लघुकथा :इंतज़ार

माँ तुम कई बार तीर्थयात्रा करवाने को कह चुकी हो।चलो तुम्हे तीर्थयात्रा करवा लाऊँ।यह सुनकर माँ के मुख से आशीर्वाद की झड़ी लग गयी,और ख़ुशी ख़ुशी जाने को तैयार हो गई।वह अपनी माँ को जग्गन्नाथ पूरी ले आया। माँ को सड़क किनारे बैठा दिया और कहा कि माँ मैं तुम्हरे लिए खाना लानेजा रहा हूँ।। 90 बर्षीय माँ लाठी लिए बेटे का इंतज़ार घण्टो करती रही।भगवान से यही प्रर्थना करती रही कि उसका बेटा यदि किसी मुसीबत में फंस गया है तो उसकी मदद करना।माँ को क्या पता था कि निर्दयी बेटे ने उससे मुक्ति पाने के लिए नई योजना तैयार की थी।आने जाने वाले हमदर्द राहगीर उससे पूछते तो एक ही बात कह देती की उसका बेटा खाना लाने गया है और वो घण्टो इंतजार ही……….

आलोक चोपड़ा ( लघुकथाकार )

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