बटसार :- भाई जब भाई को प्रेम करने जाय, तो किसी को बीच मे दीवार नही बननी चाहिए। जितना त्याग कर मनुष्य भगवान के पास जाता है, उतना ही त्याग कर भगवान आपसे मिलने आते है। ये बाते बटसार पंचायत के खगड़ा गांव में आयोजित सरस संगीतमयी रामकथा के आठवें दिन सोमवार को प्रेमभूषण जी महाराज के कृपापत्र राजन जी महाराज ने भरत मिलाप, सूर्पनखा की नाक कटना, खरदूषण वध, सीता हरण, मारीच और जटायु मोक्ष की कथा सुनते हुए कही।
दूसरे का धन लेते समय जो मन होता है , वही धन देने वक्त वह मन नही रहता है
महाराज ने कहा कि दूसरे का धन लेते समय जो मन होता है , वही धन देने वक्त वह मन नही रहता है। वैसी संपत्ति को कभी भी स्वीकार ही नही करनी चाहिए। महाराज ने बताया कि जिस समय भगवान श्रीराम को वन भेजने की बात चली थी, उस समय भरत और शत्रुघ्न दोनों ननिहाल गए थे। वापस लौटने पर उन्हें सारी बातों की जानकारी हुई। उन्होंने कुबड़ी को दंड दिया और मां का तिरस्कार कर वे प्रभु राम को वापस लाने पर विचार करने लगे।
इस उद्देश्य से वे नगरवासियों के संग चित्रकूट रवाना हुए। भरत जैसे ही राम को देखते है कि उनकी आंखों से अश्रु की धारा बहने लगती है। राम और भरत आपस में गले लगकर भाव विभोर हो जाते हैं। दोनों के आंखों से आंसुओ की धार बहने लगती है। भरत श्री राम से कहते बड़े भैया अयोध्या लौट चलो। आयोध्या के नगरवासी आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। इस पर राम कहते है भरत अयोध्या को तुम संभालो। वे 14 वर्ष बाद ही अयोध्या लौटेंगे। राम ने भरत को बहुत समझाया। साथ ही कुल की मर्यादा और पिता के द्वारा दिए गए वचन को निभाने की बात बोले। इस पर भरत ने संकल्प लिया कि वे गद्दी पर तो नहीं बैठेंगे। सेवक थे और सेवक बनकर अयोध्या की सेवा करेंगे।
भरत बोले आपकी अनुपस्थिति में आपका खड़ाऊ रखकर वो अयोध्या का राज्य संभालेंगे। तब भरत उनकी चरण पादुका लेकर अयोध्या लौट जाते हैं। महाराज ने राम भरत मिलाप के प्रसंग सुंदर भजन भरत चले चित्रकूट रामा राम को मानने भजन के माध्यम से बड़े ही मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया।
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