( समीक्षा – अनुभव )
एस सी/ एस टी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का लगभग सभी राजनीतिक दलों ने विरोध किया। स्थिति यहां तक आ गई कि सरकार को संविधान में संशोधन की आवश्यकता महसूस हो गई।भारतीय जनता पार्टी के समर्थकों की नजर में यह आजाद हिंदुस्तान की सबसे ईमानदार, सशक्त और मजबूत सरकार है ।कई मौकों पर सरकार ने खुद को ऐसा साबित करने की नाकाम कोशिश भी की है। लोकसभा चुनाव में दिए भाषणों के अनुसार देश को बहुत बड़े सुधार की आवश्यकता थी।यह सुधार तभी संभव था,जब देश में पूर्ण बहुमत की सरकार हो।इसके लिए सख्त फैसलों की जरूरत थी। कोई भी सख्त फैसला पूर्ण बहुमत की सरकार ही ले सकती है।भारतीय जनमानस ने इस बात को समझा और चुनाव में प्रचंड बहुमत देकर देश को एक पूर्ण बहुमत वाली सरकार दी।जैसी कि पूरी उम्मीद थी पूर्ण बहुमत की सरकार अपने वादे शीघ्र पूरे करेगी और जायज- नाजायज को समझेगी। जनता को यह उम्मीद थी कि यह सरकार कभी भी किसी दबाव में, स्वार्थ में या फिर सिर्फ वोट के लिए कोई फैसला नहीं लेगी ,जैसा कि पूर्ववर्ती सरकारों ने किया है ।परंतु पूरे हिंदुस्तान को उस वक्त अफसोस हुआ जब इस माह के शुरुआत में केंद्र की तथाकथित सबसे सशक्त सरकार ने वोट बैंक के सामने अपने घुटने टेक दिए और एससी /एसटी एक्ट में संशोधन को मंजूरी दे दी। बताते चलें कि देश के सर्वोच्च न्यायालय ने 20 मार्च को यह कहते हुए इस एक्ट के कुछ प्रावधानों को निरस्त कर दिया था कि उनका दुरुपयोग देखा गया है। कोर्ट ने इस कानून के तहत दर्ज मामलों में प्रारंभिक जांच करने और अग्रिम जमानत देने के आदेश दिए थे। सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर तब दलित संगठनों सहित विपक्षी दलों और सत्ता पक्ष के भी कई राजनीतिक दलों ने तीखी प्रतिक्रिया दी थी और इस संशोधन का विरोध किया था। ऐसा नहीं है कि देश के तमाम राजनीतिक दलों को यह नहीं मालूम है कि इस एक्ट का हर समाज में विभिन्न तरीकों से दुरुपयोग हो रहा है। आंकड़े तो उपलब्ध नहीं है परंतु एक बहुत बड़ी आबादी इस एक्ट के दुरुपयोग का शिकार हुई है और शिकार हो रही है। बावजूद इसके सरकार ने इन चीजों से मुंह मोड़ लिया और वोट बैंक के सामने नतमस्तक हो गई। यह सब देखकर क्या ये समझा जाए कि हमारी सरकार और देश के तमाम राजनीतिक दल समाज के कुछ ख़ास और किसी विशेष तबके को निशाना बना रही है और समाज में जहर घोल रही है।क्या ये समझा जाए कि देश एक और क्रांति चाहता है ?