लालू प्रसाद में अगर हिम्मत नहीं होती तो चारा घोटाले में आरोपित हो कर जेल जाते समय अपनी पत्नी राबड़ी देवी को बिहार की छाती पर नहीं बैठाते। यह लालू प्रसाद की हिम्मत ही है कि 750 करोड़ के चारा घोटाले में 5 साल के लिए सजायाफ्ता होने के बावजूद लूट मचा कर अपने परिजनों की जिन्दगी बर्बाद करने से वे कभी नहीं डरे।
लालू यादव की हिम्मत को दाद देनी चाहिए कि पंचायत तक का चुनाव नहीं लड़ सकते हैं और एक समय डेढ़ सौ से घट कर विधायकों की संख्या 22 पर सिमट गई थी मगर अपने पतन पर कभी उन्हें मलाल नहीं रहा। रेलमंत्री बनने के साथ ही दोनों हाथों से भ्रष्टाचार जनित कालेधन के जरिए अकूत बेनामी सम्पति बटोरना शुरू कर दिया।
विधायक, सांसद और मंत्री बनाने के लिए राजनेताओं तक से जमीन लिखवा लिया। पटना में 2 बीघा बेनामी जमीन हथिया लिया जिस पर तेजस्वी यादव का 750 करोड़ की लागत से बिहार का सबसे बड़ा मॉल बन रहा है। यह लालू यादव की हिम्मत ही है कि उन्होंने बीपीएल ललन चौधरी, रेलवे के खलासी हृदयानंद चौधरी और प्रभुनाथ यादव जैसे गरीब तक से करोड़ों की जमीन दान करवा लिया तथा आधे दर्जन मुखौटा कम्पनियों के जरिए करोड़ों की बेनामी सम्पति बेटों-बेटियों के नाम पर बटोर लिया।
गरीब जनता को लूटने की हिम्मत तो लालू यादव में जरूर थी, मगर 15 वर्षों तक राज करने के बावजूद बिहार की सड़कों को दुरुस्त करने, अलकतरा घोटाला, अपहरण उद्योग व सामूहिक नरसंहार को रोकने तथा आतंक के पर्याय शहाबुद्दीन जैसों पर करवाई करने की वे हिम्मत कभी नहीं दिखा पायें।