जब कभी उस्ताद का जन्मदिन आता है तो एक तरफ खुशी का एहसास होता है तो दूसरी तरफ उनकी यादों से बरबस आंखें गीली हो जाती हैं। हम बात कर रहे हैं भारत रत्न शहनाई नवाज उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की, जिनके साथ बहुत लंबा समय हमे गुजारने का मौका मिला। वो भी क्या दिन हुआ करता था, जिनकी दरों दीवार से सरगम की धून सुनकर दिल झूम जाया करता था। लेकिन अब वो बात कहां ? वाराणसी का हड़हासराय का बिस्मिल्लाह पथ पर अवस्थित उनका मकान हो या फिर उस्ताद की जन्मस्थली डुमरांव का उनका आबाई मकान, बस उन्हें याद कर एक खानापूर्ति कर दी जाती है।
बिस्मिल्लाह खां जिन्हें महज चौथी क्लास तक ही किसी तरह तालिम ले पाए थे। लेकिन सरस्वती ने इनका दूसरे रुप में दरवाजा खटखटाया और डुमरांव का एक साधारण बालक कमरुद्दीन वाराणसी जाकर बिस्मिल्लाह खां बनकर ऐसे उभरे कि पूरी देश-दुनिया के मानस पटल पर अपने शहनाई वादन से पूरी दुनिया को अपना मुरीद बना दिया। गांव की पगडंडियों पर बजने वाली पिपही को शास्त्रीय संगीत की धून छेड़कर एक नय़ा प्रयोग किया जो शहनाई का उन्हें उस्ताद बना दिया। याद है मुझे वो एक वाक्या जब उस्ताद के उपर लिखने की मेरे पिता जी डॉ.शशि भूषण श्रीवास्तव ने मेरे अंदर जिज्ञासा को जगायी। पहली बार 1979 में डुमरांव मेरे घर पर 15 दिन रहने का फिल्म बनाने के लिए ठहरे हुए थे। बाद के दिनों में मैं उनके पास वाराणसी जाने लगा, फिर देखा कि उनके बच्चे थोड़ी नाराजगी जताते थे मगर उन्होंने जो आत्मियता दिखायी वो जेहन से कभी मिटता ही नहीं। कभी जीविकोपार्जन के लिए “बिस्मिल्लाह एंड पार्टी” चलाया करते थे। लेकिन अपने बड़े भाई शम्सुद्दीन के इंतकाल के बाद पार्टी बंद हो गई। बालक कमरुद्दीन टूट गया, उनकी शहनाई धून छेड़ना भूल गई, सबकुछ पल में ही बिखर गया। बहुत लोगों ने समझाया, उसके बाद दोनों परिवारों की जिम्मेदारी वो भी एक नहीं 100 लोगों का संयुक्त परिवार की पूरी जिम्मेवारी उस्ताद ने संभाल ली और अपने जीवनपर्यंत अपनी जिम्मेवारी को बाखूबी निभाया।खैर! बात चाहे जो भी हो लेकिन जब मुझे लगा कि ऐसे इमांदार व्यक्तित्व पर कोई कुछ काम नहीं करने वाला है तो हमने अपनी मेहनत से उस्ताद के उपर एक हिंदी पुस्तक “शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खां” लिख डाली और वो पुस्तक उनके सारे अनछुए पहलुओं को सामने लायी, जिसे लोगों ने काफी पसंद किया। इतना से भी जब जी नहीं भरा तो “सफर-ए-बिस्मिल्लाह” एक डॉक्यूमेंट्री बनाया जिसमें प्रख्यात अभिनेत्री सुधा चंद्रन, गायक कैलाश खेर, अभिनेत्री नीतू चंद्रा ने अपना भरपूर सहयोग दिय़ा। लेकिन मेरे कदम यहीं आकर नहीं ठहरे और उस्ताद के नाम पर प्रतिवर्ष कुछ न कुछ नया करने की ठाल लिया और वर्ष 2013 में “बिस्मिल्लाह खां विश्वविद्यालय” डुमरांव में खोलने की घोषणा तो कर दी, बिहार सरकार के तत्कालीन मंत्री मदन मोहन झा ने डुमरांव में भूमि आवंटन के लिए जांच करने के लिए पत्र तो भेज दिया। लेकिन अफसोस कि एक साल से ज्यादा गुजरने के बाद भी जिले के अधिकारी इस पर कारगर कदम नहीं उठा पाए। मगर हमने जो संकल्प लिया है उनके नाम पर विश्वविद्यालय खोलने का तो उसके लिए शीघ्र ही भिक्षाटन के लिए निकलने वाला हूं और उनकी स्मृति को स्थापित करना मेरे जिंदगी का लक्ष्य है। बिस्मिल्लाह खां के उपर काम करते हुए कई लोगों के ताने को सुनता रहा, मगर इसकी कोई परवाह नहीं किया और काम करता रहा आज की तारीख में उस्ताद पर काम करते-करते 24 साल गुजर गए। मेरे काम करने से ऐसा लगता है कि आज नहीं तो कल उस्ताद की कृति को स्थापित करके ही मानूंगा। अरे, जिसके नाम की शुरुआत ही “बिस्मिल्लाह” से होती है उसे भला आगे बढ़ने से कौन रोक सकता है।