(समीक्षा – अनुभव )
आजादी के पूर्व (1945- 46) संघ कार्यकर्ता के रूप में इस अनमोल रत्न ने मोकामा आना शुरू किया, जो उनके प्रधानमंत्री बनने तक लगा रहा। मोकामा की माटी से उनका लगाव ऐसा रहा कि वह बार-बार मोकामा आए और मोकामा की धरती को धन्य कर गए। मोकामा नगर परिषद के धौरानी टोला निवासी स्वर्गीय बैकुंठ शर्मा की वजह से उनका मोकामा आना शुरू हुआ। बाद(1960-62) के दिनों में प्रसिद्ध दवा व्यवसाई स्वर्गीय आनंद स्वरूप से उनका स्नेह बना और सन 1968 के दिनों में जनसंघ के बेंकटेश बाबू से उनका जुड़ाव हुआ जो अंत तक बना रहा । आपातकाल(1974) के दिनों में उन्होंने मोकामा को अपना सबसे भरोसेमंद शरणस्थली चुना और स्वर्गीय आनंद स्वरूप जी को अपना सबसे भरोसेमंद साथी ।आपातकाल के दौरान मोकामा में उनके करीब छह माह प्रवास की जानकारी सिर्फ आनंद स्वरूप जी को थी।फिर राजनीतिक जीवन में आसपास के क्षेत्रों में कहीं भी उनकी सभा होती है तो रात्रि विश्राम के लिए उनका स्थल मोकामा ही हुआ करता ,जहां वेंकटेश बाबू के यहां वो रात्रि विश्राम करते। मोकामा का प्रसिद्ध बाबा परशुराम मंदिर उनकी आस्था का केंद्र रहा और मोकामा प्रवास के दौरान वो वहां निश्चित रूप से जाते और वहां ध्यान किया करते। बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के चुनाव प्रचार में भी उनका मोकामा दौरा हुआ।
राष्ट्रीय स्तर पर पहली बार मोकामा के ही तो छात्रों, डॉक्टर सुधांशु शेखर और डॉक्टर राजेश कुमार ने अटल बिहारी बाजपेयी पर शोध किया था। सन 2000 में एक ही दिन डॉक्टर सुधांशु शेखर ने “अटल बिहारी वाजपेयी का कवि व्यक्तित्व एक समीक्षात्मक अध्ययन” और डॉक्टर राजेश कुमार ने “अटल बिहारी वाजपेयी का संसदीय जीवन” पर शोध किया ।
मोकामा में उनके प्रसिद्ध उद्गार-
वेंकटेश बाबू के संबंध में (1968) -” मैं यहां जिस मुवक्किल का वकील बन कर आया हूं ,वह मुवक्किल वकील से ज्यादा जानकार है”।
नीतीश कुमार के संबंध में -” मैं आप के जनप्रतिनिधि के चुनावी सभा में वोट मांगने नहीं आया हूं, यह कहने आया हूं कि आपके जनप्रतिनिधि की प्रशंसा प्रतिपक्ष के लोग भी करते हैं”।
टाल क्षेत्र के संबंध में-
“टाल क्षेत्र को मैंने काफी करीब से देखा है, जिस दिन भी केंद्र में मेरी सरकार बनेगी टाल क्षेत्र का स्वरुप बदल जाएगा। यहां के किसानों की किस्मत बदल जाएगी।
( हालाँकि यह नहीं हो सका जिसका मलाल उन्हें शायद निश्चित रूप से रहा होगा।)
लोकतंत्र के संबंध में – “अमावस की अंधेरी रात में भी वियावन जंगलों को चीरती हुई कोई सोलह वर्षीय स्त्री, सोलह श्रृंगार करके सुरक्षित अपने घर पहुंच जाए तभी लोकतंत्र का सही मतलब है।”