पूर्वी धुन के रचयिता महान स्वतन्त्रता सेनानी पंडित महेंद्र मिश्र …

अनूप नारायण सिंह
पूर्वी गीतों में आज भी जिन्दा हैं पंडित जी,
आगुलि में डसले बिया नागिनिया रे, हाय ननदी सैंया के जागा द.। सासु मोरा मारे रामा बास के छेवकिया की ननदिया मोरा रे सुसुकत पनिया के जाय.जैसे कई लोक प्रिय धुन जब सुनाई पड़ती हैं तो बरबस ही इन गीतों के रचियता पंडित महेंद्र मिश्रा की याद हर भोजपुरी भाषा भाषी के लोगों को आ ही जाती है। पर बहुत कम लोग ही यह जानते है की पूर्वी धुनों के जनक पंडित महेंद्र मिश्र का जन्म सारण जिला के जलालपुर प्रखण्ड के मिश्रवलिया गाव में 16 मार्च 1886 को हुआ था।
अंग्रेजी हुकूमत को जाली नोटों से डांवाडोल कर दिया था
आजादी के लड़ाई में अंग्रेजी हुकूमत को डांवाडोल करने वाले पंडित महेंद्र मिश्र जाली नोट छाप कर स्वतन्त्रता संग्राम में जुड़े लोगो की आर्थिक मदद कर अपनी एक अलग ही पहचान बनाई थी। होता यह था की जब रात में सब लोग सो जाते थे तो आंगन के शिव मंदिर में पूजा के बहाने जाकर पंडित जी सारी रात नोट छापते और सुबह यही नोट भिखारियों को दे देते। दरअसल यह भिखारी लोग स्वतन्त्रता सेनानी होते थे। जिसे अंग्रेजी हुकूमत डांवाडोल हो गयी थी।
सीआइडी को लगे थे तीन साल
बताते हैं कि महेंद्र मिश्र द्वारा नोट छापने की जानकारी जब अंग्रेजी हुकूमत को हुई तब इस स्थिति से घबरा कर अंग्रेजी हुकूमत ने पंडित महेंद्र मिश्र के यहां गोपीचन्द्र नाम के सीबीआइ अधिकारी को लगा दिया। जो पंडित महेंद्र के यहां काम काज देखता था। लेकिन यह काम इतने गुपचुप तरीके से होता था कि उक्त अधिकारी को भी तीन साल यह पता लगाने में लग गया कि पंडित जी पैसा छापते कब हैं? 1924 में गोपीचन्द्र की निशानदेही पर पंडित जी को गिरफ्तार कर लिया गया और उनके साथ उनका छापाखाना भी बरामद कर लिया गया। जो आज भी सीआइडी के दफ्तर में आज भी सजा कर रखा गया है। इस गिरफ्तारी के वक्त पंडित जी ने एक गाना गया था जो आज भी लोगो के जुबान पर है। हंसी हंसी पनवा खियाइले रे गोपिचन्दवा पिरितिया लगा के भेजवले जेहल खनवां।
महेंद्र अपूर्व रामायण की पाण्डुलिपि का नहीं हुआ प्रकाशन
पंडित मिश्र जिनका भोजपुरी भाषा के उनयन में वही स्थान है जो हिंदी के उनयन में भारतेंदु हरिश्चन्द्र की रचनाओं का है। यह बिडम्बना है कि आज भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में शामिल करने की जद्दोजहद चल रही है वहीं उनका पहला महाकाव्य महेंद्र अपूर्व संगीत रामायण तक को प्रकाशित नहीं कराया जा सका है।
पंडित जी को नहीं मिला कोई सम्मान
स्थानीय लोग में हरीश तिवारी और राजेश कुमार तिवारी उर्फ मुन्ना बाबा सहित कई लोगों का कहना है कि सरकार ने इनकी जयंती को सरकारी कलेंडर में शामिल तो कर लिया पर इनके नाम पर कुछ भी नहीं हो पाया और तो और इन्हें अब तक स्वतन्त्रता सेनानी तक का सम्मान नहीं मिल सका जो काफी दुखद है।

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