(अनुभव की बात, अनुभव के साथ)
लोकसभा में गरीब सवर्णों को दस प्रतिशत आरक्षण बिल का जिस प्रकार राष्ट्रीय जनता दल ने विरोध किया है, उससे बिहार में महागठबंधन के घटक दल सकते में हैं। महागठबंधन के प्रमुख घटक कांग्रेस के पास इस बिल का समर्थन करने के अलावा कोई चारा नहीं था। सो कांग्रेस ने समर्थन कर सवर्णों को रिझाने की कोशिश की है। वहीं हिंदुस्तान आवाम मोर्चा के जीतन राम मांझी ने तो गरीब सवर्णों के लिए 15 प्रतिशत आरक्षण की पैरवी की है।
राजद ने जहां आर्थिक आधार पर सवर्णों को आरक्षण देने का विरोध कर अपने परंपरागत वोट बैंक को सुरक्षित करने का प्रयास किया है,वहीं राजद के इस स्टैंड से कांग्रेस असमंजस की स्थिति में फंस गई है। सवर्णों के समर्थन के बदौलत ही आज तीन प्रदेशों में कांग्रेस सत्ता में वापसी कर पाई है। बिहार में भी कांग्रेस इस वर्ग में अपनी पैठ बनाने की जुगत में लगी हुई है, जिस वोट बैंक पर भाजपा का कब्जा हुआ करता था। एससी- एसटी एक्ट में संशोधन और किसानों के समस्याओं को दूर करने के प्रति सरकार की उदासीनता के बाद सवर्णों का भाजपा से मोहभंग होता नजर आ रहा है। कांग्रेस बिहार में इसी वोट बैंक पर काफी उम्मीद से अपनी नजरें गराए है। अब राष्ट्रीय जनता दल के द्वारा सवर्णों को दिए जा रहे आरक्षण का विरोध करने से कांग्रेस पेसो-पेस में फँसी हुई है।
एक ओर जहां लालू प्रसाद यादव ने आरक्षण से अपनी राजनीति चमकाई और यादव, मुस्लिम और एससी-एसटी के रहनुमा के रूप में खुद को स्थापित किया। वहीं उच्च जातियों का विरोध वह हमेशा अपने भाषणों में करते रहे। एक जमाने में उनका बयान “भूरा बाल साफ करो” काफी प्रसिद्ध हुआ था। हालाँकि वो सदा इससे इनकार करते रहे।इस बयान के बाद उच्च जातियों के विरोध का ही नतीजा रहा कि मुस्लिम, यादव और एससी-एसटी के समीकरण से वह राजनीति के क्षितिज पर पहुंचने में कामयाब रहे।
वहीं दूसरी ओर कांग्रेस एक सर्वमान्य पार्टी रही है।हर जाति,धर्म और समुदाय में कांग्रेस का वोट रहा है। राष्ट्रीय राजनीति में हासिए पर पहुंच गई कांग्रेस के लिए आज के हालात में किसी भी समुदाय का विरोध खतरनाक साबित हो सकता है। हाल में हुए तीन राज्यों के चुनाव परिणाम ने यह साबित भी किया है कि,जहां सवर्णों के विरोध से भाजपा की सत्ता चली गई, वहीं कांग्रेस पन्द्रह वर्ष बाद सत्ता वापस पाने में कामयाब रही। लोकसभा चुनाव निकट है और ऐसे में किसी भी सूरत में कांग्रेस सवर्णों के विरोध को नहीं झेलना चाहेगी। ऐसे तो कोई भी दल वर्तमान स्थिति में सवर्णों की खिलाफत नहीं करना चाहेगी। यही वजह है कि राष्ट्रीय जनता दल के अंदर भी पार्टी के इस फैसले से खलबली मची हुई है।पार्टी के कई पदाधिकारियों ने तेजस्वी यादव को अपने विरोध से अवगत करवा दिया है। यही वजह है कि राजद ने सदन में भले ही बिल का विरोध किया हो, परंतु खुलेआम इस संबंध में बयान देने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही है। दूसरी तरफ पार्टी ने सवर्णों को खुद से जोड़ने के लिए प्रयास भी शुरू कर दिए हैं। राजद भी अब समझ रही है कि सवर्णों के बगैर बिहार में राजनीति मुमकिन नहीं है।