मधुप मणि ‘‘पिक्कू’’
(लेखक एक स्थानीय न्यूज चैनल के सामाचार सम्पादक हैं)
देश के कई शहर मेट्रो होने की बात कर रहें तो कई शहरों को स्मार्ट सिटी बनाने की योजना चल रही है। पर उसी देश में एक ऐसा भी शहर है जो एक राज्य की राजधानी होने के बावजूद भी यहां के लोग नारकीय जीवन व्यतीत करते हैं। पटना शहर के नाम से जाना वाला इस शहर में अंधेर नगरी वाली हाल है। यहां सरकार टैक्स के नाम पर करोड़ों की वसूली करती हैं पर सुविधा के नाम पर मानव जाति के लिए अति महत्वपूर्ण पेयजल भी आम लोगों को मुहैया कराने में असफल, और बारिश के पानी को घर-घर पहुंचाने में सफल होती हैं। यहां बाढ़ गंगा-जमुना-कोशी के पानी से नहीं बल्कि चन्द घंटों की बरसात से आता है। पटना में नगर निगम नाम की एक चीज है जिसका एक कार्यालय भी शहर के एक पाॅश इलाके में है। इसमें कई कर्मचारी काम भी करते हैं और इसके कई खण्डहरनुमा ब्रान्च कार्यालय भी शहर के कई क्षेत्रों में हैं। यह पूर्णतः सरकारी है और सरकार के उस पैसे से चलता है जो जनता से विभिन्न टैक्सों के माध्यम से रंगदारी वसूली जाती है। यह शहर उस राज्य की राजधानी है जहां पर एक मुख्यिा भी मुख्यमंत्री के रूप में कार्य करते है परन्तु वो अपने हीं उलझे हुए बयानों में सुलझाने में उलझ जाते हैं। माननीय पटना उच्च न्यायालय के सभी आदेशों को तार-तार करने वाली नगर निगम शहर में जलजमाव समाप्त करने में असफल हुआ। न्यू बाईपास से सटे कई इलाकों में महीनों से जलजमाव होने के बावजूद भी निकासी कोई व्यवस्था नहीं हुई।
कहने को ये राज्य देश में अपनी ऐतिहासिक पहचान बनाता है परन्तु इस राज्य में इन्सान की हैसियत कीड़े-मकोड़ों से ज्यादा नहीं है। यहां उतना भी रोजगार उपलब्ध नहीं है कि लोग अपनी रोजी – रोटी का इन्तजाम कर सके, सत्ता से लेकर विपक्ष तक जातिवाद की जंजीरों में जकड़ा है। सड़क चलने के लिए नहीं रेंगने के लिए हैं। राजधानी से बाहर जाना हो तो जीरेा माईल से फतुहा और बख्तियारपुर तक वाहनों का सड़कना भी मुश्किल। 6 से 7 किलोमीटर के गांधी सेतु को पार करने में 6 से 7 घंटे लग जाये तो कोई बड़ी बात नहीं। खगौल से बिहटा जाने वाली सड़कों पर ट्रकों की लम्बी लाईनें और बदहाल सड़कें। क्योंकि आप आम आदमी हैं। आपके समय, शारिरिक और आर्थिक कष्ट की कोई कीमत नहीं है। ये तो हो गयी बाहर जाने की बात, राज्य के राजधानी की स्थिति भी तकरीबन यही है। दुसरे राज्यों की शहर में जितना समय लोगों को एक शहर से दुसरे शहर जाने में लगता है उतना समय पटना मे एक मुहल्ले से दुसरे मुहल्ले जाने में लगता है। गुगल मैप की बात करें तो 100 किलोमीटर की दुरी तय करने में डेढ़ से दो घंटे का समय लगना चाहिए यहाँ की मुख्य सड़कों पर डेढ़ किमी की दुरी तय करने में हीं डे़ढ घंटे लग जाते हैं। यातायात व्यवस्था सुधारने के लिए राजधानी में ट्रैफिक पोस्ट पर सिग्नल भी लगाया गया पर वह महीनों बाद हीं बन्द हो गया। सम्बन्धित विभाग ने उसे दुरूस्त कराने की कोशिश भी नहीं की। बिजली आपूर्ति की स्थिति यह है कि छोटे-मोटे व्यवसाय को प्रभावित करते हैं। बिजली के पोल और तारों की स्थिति अत्यन्त जर्जर हो चुकी है यही कारण है कि अक्सर तार गिरने और करन्ट से लोगो की मौतों की शिकायतें मिलती हैं। राज्य में विभाग के पास काफी काम है इसलिए वे कोई काम नहीं करते। जिला कार्यालय का हाल तो यह है कि सरकार के द्वारा चलाये जा रहे विभिन्न सरकारी परियोजनाओं को अमली जामा पहनाने में नाको चने चबाना पड़ जाये। एक गैर सरकारी संस्था के अधिकारी ने बताया कि जिला कार्यालय में समाजिक कल्याण से सम्बन्धित सरकारी परियोजनाओं के कागजात पर हस्ताक्षर करवाने के लिए वे महीनों से चक्कर लगा रहे हैं। अधिकारी तो अधिकारी क्लर्क भी मुख्यमंत्री से नीचे बातें नहीं करते।
सन् 2000 में बिहार विधानमंडल ने प्रान्त के बंटवारे पर मुहर लगा दी और बिहार के हिस्से बदहाली मिली। संसाधनों से भरपुर झारखण्ड भी राजनितिक दावं-पेंच में पिसती रही और बिहार को कभी बाढ़ ले डुबा तो कभी भ्रष्टाचार। यहां विकास के कई रोड़े हैं जिसमें एक सबसे बड़ा रोड़ा राज्य सरकार के अधीनस्थ कार्य कर रही विभागें हैं। हर एक विभाग में विवाद है मंत्री और सचिव के आपसी विवादों का रोना लालू प्रसाद के कार्यकाल से हीं रहा है। वहां मंत्रियों और नेताओं की चलती थी और अफसर लाचार रहते थें, तो नीतीश कुमार के राज्य में अफसर सीधे मुख्यमंत्री से रूबरू होते थें और मंत्री-विधायक लाचार रहते थें। वत्र्तमान समय तो यह प्रतीत होता है कि मुखिया हीं लाचार हैं। एक कैबिनेट मंत्री स्तरीय जदयू नेता ने तो अनआॅफिसियल बात-चीत में यहां तक कह दिया हमारे विभागीय सचिव किसी भी बैठक में नहीं आते हैं जिससे काम आगे बढ़ाने में परेशानी होती है और हम कुछ नहीं कर पाते क्योंकि वह सीधे अलाकमान से बात करते हैं। जनता की लाचारगी का आलम यह है कि शहर के महापौर और नगर निगम के आयुक्त में 36 का आंकड़ा है। आरोप प्रत्यारोप के बीच आम जनता जिसकी पहुंच न तो आयुक्त तक है और न हीं मेयर तक वे बेचारे समस्याओ से त्रस्त हैं। अब माननीय न्यायालय को भी यह एहसास हो गया होगा कि जब राजा हीं चैपट हो तो अंधेर नगरी तो अंधेर ही रहेगी।