संतान के लिए रखा जाता है सकट चौथ का व्रत, पढ़ें सकट चौथ व्रत कथा

सकट चौथ व्रत हर महीने में पड़ता है। लेकिन सबसे खास सकट चौथ पुर्णिमांत पंचांग के अनुसार माघ के महीने में पड़ती है। इसे संकष्टी चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन माताएं अपनी संतान की सलामती के लिए व्रत रखती हैं। सुबह विघ्न हर्ता की पूजा करती हैं और शाम कों चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत खोलती हैं। यहां हम आपके बता रहे हैं।

इस कथा को सुनकर मिलता है संकष्टी चतुर्थी व्रत का फल-

३१ जनवरी २०२१ को संकष्टी चतुर्थी व्रत है। यह व्रत गणेश भगवान के लिए रखा जाता है। मान्यता के अनुसार, कहा जाता है कि संकष्टी चतुर्थी पर गणपति महाराज के आशीर्वाद से भक्तों के जीवन में चल रहे संकट दूर हो जाते हैं। हालांकि व्रती को इस व्रत का फल तभी प्राप्त होता है जब वह संकष्टी चतुर्थी की कथा को सुनता है। संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा इस प्रकार है.

पौराणिक कथा के अनुसार, कहा जाता है कि भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के विवाह का निमंत्रण सभी देवी-देवताओं के पास गया। विवाह का निमंत्रण भगवान विष्णु जी की ओर से दिया गया था। बारात की तैयारी होने लगी। तभी सभी देवता बारात में जाने के लिए तैयार हो रहे थे, लेकिन सबने देखा कि गणेश जी इस शुभ अवसर पर उपस्थित नहीं है। यह चर्चा का विषय बन गया और वहां देवताओं ने भगवान विष्णु जी से इसका कारण पूछ लिया.

भगवान विष्णु जी कहा कि हमने गणेश जी के पिता भोलेनाथ महादेव को न्योता भेजा है। यदि गणेशजी अपने पिता के साथ आना चाहते तो आ जाते, अलग से न्योता देने की कोई आवश्यकता भी नहीं थीं। दूसरी बात यह है कि उनको सवा मन मूंग, सवा मन चावल, सवा मन घी और सवा मन लड्डू का भोजन दिनभर में चाहिए। यदि गणेश जी नहीं आएंगे तो कोई बात नहीं। दूसरे के घर जाकर इतना सारा खाना-पीना भी उचित नहीं लगता। इस बीच किसी ने सुझाव दिया कि यदि गणेश जी आ भी जाएं तो उनको द्वारपाल बनाकर बैठा देंगे कि आप घर की याद रखना। आप तो चूहे पर बैठकर धीरे-धीरे चलोगे तो बारात से बहुत पीछे रह जाओगे.

यह सुझाव भी सबको पसंद आ गया, तो विष्णु भगवान ने भी अपनी सहमति दे दी। जब गणेश जी वहां पहुंचे तो उन्हें घर की रखवाली करने को कह दिया गया। बारात चल दी, तब नारद जी ने देखा कि गणेश जी तो दरवाजे पर ही बैठे हुए हैं, तो वे गणेशजी के पास गए और रुकने का कारण पूछा। गणेश जी कहने लगे कि विष्णु भगवान ने मेरा बहुत अपमान किया है। नारद जी ने कहा कि आप अपनी मूषक सेना को आगे भेज दें, तो वह रास्ता खोद देगी जिससे उनके रथ धरती में धंस जाएगा, तब आपको सम्मान पूर्वक बुलाना पड़ेगा.

ये सुनते ही गणपति महाराज ने अपनी मूषक सेना आगे भेज दी और सेना ने वैसा ही किया। जब बारात वहां से निकली तो रथों के पहिए धरती में धंस गए। सभी ने अपने-अपने उपाय किए, परंतु पहिए नहीं निकले, बल्कि जगह-जगह से टूट गए। किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या किया जाए। तब तो नारदजी ने कहा- आप लोगों ने गणेशजी का अपमान करके अच्छा नहीं किया। यदि उन्हें मनाकर लाया जाए तो आपका कार्य सिद्ध हो सकता है और यह संकट टल सकता है। शंकर भगवान ने अपने दूत नंदी को भेजा और वे गणेशजी को लेकर आए.

गणेशजी का आदर-सम्मान के साथ पूजन किया गया, तब कहीं रथ के पहिए निकले। अब रथ के पहिए निकल तो गए, लेकिन वे टूट-फूट गए, तो उन्हें सुधारे कौन? पास के खेत में खाती काम कर रहा था, उसे बुलाया गया। खाती अपना कार्य करने के पहले श्री गणेशाय नम: कहकर गणेश जी की वंदना मन ही मन करने लगा। देखते ही देखते खाती ने सभी पहियों को ठीक कर दिया। तब खाती कहने लगा कि हे देवताओं! आपने सर्वप्रथम गणेशजी को नहीं मनाया होगा और न ही उनकी पूजन की होगी इसीलिए तो आपके साथ यह संकट आया है। हम तो मूरख अज्ञानी हैं, फिर भी पहले गणेश जी को पूजते हैं, उनका ध्यान करते हैं.

आप लोग तो देवतागण हैं, फिर भी आप गणेशजी को कैसे भूल गए? अब आप लोग भगवान श्री गणेश की जय बोलकर जाएं, तो आपके सब काम बन जाएंगे और कोई संकट भी नहीं आएगा। ऐसा कहते हुए बारात वहां से चल दी और विष्णु भगवान का लक्ष्मी जी के साथ विवाह संपन्न कराके सभी सकुशल घर लौट आए।

।।इति शुभम्।।
आचार्य स्वामी विवेकानन्द जी
ज्योतिर्विद, वास्तुविद व सरस् श्रीरामकथा कथा व श्रीमद्भागवत कथा व्यास श्रीधाम श्री अयोध्या जी संपर्क सूत्र:-9044741252

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