आज लडकियाँ चाहे कितनी भी बडी डिग्री ले लें। शादी के बाद उनकी डिग्री या तो बंद बक्से में दिमक के हवाले कर दी जाती है या फिर ससुराल दव् रा उस डिग्री की अहमियत को गौण कर दिया जाता है। मौजूदा दौर में शादी के बाद पति-बच्चे,घर-गृहस्ती सम्भालना ही लडकी की सबसे बडी डिग्री समझी जाती है। समाज के इस सोच में बदलाव लाना ही “राष्ट्रीय महिला सेना” का मकसद है। “वर्तमान समय में महिलाओं पर हो रहे अत्याचार” विषय पर संवादाता-सम्मेलन के तुरन्त बाद हमारे समाचार संपादक पंकज कुमार श्रीवास्तव को दिये एक खास इंटरव्यू में सेना की राष्ट्रीये अध्यक्ष सुधा सिंह राठौर ने ये बात कही। पेश है उनका खास इंटरव्यू।
बिहार पञिका- महिलाओं के लिए देश में तमाम कानुन और संस्था मौजूद हैं वाबजूद इसके आप ने इस संस्था की स्थापना की?
सुधा सिंह राठौर-महिला थाना, महिला आयोग में या तो केस दर्ज ही नहीं किया जाता है अगर कर भी ली जाती है तो एक लम्बी प्रक्रिया में न्याय अपना मतलब खो देता है।सबसे भयावह स्थिती गरीब तबके के महिलाओं और लडकियों के साथ होता है। पैसा,पावर,समाज,लोक-लाज इन्हें आत्महत्या तक को बाध्य कर देता है। उदहारण के लिए वीणा देवी के केस को ही लें। पति के रखैल का विरोध करने पर देर रात में इन्हें मार-पीट कर घर से बाहर निकाल दिया जाता है निकटवर्ती थाना केस दर्ज करने से इंकार कर देता है। पैसे के अभाव में वीणा जाये तो जाये कहाँ ? घर से बाहर जवान शरीर को वहशी निगाहें घूरती हैं। अंतिम सहारा पास का रेलवे लाईन है लेकिन मासूम बच्चों की ममता यहाँ भी पाँव में बेडी डाल देती है।
बिहार पञिका-माना बेहतर कार्य कर रही है आप,लेकिन वीणा जैसी महिलाओं को अपना हक पाने में वक्त तो लगेगा? पैसे खर्च होगा, इस दरम्यान इनके और इनके बच्चों के परवरिश की जिम्मेंवारी कौन लेगा ?
सुधा सिंह राठौर-। सबसे पहले तो हम प्रभावित महिला के हुनर को जानने का प्रयास करते है कारण ईश्वर ने सबको कुछ न कुछ हुनर देकर भेजा है उसके अनुरूप हम उन्हें संसाधन और रोजगार मुहईया कराते हैं। मसलन कोई कम्पूटर टाईपिग जानता है,कोई सिलाई-कटाई,तो कोई खाना बनाना अब वीणा को महिला छाञवास में खाना बनाने का काम दिला दिया है। वही रहकर अपने बच्चों की बेहतर परवरिश कर रही है।
बिहार पञिका-सुधाजी इस कार्य को अंजाम देने में पैसे का खर्च तो स्वभाविक है, इसका आधार? दूसरी बात इस कार्य को करते हुए आप अपने लिए तमाम दुश्मन भी बनाते जा रही हैं इस विषय पर कभी सोचा है?
सुधा सिंह राठौर-सरकार या फिर किसी अन्य जगह से इस कार्य के लिए पैसा नहीं मिलता, सब अपने स्तर से ही करती हूँ। दूसरी बात प्रायः हर दिन धमकी भरे फोन आते है इस केस से हट जाओं बच्चों को उठवा लूगाँ,हत्या करवा दूगाँ दहशत तो बना ही रहता है। मैं मिडिया के माध्यम से कहना चाहती हूँ सरकार मुझे सुरक्षा मुहईया कराये।
बिहार पञिका-सुधाजी बदलते वक्त में परिवारिक मूल्य दम तोड रहा है इस वक्त में क्या केस-मुकदमा ही अंतिम समाधान है?
सुधा सिंह राठौर-बिल्कुल नहीं हम सबसे पहले पति-पत्नी, प्रेमी-प्रेमिका से व्यतिगत तौर पर आग्रह करते हैं। न मानने पर उनके माता-पिता नाते-रिश्तेदारों से कहते हैं। उसके बाद भी बात नहीं बनी तो पंचायत कराते हैं 90% मामला यही सुलह हो जाता है। अंतिम दशा में थाना-कोर्ट की शरण में जाते हैं।