पटना। बिहार के हिस्से की आधी राशि अबतक केंद्र द्वारा बिहार को नहीं देना सहकारी संघवाद की भावना के विरुद्ध और संवैधानिक व्यवस्था का उल्लंघन है।
जदयू प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद ने फेसबुक के माध्यम से कहा कि यह केंद्र में सत्तासीन दल या केंद्र सरकार की इच्छा का विषय नहीं, बल्कि ‘सकल बजटीय सहायता’ (Gross Budgetary Support) की संवैधानिक व्यवस्था है, जिसके राज्यों के लिए बजट में केंद्रीय सहायता की राशि तय होकर उन्हें दी जाती है।
स्वीकृत राशि के सरेंडर होने के अलावा कोई विकल्प ही नहीं
राजीव रंजन ने कहा वित्त वर्ष समाप्त होने में केवल 25 कार्यदिवस बचे हैं और जानबूझकर बिहार की राशि रोक कर राज्य की विकास और कल्याण योजनाओं को प्रभावित किया जा रहा है। ऐसे तो विभिन्न मदों में स्वीकृत राशि के सरेंडर होने के अलावा कोई विकल्प ही नहीं बचेगा।
बिहार तो विशेष राज्य का दर्जा देने और केंद्रीय योजनाओं में केंद्र सरकार द्वारा घटा दी गई उनकी हिस्सेदारी बढ़ाने की मांग कर रहा रहा था। उसे पूरा करने की बात दूर, बिहार के लिए बजट में प्रावधान की गई राशि भी राज्य को नहीं दी जा रही है।
उन्होंने कहा कि बिहार के लोगों ने बीजेपी और एनडीए को वोट नहीं दिया तो केंद्र सरकार राज्य के 11 करोड़ लोगों से इसका बदला ले रही है।
सुमो बताएं कि उनके लिए दल बड़ा है या बिहार ?
उन्होने पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी पर निशाना साधते हुए कहा कि इस मामले में भाजपा नेता सुशील मोदी को अपना साढ़े आठ साल का कार्यकाल याद करना चाहिए, जब वे खुद केंद्र प्रायोजित योजनाओं को लेकर तत्कालीन केंद्र सरकार को कोसते थे। आज जब केंद्र में उनकी पार्टी की सरकार है, तब इस प्रकार की अनसुनी का क्या मतलब है ?