अपने मुख्यमंत्रित्व काल में राबड़ी देवी ने पद का दुरुपयोग कर एमएलए को-ऑपरेटिव की 10-10 लाख रुपये बाजार मूल्य की जमीन औने-पौने कीमत पर पूर्व मंत्री सुधा श्रीवास्तव और अब्दुल बारी सिद्दीकी से लिखवा लिया। आश्चर्य की बात है कि 1992-93 में समिति से 5.59 डिसमिल जमीन 37 हजार रुपये में आवंटियों ने ली थी जिसे 10 वर्षों के बाद भी राबड़ी देवी ने मात्र 37 हजार रुपये में ही लिखवा लिया जबकि आज उस जमीन की बाजार कीमत एक करोड़ रुपये से ज्यादा होगी।
आखिर तेजप्रताप और तेजस्वी यादव में ऐसी कौन सी खासीयत है कि रघुनाथ झा और कांति सिंह जहां उन्हें करोड़ों के जमीन-मकान गिफ्ट कर देते हैं वहीं पूर्व मंत्री सुधा श्रीवास्तव और अब्दुल बारी सिद्दीकी जैसे अपनी लाखों की जमीन महज कुछ हजार में राबड़ी देवी को बेच देते हैं?
आखिर लालू प्रसाद के करीबी एमएलए को-ऑपरेटिव के अध्यक्ष जयप्रकाश नारायण यादव और सचिव भोला यादव ने अब तक आवंटियों की सूची सार्वजनिक कर यह क्यों नहीं बताया है कि किन आवंटियों को एक से अधिक प्लॉट आवंटित किए गए हैं तथा किसने आवासीय की जगह व्यावसायिक इस्तेमाल किया है? को-ऑपरेटिव के नियमों की धज्जी उड़ाई गई है मगर उसे तत्काल भंग करने के बजाय सरकार गिरने के डर से मुख्यमंत्री अब तक क्यों चुप्पी साधे हुए हैं?