(पंकज कुमार श्रीवास्तव) कल मुख्यमंञी जीतन राम माँझी के ऊपर जूता फेंककर बिहार पुलिस के गिरफ्त में आये अमृतोश ने कई सवाल मौजूदा बिहार सरकार के कार्यशैली पर खडा कर दिया है। घटना के तुरन्त बाद अनन-फनन में बिहार पुलिस ने अमृतोश का आपराधिक इतिहास खंगाल कर सरकार और मीडिया के सामने रखा दिया। काश इसी मुस्तैदी से उसके समस्या का सामाधन भी कर दिया होता ? तो ये कलंकित दिन देखने को नहीं मिलता। बहरहाल बिहार पुलिस ने जो आपराधिक इतिहास खंगाल कर रखा है आप भी गौर फरमाये (1). फितरत है आवेदनबाजी। अब सवाल उठता है, क्या अपने अधिकारों के लिए आवेदन करना गुनाह है? गौर करने वाली बात है अमृतोश उस बाप का बेटा है जो 35 बार सिस्टम के विरूध आवाज उठाकर जेल जा चुके हैं। मौजूदा समय में वो छपरा के अन्ना के नाम से जाने जाते हैं।(2).हाजीपुर हरिजन थाने में एसटी एक्ट तहत 2011 में एक केस एवं (3).इसुआपुर थाने में 2010 में मार-पीट का भी एक केस दर्ज है। अब सवाल है4 साल बाद तक ये केस क्यो नहीं निष्पादित हुआ? क्या यही बिहार पुलिस इसी मुस्तैदी से न्यायालय को जाँच में मदद करती रही? अब हम बिहार के उस जनता दरबारों के हकिकत पर ध्यान दे। पूर्व मुख्यमंञी नीतीश कुमार के शुरूआती कार्यकाल में ये जनता दरबार जरूर कामयाब रहा लोगों का विश्वास भी इसके प्रति जगा, लेकिन समय के साथ इसका मतलब लुप्त होता गया। इस सच्चाई की मोहर खुद मुख्यमंञी जीतन राम माँझी का वो बयान है “अफसर हमारी बात नहीं सुनते” फिर इस जनता दरबार का क्या औचित्य ? बहरहाल ये सिर्फ अमृतोश का आक्रोश नहीं ये उस युवा वर्ग का आक्रोश है जो अपने भविष्य को लेकर चिंतित है। आज इस विषय पर बिहार सरकार को गम्भीरता पूर्वक ध्यान देने की जरूरत है।
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