मुंबई : बिहार में नालंदा भी है और राजगीर भी, लालू भी हैं और कई सारे चालू भी, लेकिन इसको पूरे देश में चर्चित या तो कोसी की प्रलयंकारी ज्वार करती है या फिर प्रतिभाओं की भरमार. बिहार की तमाम प्रतिभाओं से मायानगरी मुंबई भी जगमग हो रही है. ऐसी ही बिहारी प्रतिभा का नाम है चंदन देव. चंदन अपनी खुशबू से मायानगरी को महका रहे हैं, लेकिन सुपौल से निकलकर यहां तक पहुंचने का सफर इतना आसान नहीं रहा है.
आसान तो खैर जिंदगी भी नहीं होती, लेकिन चंदन के सपने सारी मुश्किलातों पर भारी थीं. बिहार-नेपाल की सीमा पर प्रदेश के अतिपिछड़े जिलों में शुमार सुपौल का एक लड़का अपनी छाप छोड़ेगा, ऐसा विश्वास तो शायद ही किसी को रहा होगा, लेकिन बिहार की माटी में ही कुछ ऐसा है कि आईएएस, आईपीएस ही नहीं निकलते. यहां से प्रकाश झा, पंकज त्रिपाठी, मनोज बाजपेयी और चंदन देव भी निकलते हैं.
सुपौल जिले के राघोपुर प्रखंड के गोसपुर गांव के चंदन देव के लिये अभिनय में करियर तलाशने की राह आसान नहीं थी. बौराहा पंचायत के मुखिया और चंदन के पिता देव नारायण देव चाहते थे कि उनका लड़का भी पढ़-लिखकर प्रशासनिक अधिकारी बने और उनका नाम रोशन करे, लेकिन चंदन ने कुछ और ही सपने पाल रखे थे. उन्हीं सपनों को तलाशते हुए चंदन मायानगरी के एक सफल और चर्चित कास्टिंग डाइरेक्टर बन चुके हैं.
चंदन बताते हैं कि दो भाई और तीन बहनों में सबसे छोटे हैं. बड़े भाई का नाम सुनील देव है. चंदन करजाइन हाई स्कूल से मैट्रिक पास करने के बाद आगे की पढ़ाई पूरी करने सहरसा चले आए. यहां आरएम कालेज से इंटर और ग्रेजुएशन पूरा किया. यूपीएससी और बीपीएससी पास करने का सपना लेकर आये चंदन का रूझान अचानक रंगमंच की तरफ हो गया. इसीलिये चंदन सहरसा को अपना दूसरा जन्मभूमि भी मानते हैं.
चंदन कहते हैं कि ऐसा लगता है कि भगवान को कुछ और ही मंजूर था. दशहरा पूजा के दौरान सहरसा में पंचकोशी सांस्कृतिक संस्थान की तरफ़ से कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसमें अलग-अलग ज़िलों के कलाकारों ने अपनी-अपनी प्रतिभा का कौशल नाटकों के माध्यम से प्रस्तुत किया. इस कार्यक्रम को देखने मैं भी गया था. इस कार्यक्रम को देखने के बाद रात में मुझे नींद ही नहीं आई.
चंदन बताते हैं कि इस कार्यक्रम को देखने के बाद मेरे अंदर का कलाकार शायद जाग गया था. वह अगले ही सुबह पंचकोशी संस्थान से जुड़ने के लिए इसके कर्ताधर्ता से मिलने चले गये. गर्ल्स हाई स्कूल, जहां इस संस्थान के कार्यक्रमों का रिहर्सल किया जाता था, वहां उनकी मुलाकात राजन भैया और मनोज भैया से हुई. कुछ बातचीत के बाद इन्होंने चंदन को अपने ग्रुप में शामिल कर लिया.
