अनूप नारायण सिंह की रिपोर्ट
हसनपुर प्रखंड के परोरिया गांव के दो भाईयों की कहानी उस मिथक को तोड़ती है, जिसमें विकलांगता को सबलता में आड़े आने की बात कही जाती है। इस गांव के मजदूर मदन पंडित व मां लीला देवी के छह संतानों में से दो भाइयो ने एक साथ आईआईटी की परीक्षा में बाजी मारी। इसमें एक दिव्यांग कृष्ण भी है। आरंभिक दौर में गांव के दुधपुरा, रोसड़ा से हायर सेंकेंड्री व भिरहा से आरंभिक शिक्षा लेने वाले इस दोनों भाईयों की आरंभिक व्यथा चाहे जो भी रही हो लेकिन बाद के दिनों में एक भाई के बीटेक में उत्तीर्ण होने के बाद उसे भी इंजीनियर बनने की प्रेरणा मिली जो कामयाबी तक बनी रही। गांव में एक फूस के मकान में गुजर बसर करने वाले इस दोनों सपूतों की मां अभी भी गाय को दूह कर अपना जीविकोपार्जन करती है। पर इस रिजल्ट ने पूरे परिवार में खुशियों की बहार ला दी है। दादी सुधारी देवी भी अपनी खुशियां जाहिर करने के लिए बेताब है। हो भी क्यों नहीं। डेढ़ वर्ष की अवस्था में ही दिव्यांग हो गया था। दोनों पैरों व एक हाथ से दिव्यांग कृष्णा को महज डेढ़ वर्ष में ही पोलियो ने अपनी चपेट में ले लिया था। तबसे लेकर आज तक उसके भाई बसंत ने ही उसे सहारा दिया। अपनी पीठ पर बिठाकर स्कूल से लेकर कोटा तक में पढ़ाई कराई। यह क्रम गत 15 वर्षों तक निरंतर जारी रहा।
छह भाईयों में चौथे नंबर पर है कृष्ण
हसनपुर प्रखंड के परोरिया गांव निवासी मदन पंडित कोलकाता में रहकर मजदूर का काम करते हैं। उनके 6 बेटे हैं। दो बड़े भाई मुंबई के किसी गैराज में काम करते हैं। तो तीसरा भाई बीटेक कर रहा है। सबसे छोटा भाई अभी 10वीं में है। चौथे नंबर पर है कृष्ण, तो पांचवें नंबर पर बसंत। यह पूछे जाने पर कि पढ़ाई का खर्च कैसे चला। मां लीला देवी बताती हैं कि खर्च दोनों बड़े भाइ व पिता ने उठाया। कोटा के को¨चग ने भी इस वर्ष फीस में 75 फीसदी तक छूट दी।
कृष्ण को मिला 38 वां तो बसंत को 3769 वां रैंक
दोनों भाई का आईआईटी के लिए 2016 मे चयनित हो चुके हैं। कृष्ण को ओबीसी कोटे में अखिल भारतीय स्तर पर 38वीं और बसंत को ओबीसी में 3769 रैंक मिली है। इस सफलता से पूरे परिवार ही नहीं ग्रामीणों में भी हर्ष का माहौल व्याप्त है। मां लीला देवी बताती है कि बसंत ही कृष्ण को कंधे पर बिठाकर क्लास ले जाता है। उसके हर सुख-दुख का साथी है।