गुरुवार 22.03.18 को चैत्र शुक्ल पंचमी पर देवी के पांचवें स्वरूप स्कंदमाता की पूजा की जाएगी। स्कंदमाता का अर्थ है भगवान कार्तिकेय की माता। देवी स्कंदमाता कुड़ली में बुद्ध ग्रह पर अपना आधिपत्य रखती हैं जो कुड़ली में तीसरे व छठे घर से संबंध रखती है । इनके ऊपर वाली दाईं भुजा में कार्तिकेय नीचे वाली दाईं भुजा में कमल तथा बाई भुजा से इन्होंने जगत तारण वरदमुद्रा बना रखी है व नीचे वाली बाईं भुजा में कमल पुष्प है। देवी स्कंदमाता का वर्ण पूर्णत: शुभ्र है अर्थात मिश्रित है। यह कमल पर विराजमान हैं जिस कारण से इनको “पद्मासना विद्यावाहिनी दुर्गा” भी कहा जाता है। देवी स्कंदमाता की पूजा से स्वास्थ्य, बुद्धी, चेतना, तंत्रिका-तंत्र व रोगमुक्ति होती है। इनकी आराधना से से पारिवारिक शांति, रोगों से मुक्ति तथा समस्त व्याधियों का अंत होता है।पूजा विधि – घर के मंदिर में हरे कपडें में देवी स्कंदमाता की मूर्ती स्थापित कर विधिवत दशोपचार पूजन करें। कांसे के दिए में गाय के घी का दीपक जलाएं, सुगंधित धूप जलाएं, अशोक के पत्ते चढ़ाएं, गौलोचन का तिलक करें, मूंग के हलवे का प्रसाद लगाएं तथा पूजा के बाद भोग कन्या को बांट दें।
पूजा मुहूर्त – सुबह 8:00 बजे से सुबह 9:00 बजे तक।
मंत्र – ॐ स्कंदमाता देव्यै नमः॥ इस मंत्र का जाप करे।
उपाय
- देवी पर अपने ऊपर फल वार कर चढ़ाने से रोगों से मुक्ति मिलती है।
- स्कंदमाता पर मिश्री चढ़ाकर किसी कन्या को भेंट करने से पारिवारिक अशांति से मुक्ति मिलती है।
- देवी स्कंदमाता पर पालक चढ़ा कर किसी गाय को खिलाने से सभी परेशानियों का निवारण होता है।