चंदन मन लगाकर कार्यक्रमों और नाटकों में प्रतिभाग करने लगे, लेकिन उनके इस काम की जानकारी घर पर किसी को नहीं थी. इसी बीच किसी ने चंदन के पिताजी को जानकारी दे दी कि वह सहरसा में नाटक और ड्रामा में काम कर रहा है. चंदने बताते हैं कि उन्हें घर से बुलाया आया. उनके पिताजी और परिवार के अन्य सदस्य मेरे इस काम से बेहद नाराज थे. नाटकों में काम छोड़कर पढ़ाई में मन लगाने की ताकीद की गई.
चंदन कहते हैं कि मैं पूरी तरह तय कर चुका था कि अब अपना करियर इसी दिशा में आगे बढ़ाना है. घर वालों की नाराजगी के बावजूद मैं अभिनय छोड़ने को तैयार नहीं हुआ. मेरा जोश, जज्बा, जुनून और जिद देखकर पिताजी भी अपनी नाराजगी को दरकिनार करते हुए मुझे इसमें अपना करियर बनाने की इजाजत दे दी. चंदन सहरसा से ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद अपने सपनों की तलाश में दूसरे बिहारियों की तरह दिल्ली रवाना हो गये. इस दौरान चंदन ने दिल्ली में काफी प्ले देखे, जिसमें अधिकतर एनएसडी के छात्रों द्वारा किया गया.
चंदन ने भी एनएसडी में जाने के लिये परीक्षा दी, जिसके बाद उनका सलेक्शन मंडी ड्रामा इंस्टीट्यूट हिमाचल प्रदेश के लिये हो गया, जहां इन्होंने 1 साल का कोर्स किया. किसान परिवार का सदस्य होने के नाते चंदन के पास आर्थिक कारणों से जल्द सेटल होने का दबाव था. उन्हें जल्द से जल्द अपने पैरों पर खड़ा होना था. चंदन की मां सावित्री देवी और ने दीदी और जीजा ने पूरा मोरल सपोर्ट दिया.
कोर्स करने के बाद चंदन अपने सपनों की तलाश में मायानगरी मुंबई की राह पकड़ ली, जहां ना तो कोई जानने वाला था और ना ही पहचानने वाला. जिम्मेदारियों का बोझ अलग से था. यानी जो करना था खुद करना था. बहुत दिनों तक घर से सहायता लेना भी चंदन को परेशान कर रहा था. इस दौर में चंदन की कई रातें फांकाकशी में गुजरीं, जिसने इन्हें और अधिक मजबूत बनाया. यही मजबूती बाद में मुश्किल राहें आसान करती गईं.
चंदन कहते हैं कि मैं बचपन से ही भगवान पर विश्वास करते हैं. चंदन बताते हैं कि भगवान और परिजनों की कृपा से 2008 में उन्होंने बालाजी प्रोडक्शन में एक्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर के पद पर ज्वाइन किया. काफी समय बालाजी के साथ जुड़ा रहा, साथ ही इस दौरान तमाम तरह के उतार और चढ़ाव भी देखे. पर हिम्मत नहीं हारा. चरैवेति चैरेवेति में भरोसा करते हुए चलता रहा.
चंदन कहते हैं कि आज कास्टिंग डाइरेक्टर के रूप में पहचान बनी है, वह बस बड़ों का अशीर्वाद और मेरी मेहनत का प्रतिफल है. इसे और आगे ले जाना है. मुंबई मेरी कर्मभूमि है, जिसमें मैं बेहद प्यार करता हूं. उल्लेखनीय है कि चंदन चर्चित धारावाहिकों – देवों के देव महादेव, फुलवा, बुद्धा के कास्टिंग डाइरेक्टर रह चुके हैं. फिलहाल वह राइटर गैलेक्सी संस्थान में बतौर कास्टिंग डाइरेक्टर कार्यरत हैं. इसके अलावा वह आने वाली कई वेब सीरीज, फिल्मों एवं धारावाहिकों में भी कास्टिंग कर रहे हैं.