बिहार से थे खट्टे-मीठे रिश्ते वाजपेयी के, अटल दुःखी थे रामविलास के पीठ में छुरा घोंपने वालो से !

न्यूज़ डेस्क-दिवंगत प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी का बिहार से गहरा नाता रहा है, मीठा रिश्ता भी रहा है और अत्यंत खट्टा रिश्ता भी। बहुत तीखी पीड़ा पहुंचाने वाला अनुभव भी उन्हें बिहार ने ही दिया। उन्हें वह पीड़ा देने वाले व्यक्ति का नाम रामविलास पासवान है। 1999 में रामविलास पासवान ने उनकी पीठ में दुरा भोंकने का काम किया। उस वर्ष महज एक वोट से वाजपेयी जी की सरकार गिर गई थी। वह एक वोट नहीं देने वाले, सरकार के खिलाफ वोट करने वाले का नाम था रामविलास पासवान। उन्होंने ही तब अटल जी को वह वोट न देकर, विपक्ष का साथ देकर उनकी सरकार गिरा दी थी। उस वक्त अटल जी को असीम पीड़ा हुई थी, मात्र 13 महीने में उनकी सरकार गिरा दी गई थी। तकरीबन बीस वर्ष पूर्व उनकी सरकार गिराने वाली सबसे बड़ी खलनायिका जयललिता थी तो दूसरा बड़ा नाम पांच सितारा दलित नेता रामविलास पासवान का था।

रामविलास पासवान ने किस वजह से अटल जी का विरोध किया था यह आज तक पता नहीं चल सका है। लेकिन, उनके द्वारा उस दिन वाजपेयी सरकार के खिलाफ मतदान करने का असर यह हुआ कि सरकार गिर गई और मध्यावधि चुनाव आवश्यक हो गया। इसके बावजूद विशाल हृदय के अटल बिहारी वाजपेयी जी ने रामविलास पासवान को माफ कर दिया जब वे उनकी शरण में आ कर गठबंधन करने के लिए बेचैन हो गये थे। तब कार्यकारी प्रधानमंत्री बाजपेयी जी ने उन्हें गठबंधन का साझीदार बना कर एनडीए में शामिल कर लिया।

1999 के लोकसभा चुनाव में हाजीपुर लोकसभा क्षेत्र में बीजेपी के कार्यकर्ताओं ने जम कर रामविलास के पक्ष में प्रचार किया। स्वयं वाजपेयी जी ने उनके लिए विशेष फरमान जारी किया था। उन्हें पता था कि जिस तरह रामविलास पासवान ने उनकी पीठ में छुरा घोंपा था उसके बाद हाजीपुर की जनता रामविलास पासवान को कतई माफ नहीं करेगी। बहरहाल बाजपेयी जी के फरमान के बाद वहां की जनता ने पासवान के पक्ष में मतदान किया। रामविलास पासवान ने न सिर्फ चुनाव जीता वरन वाजपेयी मंत्रिमंडल में मंत्री भी बने।

संचार मंत्री और कोयला मंत्री का दायित्व बारी-बारी से मिला। उसके बाद फिर उन्होंने प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को धोखा दिया 2002 में। वे वाजपेयी जी के विरोध में उतर गये। तथाकथत गुजरात दंगे के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के विरोध में कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया था। उसके बाद वे बीजेपी सरकार के खिलाफ जहर उगलने लगे। बाजपेयी जी इस बार बहुत आहत हुए थे। उन्हें लगा कि उन्होंने जिस रामविलास पासवान को माफ कर दिया था वे अपनी हरकत से बाज नहीं आये और फिश्र उनकी पीठ में छुरा भोंकने से गुरेज नहीं किया। उन्हें लगा कि जो पासवान उनके खिलाफ मतदान करने की वजह से चुनाव हार जाते यदि उन्हें जिताने के लिए बीजेपी काय्रकर्ताओं ने जी-तोड़ मेहनत न की होती।

लेकिन रामविलास पासवान ने फिर से उन्हें ठग लिया है। इस बार बाजपेयी पासवान को दिल से माफ नहीं कर पाये थे। गौरतलब है कि 2000 में जब बिहार विधानसभा चुनाव हो रहा था उस समय भी पासवान एनडीए की ओर से मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनना चाहते थे। गठबंधन के बहुत से नेता राजी भी थे लेकिन बाजपेयी जी उन्हें बहुत विश्वसनीय नहीं मानते थे। लिहाजा उन्होंने पासवान की बजाय नीतीश कुमार को गठबंधनद का नेता बनाने का सुझाव दिया और नीतीश कुमार ही तब बिहार में एनडीए के नेता बने थे। हालांकि बहुमत न होने की वजह से वे केवल सात दिन ही मुख्यमंत्री रहे थे। मतलब साफ है कि बिहार से प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी का गहरा नाता था, मीठा जुड़ाव था तो रामविलास पासवान को लेकर खट्टी यादें भी थी।

बाद में वही रामविलास पासवान उन्हीं नरेन्द्र मोदी की शरण में गये ही नहीं बल्कि उनकी कृपा से सांसद बने और अभी उनकी कैबिनेट में मंत्री भी हैं। यदि बाजपेयी जी पूरी तरह स्वस्थ रहते और उनकी स्मृति लुप्त नहीं हुई होती तो नरेन्द्र मोदी चाह कर भी रामविलास पासवान को कैबिनेट में मंत्री नहीं बनाते। यदि बाजपेयी जी की स्मृति बरकरार रहती तो इस बार तो वे पासवान को कतई माफ नहीं करते।

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