हवाला देते हुए सरकार ने कहा है कि महिलाओं के विरुद्ध मानसिक, शाब्दिक, शारीरिक और यौन हिंसा में कई गुनी कमी आयी है. शराबबंदी से पहले एक परिवार खाने-पीने पर औसतन 1005 रुपये साप्ताहिक खर्च करता था, जो शराबबंदी के बाद 32% बढ़कर 1331 रुपये प्रति परिवार हो गया है. इतना ही नहीं, 19% परिवारों ने नयी परिसंपत्तियां खरीदीं और अन्य 5% परिवारों ने अपने घर की मरम्मत पर रुपये खर्च किये. सार्वजनिक मामलों में भी बढ़ा महत्व : सर्वेक्षण के हवाले से सरकार ने बताया है कि 58% महिलाएं मानती हैं कि घर के फैसलों में उनकी भूमिका पहले से बढ़ी है. 22% महिलाओं ने माना कि उनकी राय को गांव के मामले में भी महत्व दिया जा रहा है. सर्वेक्षण में बताया गया है कि 58% पुरुष अब शराबखोरी का समय परिवार के साथ बातचीत में देते हैं, जबकि 33% ने अपने बचे समय को अतिरिक्त आर्थिक कार्य में लगाया. 85% परिवारों का पड़ोसियों के साथ होने वाला झगड़ा घटा है. 75% परिवारों ने बताया कि शादी-विवाद के दौरान शराब की वजह से होने वाले झगड़े घटे हैं.

अपराध व सड़क हादसे घटे, खरीद क्षमता बढ़ी

अध्ययन में बताया गया है कि शराबबंदी के बाद अपराध के मामलों में काफी कमी आयी है. फिरौती के लिए अपहरण, हत्या, डकैती जैसे मामले 25% से अधिक कम हुए. सड़क दुर्घटनाओं में भी लगभग 20% की कमी आयी. दुग्ध उत्पादों की खपत भी बढ़ी. शहद, पनीर जैसी वस्तुओं की खपत 200 से 400%, जबकि दही, लस्सी, सुधा स्पेशल, सुवासित दूध व मट्ठा आदि आइटम की बिक्री 20 से 40% अधिक हुई. बिक्री कर राजस्व के आंकड़ों के आधार पर बताया गया कि शराबबंदी के बाद महंगी साड़ियां व महंगे परिधानों की बिक्री 10-15 गुनी अधिक हुई. प्लास्टिक के सामान 65%, फर्नीचर 20%, सिलाई मशीन 19% और खेलकूद के सामान 18% अधिक बिके. मनोरंजन कर के संग्रहण में भी 29% की वृद्धि हुई. वाहनों में भी चारपहिया की बिक्री में 30%, ट्रैक्टर में 29% और दोपहिया-तिपहिया वाहनों की बिक्री में 32% की उछाल देखी गयी.

‍सालाना हो रही Rs 5280 करोड़ की बचत

एशियन डेवलपमेंट रिसर्च इंस्टीट्यूट (अाद्री) द्वारा कराये गये अध्ययन का हवाला देते हुए राज्य सरकार ने कहा कि शराबबंदी के बाद पीड़ित परिवारों को सालाना 5280 करोड़ रुपये की बचत हो रही है. जिस समय शराबबंदी हुई, उस वक्त बिहार में कम-से-कम 44 लाख लोग शराबी थे. इनमें से प्रत्येक शराबी द्वारा अल्कोहल पर न्यूनतम एक हजार रुपये भी खर्च माना जाये तो हर महीने कम-से-कम 440 करोड़ रुपये की बचत हुई, जो वार्षिक 5280 करोड़ रुपये हो जाती है.

शराबबंदी से महिला सशक्तीकरण

58% महिलाएं मानती हैं कि घर के फैसलों में उनकी भूमिका बढ़ी
22% महिलाओं ने माना, उनकी राय को गांव के मामले में भी िमला महत्व
58% पुरुष अब शराबखोरी का समय परिवार से बातचीत में देते हैं
33% पुरुषों ने अपने बचे समय को अतिरिक्त आर्थिक कार्य में लगाया.
85% परिवारों का पड़ोसियों के साथ होने वाला झगड़ा घटा
75% परिवारों ने बताया शादी में शराब के कारण होने वाले झगड़े घटे
32% खर्च बढ़ा खाने-पीने पर
19% ने खरीदीं नयी परिसंपत्तियां
5% अन्य परिवारों ने घर की मरम्मत पर खर्च किये रुपये

 

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