बिहार विधानसभा चुनाव से 10 महीने पहले ही जेडीयू और भारतीय जनता पार्टी में अभी से माइंड गेम शुरु हो गया है। इसके पीछे चुनाव में अधिक से अधिक सीटों पर दावेदारी है। इसके लिए जेडीयू ने जहां वर्ष 2010 के फार्मूले का जिक्र किया है तो बीजेपी 2019 में आम चुनाव को आधार मानने का दबाव डाल रही है। सूत्रों के अनुसार औपचारिक समझौता होने तक जेडीयू केंद्र सरकार में मंत्री पद लेने से परहेज कर सकती है।
हालांकि जेडीयू और भारतीय जनता पार्टी के साथ लोक जनशक्ति पार्टी ने गठबंधन में किसी तरह के दरार पड़ने की बात से इंकार किया है और दावा किया है कि तीनों मिलकर चुनाव लड़ेंगे। दरअसल, जेडीयू उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर ने सीट शेयरिंग कि बात को उठाते हुए सबसे पहले 2009 का फॉर्मूला उठाया। जबाब में भारतीय जनता पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि 2009 की बात पुरानी हो चली है और हकीकत है कि 2019 में बीजेपी ने त्याग करते हुए अपनी लोकसभा सीट जेडीयू को दी।
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पिछले दिनों जब अमित शाह ने नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने की बात कही थी तब भी बीजेपी ने कहा था कि जब नीतीश को नेता मान लिया गया है तो उन्हें ही बड़ा दिल बदले में दिखाना चाहिए। इसके पीछे इशारा इस साल होने वाली विधानसभा में सीट समझौते को लेकर थी। 2010 विधानसभा चुनाव मैं जब जेडीयू और भारतीय जनता पार्टी साथ थी तब राज्य की 224 विधानसभा सीटों में जेडीयू 141 सीट पर चुनाव लड़ी थी ।
इसमें से जेडीयू 115 सीट जीतने में सफल रही थी। वही, बीजेपी 102 सीटों पर उतरी थी इसमें विज्ञा 102 सीटों पर उतरी थी जिसमें 91 पर जीत हासिल किया था। हालांकि लोकसभा चुनाव 2019 में राज्य की 40 लोकसभा सीट पर जेडीयू और भारतीय जनता पार्टी बराबर 17-17 सीटों पर चुनाव लड़ा था। इसके लिए बीजेपी ने 2014 में जीती 21 सीटों में चार सीट जेडीयू को दिया था।
जेडीयू सूत्रों के अनुसार इस बार चुकी गठबंधन में रामविलास पासवान की भी पार्टी होगी ऐसे में जेडीयू लगभग 125, बीजेपी लगभग 90 और बाकी सीट पर एलजेपी चुनाव लड़ सकती है। लेकिन भारतीय जनता पार्टी अंत तक बराबर-बराबर सीट के लिए दबाव डालेगी और इस शर्त पर आसानी से नहीं मानेगी। गठबंधन को उम्मीद है कि अगले एक महीने में बिहार में सीट शेयरिंग का एलान हो सकता है।
ज्ञानरंजन मिश्रा