भिक्षाटन कर खोल दिये तीन कॉलेज, अब विश्वविद्यालय खोलने की ठानी

साधारण सा दिखने वाला एक व्यक्ति समाज को क्या दे गया इसे लोग शायद फिलहाल नहीं समझ सकेगे ,किन्तु उस संत ने जो ज्ञान ज्योति जला दी है उससे क्षेत्र और पूरा जिला वर्षो तक प्रकाशित होता रहेगा।मुश्किल से अक्षर की पहचान मात्र रखने वाले एक संत ने शिक्षा की अलख जगाया है। एक क्षेत्र विशेष में दो इंटर और एक डिग्री कॉलेज की स्थापना उस संत का समाज में योगदान की कहानी कह रहा है।संत का अब अंतिम जिद है कि एक विश्वविद्यालय खोल कर ही अंतिम सांस लूं। संत को कॉलेज के आर्थिक मामलों से कोई विशेष लगाव तक नहीं है। ये कहानी भेल्दी थाना क्षेत्र के सराय बक्स में एक मठ में रह रहे संत श्रीधर दास की है। श्रीधर दास विख्यात संत देवरहवा बाबा के शिष्य बताये जाते है।देवरहवा बाबा ने ही दिघवारा हराजी निवासी एक 17 वर्षीय किशोर शिवपूजन राय को श्रीधर दास का नाम दिया था और अब यही नाम संत की पहचान है। शिक्षक की प्रताड़ना से तंग आकर छोड़ दी पढ़ाई,फिर इस संत ने एक-एक रुपये इकठ्‌ठा की और खोल दी कॉलेज। श्रीधर दास जब दूसरी कक्षा में थे तो स्कूल के शिक्षक की प्रताड़ना से तंग आकर विद्यालय में ही स्लेट तोड़ उसके बाद पढाई छोड़ दी। नन्हे बालक के मन में पढाई की टिस खत्म नहीं हुई।अबोध मन में यह बात घर कर गई थी कि वह ऐसा जरुर करेंगे कि सैकड़ो,हजारों लोग पढ़ लिख सके।किशोरावस्था में शिवपूजन ने धन कमाने की लालशा में घर छोड़ा था,लेकिन किस्मत ने उन्हें देवरहवा बाबा तक पहुंचा दिया और वे संत बन गये।

35 बर्षो तक साधना,फिर भिक्षाटन,जमीन खरीदकर खोले कॉलेज

करीब 35 वर्षों तक साधना में भटकते रहे इसी दौरान 1978 में अपने गांव दिघवारा हराजी लौटे। यही से वे समाज के लिए कुछ करने की इक्छा लेकर गड़खा आ गये और रामपुर खाकी मठिया में एक यज्ञ करवाया।गांव गांव घूमे कॉलेज के लिए सहयोग मांगा,एक एक रुपया जमाकर 1984 में कदना,गरखा में देवरहवा बाबा श्रीधर दास इंटर कॉलेज की नींव रखी। कॉलेज में बच्चे पढ़ने आने लगे उसके बाद श्रीधर दास अमनौर प्रखंड के भेल्दी पहुंचे और 1988 में यहां भी इसी नाम से कॉलेज खोल दिया। इसी दौरान दूरदर्शी श्रीधर दास ने इंटर से आगे की पढाई के लिए डिग्री कॉलेज की नींव रख दी थी।1992 में देवरहवा बाबा श्रीधर दास डिग्री कॉलेज को बिहार यूनीवर्सिटी ने एफलिएशन भी दे दिया था ।लेकिन इसी बीच कदना में एक साथ इंटर डिग्री कॉलेज चलने से पेच फंस गया। तब श्रीधर दास ने फिर भिक्षाटन शुरू किया और रामपुर में 10 एकड़ जमीन खरीद डिग्री कॉलेज का अलग भवन बनवाया।आज गड़खा और भेल्दी का यह क्षेत्र जहां के लड़के,लड़कियां सुविधा के आभाव में मैट्रिक से आगे की पढाई नहीं कर पाते थे ।आज उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे है। गड़खा और भेल्दी का क्षेत्र मुख्यालय से 15-25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है ।पहले यहां एक भी कॉलेज नहीं था। परिवहन का साधन नहीं होने से इंटर और ग्रेजुएट छात्रों की संख्या काफी नगण्य थी ।लड़के 10वीं के बाद पढाई छोड़ देते थे। लडकियों की स्थिति तो अत्यंत दयनीय थी, उन्हें तो हाई स्कूल तक जाने का मौका ही नहीं मिलता था।लेकिन कॉलेज की स्थापना के बाद से क्षेत्र में शिक्षा क्रांति आई।आज यह क्षेत्र उच्च शिक्षा के ग्राफ में तेजी से आगे बढ़ रहा है ।अब लड़कियां भी स्नातक तक पढाई कर रही है। लड़कियों की यह शिक्षा उनके आत्मविश्वास को भी बढ़ा रहा है जो संत श्रीधर दास के सार्थक पहल का असर है।

संत का अंतिम जिद, विश्विद्यालय खोलकर ही ले अंतिम सांस

श्रीधर दास खुद को यही रुका हुआ नहीं मानते वे कहते है कि अपनी समाधी से पहले एक यूनिवर्सिटी खोल सके यह मेरी अंतिम जिद व इच्छा है ।वे कहते है कि व्यक्ति को कभी हार नहीं मानना चाहिए।जिंदगी की सार्थकता इसी में कि लोगों के लिए ,समाज के हित में कुछ कर गुजरु। यहां पढने वाले छात्र-छात्राएं अब केवल स्थानीय ही नहीं बल्कि प्रमंडल के कई प्रखंडो से विद्यार्थी यहां पढने आते है। यहां से ग्रेजुएट होने वाले छात्र-छात्राओं में सिवान और गोपालगंज से आने वाले विद्यार्थियो की संख्या भी कम नहीं। विद्यार्थियो की यह संख्या साक्षरता के संत श्रीधर दास के एक बड़े प्रयास को सीधे तौर पर सामने रखती है ।

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