राष्ट्रपति चुनाव और मिशन 2019

modi-kovind-tweet

आनंद कौशल/ प्रधान संपादक, देश-प्रदेश मीडिया

देश के अगले राष्ट्रपति कौन होंगे इसका फैसला जल्द ही हो जाएगा और इसके साथ ही कौन अपने हैं और कौन पराये इसका भी पता चल जाएगा। बिहार में महागठबंधन के फैसले से इतर जाकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एनडीए प्रत्याशी रामनाथ कोविंद को समर्थन देने का एलान कर दिया है अब कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियों को नीतीश को मनाने का कोई फायदा भी नहीं होने वाला क्योंकि नीतीश एक बार जो निर्णय कर लेते हैं तो फिर किसी की नहीं सुनते। बिहार के राज्यपाल रहते रामनाथ कोविंद का कभी भी विवादों से नाता नहीं रहा क्योंकि इससे पहले कांग्रेस की सरकार में देवानंद कुंअर और विवादों का चोली दामन का साथ रहा था। रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाकर मोदी एंड शाह ने विपक्ष को धराशायी कर दिया है और अब इस फैसले को आगामी लोकसभा चुनाव से भी जोड़कर देखा जा रहा है। भाजपा का ये दांव कई दलितों की हितैषी पार्टियों के लिए वो मुद्दा है जिसपर वो खुलकर विरोध भी नहीं कर पा रहे। उत्तर प्रदेश के कानपुर के रहने वाले रामनाथ कोविंद भाजपा के अनुसूचित जाति मोर्चा के अध्यक्ष भी रह चुके हैं और आरएसएस के पुराने सिपहसलार भी हैं तो ज़ाहिर है कि भाजपा ने भी दलित कार्ड खेल दिया है ताकि 2019 के चुनाव के पहले चुनावी समीकरणों की खाता बही दुरूस्त कर ली जाए। अब सवाल है कि आखिर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने रामनाथ को समर्थन देने का मन क्यों बनाया ? शायद आपको याद होगा जब भाजपा ने रामनाथ कोविंद को बिहार का राज्यपाल बनाकर भेजा था तब उनकी चौतरफा आलोचना की जा रही थी और उस वक्त भी ये कहा जा रहा था कि राज्यपाल के चयन में भी बीजेपी ने जाति को आधार बनाया है। जदयू की तरफ से भी कोविंद की नियुक्ति पर सवाल उठाए गए थे लेकिन जब जदयू को ये लगा कि वो रामनाथ की आलोचना कर अपने वोट बैंक का नुकसान कर रहे हैं तब जाकर विरोध के स्वर शांत हुए लेकिन ढाई सालों में रामनाथ कोविंद का राज्यपाल का कार्यकाल भी बिना किसी विवादों के पूरा हुआ। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जिस तरह से कोविंद को समर्थन देने का एलान किया है उसमें उनका बिहार के राज्यपाल के तौर पर कार्यकाल को अहम माना जा सकता है क्योंकि इससे पहले राजभवन और सीएम हाउस के बीच टकराव अक्सर देखने को मिलता रहता था। राज्यपाल को केंद्र के प्रतिनिधि के तौर पर नियुक्त किया जाता है और कोविंद की नियुक्ति के बाद से ही नीतीश और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रिश्ते मधुर होते चले गए। शायद आपको याद होगा जब भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने भी बिहार के मुखिया नीतीश कुमार की तारीफों के पुल बांधे थे। रामनाथ कोविंद ने सरकार के कई बिलों को अपनी सहमति प्रदान कर संकेत दे दिया था कि वो सरकार से टकराव नहीं चाहते। पिछले महीनों कुलपतियों की नियुक्ति भी बिना किसी विवाद के संपन्न हो गया। कुल मिलाकर रामनाथ कोविंद ने नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी को करीब लाने में बड़ी भूमिका निभायी। अब दूसरा सबसे अहम मुद्दा दलित राजनीति पर विमर्श का है। आपको बता दें कि नीतीश कुमार ने बिहार की सत्ता पर काबिज होने के साथ ही महादलित आयोग का गठन किया और उसकी सिफारिशों के बाद कई जातियों की खोज कर उसे समाज की मुख्यधारा से जोड़ने का काम किया। भाजपा के साथ दूसरी बार चुनाव जीतने में महादलितों की बड़ी आबादी ने नीतीश को अपना समर्थन दिया था जिसे नीतीश ने भी स्वीकार किया था। इस तरह से नीतीश को पता है कि कोविंद का बेजा विरोध करने से दलित बिरादरी में एक गलत संदेश जाएगा। हालांकि कांग्रेस ने पूर्व स्पीकर मीरा कुमार को अपना उम्मीदवार बनाया है लेकिन कांग्रेस द्वारा उम्मीदवार देने में देरी से भाजपा इसका फायदा ले जाएगी इसमें कोई शक नहीं। इधर, जदयू के समर्थन देने के बाद कांग्रेस और राजद ने नीतीश से पुनर्विचार की अपील की है लेकिन नीतीश के अडिग स्वभाव के कारण इसमें कोई सफलता हाथ नहीं दिख रही। वैसे नीतीश कुमार ने इससे पहले कांग्रेस उम्मीदवार और वर्तमान राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के समय भी एनडीए के खिलाफ़ जाकर वोट दिया था। नीतीश हालांकि इससे पहले कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिलकर जल्द से जल्द उम्मीदवार घोषित करने की मांग कर चुके थे लेकिन फैसले में देरी के चलते भाजपा ने अपना दांव चल दिया और कांग्रेस मात खा गयी। राजनीति के चाणक्य नीतीश ने इस फैसले से राजद और कांग्रेस को भी कड़ा संदेश दे दिया है। लगातार विवादों में उलझती राष्ट्रीय जनता दल और मुद्दा विहीन कांग्रेस भी ये मान कर चल रही है कि निकट भविष्य में नीतीश भाजपा के साथ जा सकते हैं। 2019 के चुनाव से पहले राष्ट्रपति की रेस को अहम माना जा सकता है। भाजपा का मिशन 2019 जारी है और सबका साथ सबका विकास की कड़ी में भाजपा एक बड़े वोट बैंक को साधने की कोशिश में है। बिहार के मुखिया नीतीश भी ये मानते हैं कि राजद और कांग्रेस के साथ उनकी ज्यादा दिनों तक नहीं निभेगी और अभी गठबंधन तोड़ने की सूरत में नुकसान जदयू को ही उठाना होगा लिहाजा पार्टी अपनी नीतियों को आगे बढ़ाने में लगी है। नीतीश का मास्टर स्ट्रोक महागठबंधन को क्लीन बोल्ड कर चुकी है लेकिन इस बवंडर का जवाब महागठबंधन किस रूप में देगा ये भी देखना दिलचस्प होगा।

आनंद कौशल

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *