पोस्ट ऑफिस में बड़ा बाबू राम प्रसाद जी का छोटा सा परिवार।पति पत्नी और दो बेटे,कमी थी तो सिर्फ ये की उन्हें कोई बेटी नहीं थी,जिसकी कसक पूरे परिवार को थी।पत्नी को काम में हाँथ बटाने वाला कोई नही था तो बेटों की कलाई रक्षाबन्धन में बिल्कुल खाली रह जाती।बेटे अपनी वेदना किसी से कह नहीं पाते केवल सोंचते की,काश उसकी भी एक बहन होती। एक दिन राम प्रसाद जी पोस्ट ऑफिस से घर लौट रहे थे तो देखा कि गाँव के बाहर कूड़े के पास काफी भीड़ लगी है।एक कुठ के डब्बे से बच्चे के रोने की आवाज़ आ रही है। लेकिन पुलिस चक्कर के कारण कोई उसे हाँथ नही लगा रहा था।लेकिन रामप्रसाद जी ने हिम्मत कर डब्बे को खोला तो देखा कि उसमें एक नवजात बच्ची थी जो रो रही थी।उनको लगा कि भगवान ने उनके मन की बात आज सुन ली है। थाना से लिखा पढ़ी करवाने के बाद बच्ची को ख़ुशी ख़ुशी घर ले आये।बच्ची को देख सारे घरवालों के खुशी का ठिकाना नही था।सब ने बच्ची का नाम रखी रक्खा,क्योंकि वो रक्षाबन्धन बाले दिन जो मिली थी। अब दोनों बच्चों की कलाई कभी भी खाली .. …… .।। आलोक चोपड़ा ( लघुकथाकार )
लघुकथा: राखी
