आज के समय में भारतीय कृषि क्षेत्र न सिर्फ पूरे देश का पेट पाल रहा है बल्कि कई अन्य देश भी इस पर निर्भर हैं। इससे एक बात तो साफ है कि आने वाले दिनों में भारतीय कृषि क्षेत्र में निर्यात स्तर बढ़ने की अपार संभावनाएं हैं। इसमें एक बात का विशेष खयाल रखने की जरूरत है कि पूरी दुनिया में जैविक उत्पादों की डिमांड बढ़ रही है। कोरोना महामारी के आने के बाद से अब लोग और अधिक हेल्थ कॉन्शियस हो गए हैं। जैविक उत्पादों की बढ़ती मांग को देखते हुए ही अब भारत को आगे का रास्ता तय करना है। इस रास्ते पर देश ने धीरे-धीरे कदम जमाना भी शुरू कर दिया है। जी हां, जिस भारत को कभी गेहूं और धान की अधिक पैदावार होने के चलते “रोटी की टोकरी” के रूप में जाना जाता था, अब उसे ”विश्व की खाद्य टोकरी” के रूप में जाना जाएगा। आइए जानते हैं कैसे…
केंद्र की मदद से भारतीय कृषि उत्पादों को मिल रही विशेष पहचान
वह दिन दूर नहीं जब भारत के तमाम कृषि उत्पादों का निर्यात तेजी से पूरी दुनिया में बढ़ेगा। इसके कुछ प्रमुख कारण हमारे सामने हैं, जिनमें से प्रमुख कारण है भारत का कृषि प्रधान देश होना। दरअसल, भारत की अधिकतर जनसंख्या कृषि पर निर्भर करती है इसलिए हमारे देश के लिए इस लक्ष्य तक पहुंच पाना कोई मुश्किल बात नहीं होगी। दूसरा, केंद्र सरकार से किसानों को मिलने वाला प्रोत्साहन भी भारत को ”विश्व की खाद्य टोकरी” बनने में मदद करेगा।
केंद्र सरकार द्वारा चलाई जा रही तमाम योजानाओं के जरिए आज किसानों को आर्थिक मदद और उन्नत तकनीक मिल रही है जिससे उनकी रुचि भी जैविक खेती की और बढ़ रही है। हाल ही में कृषि क्षेत्र में ड्रोन का इस्तेमाल भी शुरू कर दिया गया है। इस प्रकार किसानों को कृषि क्षेत्र में दक्षता दिलाने में केंद्र सरकार अथक प्रयास कर रही है।
वहीं भारतीय कृषि उत्पादों को विश्व में विशेष पहचान दिलाने के लिए केंद्र सरकार जैविक उत्पादों की खेती पर जोर दे रही है। देश के किसान भी सरकार की बातों को अमल में ला रहे हैं जिसके बेहतर नतीजे आज हमारे सामने हैं।
कोरोना महामारी के बावजूद बढ़ा भारत का जैविक निर्यात
कोरोना महामारी के बावजूद भारत का जैविक निर्यात भी बढ़ गया है। भारत के जैविक निर्यात में 2019-20 के स्तर से करीब 51% की बढ़ोतरी हुई है। गौरतलब हो, भारत कृषि में शीर्ष 10 निर्यातक देशों में शामिल है और समग्र निर्यात अत्यंत महत्वपूर्ण दर से बढ़ता आ रहा है।
महामारी की चुनौतियों के बावजूद हम इस उपलब्धि को हासिल करने में सक्षम रहे हैं और यह विश्व स्तर पर एक निर्यातक के रूप में भारत की स्थिति को मजबूत करता है। इसका मतलब है कि कोरोना महामारी में भी विदेशी बाजारों में भारतीय जैविक उत्पादों, पौष्टिक औषधीय पदार्थों और स्वास्थ्यवर्धक खाद्य पदार्थों की मांग लगातार बढ़ रही है।
अच्छी कृषि पद्धतियों के साथ भारत दे रहा खाद्य और पोषण सुरक्षा
उभरते भारत में कृषि ही एक प्रमुख क्षेत्र है जो भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान अदा करता है। भारत 15 कृषि-जलवायु क्षेत्रों, समृद्ध मिट्टी, और खनिज युक्त पानी के साथ खेती में मात्रा, विविधता और गुणवत्ता को बढ़ाता आ रहा है और विश्व को अच्छी कृषि पद्धतियों के साथ खाद्य और पोषण सुरक्षा दोनों प्रदान कर रहा है। यही वजह है कि आज पूरी दुनिया ने इन पर विश्वास किया है और उन्हें अपनाया है।
भारतीय जैविक उत्पादों की अच्छी गुणवत्ता के चलते आज भारत का जैविक निर्यात पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गया है। जैविक उत्पादों के इस्तेमाल से शरीर स्वस्थ रहता है और कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होता, जबकि पेस्टेसाइट्स और अन्य रासायनिक पदार्थों की मदद से उपजे उत्पादों से शरीर को नुकसान पहुंच सकता है।
जैविक बागवानी के आकर्षक विकास पथ के साथ इतिहास रच रहा भारत
भविष्य में कृषक समुदाय पीएम मोदी के ”आत्मनिर्भर भारत” के लक्ष्य को हासिल करने में अग्रणी भूमिका निभाएंगे। केवल हमें अपने जैविक बागवानी उत्पादों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने और अपने निर्यात गंतव्यों का विस्तार करने के लिए वैश्विक प्लेटफार्मों का लाभ उठाने के लिए बहुत प्रयास करने की आवश्यकता है।
