मकर संक्रांति के एक दिन पहले लोहड़ी की धूम

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भारत त्‍योहारों का देश है। देशभर में रचे-बसे अलग-अलग वर्गों के लोग हर त्‍योहार को उल्लास के साथ मनाते हैं। इसी तरह मकर संक्रांति की पूर्व संध्या पर देशभर में खासतौर पर हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश और उत्तर भारत के अन्य हिस्सों में लोहड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।
पारंपरिक तौर पर लोहड़ी का त्‍योहार प्रकृति को धन्यवाद कहने के लिये मनाया जाता है। मकर संक्रांति की पूर्व संध्या पर लोकगीत, रंग-बिरंगी वेशभूषा में नृत्य आदि के साथ फसलों का घर पर स्वागत किया जाता है।
इस दिन ढोलों की थाप गूंजती है जिस पर जमकर नाच-गाना होता है। इसके साथ ही गुड़ की रेवड़ी, मूंगफली और धान खाया जाता है। युवक-युवतियों और नवविवाहित जोड़ों के लिये इस दिन का अपना महत्व है। लोहड़ी की जलती लकड़ियों (समिधा) को साक्षी मानकर जोड़े अपने दांपत्य जीवन के लिये मंगलकामना करते हैं।
मकर संक्रांति से एक दिन पहले उत्तर भारत खासकर हरियाणा, पंजाब, दिल्ली और हिमाचल प्रदेश में लोहड़ी का त्‍योहार मनाया जाता है। किसी न किसी नाम से मकर संक्रांति के दिन या उससे आस-पास भारत के विभिन्न प्रदेशों में कोई न कोई त्‍योहार मनाया जाता है।
मकर संक्रांति के दिन तमिल हिंदू पोंगल का त्यौहार मनाते हैं। असम में बीहू के रूप में यह त्‍योहार मनाने की परंपरा है। इस प्रकार लगभग पूरे भारत में यह विविध रूपों में मनाया जाता है।
पंजाबियों के लिए लोहड़ी खास महत्व रखती है। लोहड़ी से कुछ दिन पहले से ही छोटे बच्चे लोहड़ी के गीत गाकर लोहड़ी हेतु लकड़ियां, मेवे, रेवड़ियां इकट्ठा करने लग जाते हैं। लोहड़ी की संध्या को आग जलाई जाती है।
लोग अग्नि के चारों ओर चक्कर काटते हुए नाचते-गाते हैं व आग में रेवड़ी, खील, मक्का की आहुति देते हैं। आग के चारों ओर बैठकर लोग आग सेंकते हैं व रेवड़ी, खील, गज्जक, मक्का खाने का आनंद लेते हैं।
जिस घर में नई शादी हुई हो या बच्चा हुआ हो उन्हें विशेष तौर पर बधाई दी जाती है। प्राय: घर में नव वधू या और बच्चे की पहली लोहड़ी बहुत विशेष होती है।
लोहड़ी को पहले तिलोड़ी कहा जाता था। यह शब्द तिल तथा रोड़ी (गुड़ की रोड़ी) शब्दों के मेल से बना है, जो समय के साथ बदल कर लोहड़ी के रुप में प्रसिद्ध हो गया। हर साल 13 जनवरी को लोहड़ी का त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है । लोहड़ी को दुल्ला भट्टी की एक कहानी से भी जोड़ा जाता हैं।
लोहड़ी की सभी गानों को दुल्ला भट्टी से ही जुड़ा तथा यह भी कह सकते हैं की लोहड़ी के गानों का केंद्र बिंदु दुल्ला भट्टी को ही बनाया जाता हैं। मुख्‍य रूप से इस किवदंती के अनुसार एक ब्राह्मण की बहुत छोटी कुंवारी कन्या को जो बहुत सुंदर थी उसे गुंडों ने उठा लिया।
दुल्ला भट्टी ने जो मुसलमान था, इस कन्या को उन गुंडों से छुड़ाया और उसका विवाह एक ब्राह्मण के लड़के से कर दिया। इस दुल्ला भट्टी की याद आज भी लोगों के दिलों में हैं और लोहड़ी के अवसर पर छोटे बच्चे गीत गाकर दुल्ला भट्टी को याद करते हैं।

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