इसके अलावा हमें बागवानी क्षेत्र में भारत की महत्ता बनाए रखने के लिए निवेशकों के साथ जागरूकता और क्षमता निर्माण के बारे में बातचीत शुरू करनी होगी। अच्छी कृषि पद्धतियों को अपनाना, उन्नत फार्म गेट इंफ्रास्ट्रक्चर, अनुसंधान एवं विकास में उच्च निवेश और डिजिटल एकीकरण कुछ ऐसी रणनीतियां हैं जो भारत के बागवानी निर्यात को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी। इस दिशा में भी भारत तेजी से कार्य कर रहा है।
2030 तक वैश्विक फल और सब्जी बाजार में 10% निर्यात हिस्सेदारी का लक्ष्य
इतिहास इस बात का गवाह है कि देश के किसान और ग्रामीण अर्थव्यवस्था कभी किसी विपत्ति के आगे नहीं झुके। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए भी ऐसा ही होने वाला है। केवल हमारे जैविक उत्पादों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए हमें प्रमाणन की एक मजबूत प्रणाली की आवश्यकता है।
हालांकि इस दिशा में भारत सरकार ने जैविक उत्पादों के लिए प्रमाणन की दो प्रणालियों की शुरुआत कर दी है। अब भारतीय जैविक और बागवानी उत्पादों की बेहतर स्वीकार्यता के लिए उपयुक्त पादप स्वच्छता प्रोटोकॉल सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। भारत ने 2030 तक वैश्विक फल और सब्जी बाजार में 10% निर्यात हिस्सेदारी का लक्ष्य रखा है।
केंद्र सरकार जैविक खेती को दे रही बढ़ावा
केंद्र सरकार देश में जैविक खेती को बढ़ाने पर खासा जोर दे रही है। इसके लिए जैविक एफपीओ (FPO) जैविक खाद की व्यवस्था करते हैं। सरकार का प्रयास है कि प्राकृतिक और जैविक खेती को व्यापक रूप से बढ़ावा दिया जाए क्योंकि इससे रासायनिक उर्वरक पर निर्भरता कम होती है और किसानों की आय में वृद्धि होती है।
एफपीओ के माध्यम से छोटे किसान सामूहिक शक्ति की ताकत को महसूस कर रहे हैं। छोटे किसानों के लिए एफपीओ के पांच लाभ हैं। इन लाभों में मोलभाव की बढ़ी हुई शक्ति, बड़े स्तर पर व्यापार, नवाचार, जोखिम प्रबंधन और बाजार के हिसाब से बदलने की क्षमता शामिल है। एफपीओ के लाभों को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार उन्हें हर स्तर पर बढ़ावा दे रही है।
इन एफपीओ को 15 लाख रुपए तक की मदद दी जा रही है। इसी वजह से, पूरे देश में जैविक एफपीओ, तिलहन एफपीओ, बांस क्लस्टर और शहद एफपीओ जैसे एफपीओ सामने आ रहे हैं। “आज हमारे किसान ‘एक जिला, एक उत्पाद’ जैसी योजनाओं से लाभान्वित हो रहे हैं। देश एवं वैश्विक स्तर के बाजार उनके लिए खुल रहे हैं। 11 हजार करोड़ रुपए के बजट वाले नेशनल पाम ऑयल मिशन जैसी योजनाओं से आयात पर निर्भरता कम हो रही है।
2020-21 में 8,88,180 मीट्रिक टन रहा भारत का जैविक निर्यात
भारत का जैविक निर्यात वर्ष 2020-21 में 8,88,180 मीट्रिक टन था। बागवानी और फूलों की खेती का उत्पादन 330 मिलियन टन तक पहुंच गया। दुग्ध उत्पादन भी पिछले 6-7 वर्षों में लगभग 45 प्रतिशत बढ़ा है। लगभग 60 लाख हेक्टेयर भूमि को सूक्ष्म सिंचाई (माइक्रो इरीगेशन) के अंतर्गत लाया गया है।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत मुआवजे के रूप में एक लाख करोड़ रुपए से अधिक की राशि दी गई है। महज 7 वर्षों में इथेनॉल का उत्पादन 40 करोड़ लीटर से बढ़कर 340 करोड़ लीटर हो गया। प्रधानमंत्री ने बायोगैस को बढ़ावा देने के लिए हाल ही में एशिया के सबसे बड़े बायो सीएनजी प्लांट की शुरुआत की। यह ”गोवर्धन योजना” के तहत किया गया। गोबर का मूल्य होगा, तो दूध नहीं देने वाले पशु किसानों पर बोझ नहीं बनेंगे। इसके अलावा केंद्र सरकार ने कामधेनु आयोग की स्थापना की है और डेयरी क्षेत्र के बुनियादी ढांचे को मजबूत कर रही है।
इस प्रकार जैविक खेती को बढ़ावा देने पर केंद्र सरकार सदैव जोर देती रही है। रसायन मुक्त खेती मिट्टी के स्वास्थ्य की रक्षा करने का एक प्रमुख तरीका है। जैविक खेती इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। प्रत्येक किसान को जैविक खेती की प्रक्रियाओं और लाभों से अवगत कराने का जिम्मा केंद्र सरकार ने अपने कंधों पर लिया है और विभिन्न अभियानों के माध्यम से इस कार्य में जुट गई है।