पापा को रियल हीरो मानती है मनीषा दयाल

“पापा कहते थे बड़ा नाम करेगा, बेटा हमारा ऐसा बड़ा काम करेगा”
जानी मानी समाज सेविका और एएचआरएफ की सचिव मनीषा दयाल आज कामयाबी की बुलदियों पर है और उन्हें बिहार की आयरन लेडी और युवाओं की प्रेरणाश्रोत माना जाता है। मनीषा का कहना है “मौके मिलते नहीं…. बनाये जाते हैं …..कामयाबी हम तक नहीं आती ….हमें कामयाबी तक जाना होता है।” मनीषा दयाल अपनी सफलता का विजयी मंत्र अपने पिता विजय दयाल को मानती है जिन्होंने उन्हें हर कदम सपोर्ट किया। मनीषा दयाल के नजर में उनके पिता विजय दयाल ही उनके सुपरहीरो हैं।
मनीषा दयाल अपने पिता को याद कर कहती है। घर में सबसे सख्त इंसान, हर बार डांटने वाले, रोक-टोक करने वाले पापा ही होते हैं. जब बचपन में घर वाले पूछते हैं कि पापा पसंद हैं कि मम्मी, तो ज़्यादातर बच्चों के मुंह से मम्मी ही निकलता है क्योंकि मम्मी का लाड-प्यार दिखता है लेकिन पापा की सिर्फ़ डांट। हम बचपने में जिसे लाइफ का विलेन मानते थे, असल में वो हीरो की तरह हमारी सारी इच्छाओं को पूरा करने में जुटे रहते थे. ये वो इंसान है, जो अपने सपनों को किसी संदूक में बंद कर हमारी ख्वाहिशों को पंख देने में जुटा रहता है, और हां, कभी जताता ​भी नहीं। दुनियां में बहुत सी ऐसी बातें होती हैं जो नामुमकिन नज़र आती हैं …. लेकिन अगर इंसान हिम्मत से काम करे और वो सच्चा है ……तो जीत उसी की होती है। मनीषा दयाल बिहार की पावन धरती पर सीसीएल 2 का आयोजन कर रही है जो अबतक तक बिहार का सबसे बड़ा एवेंट माना जा रहा है। मनीषा दयाल ने बताया कि बिहार में सीसीएल 2 जैसे बड़े कार्यक्रम का आयोजन किया जाने से बिहार
की अलग पहचान बनेगी। सीसीएल 2  की परिकल्पना “Say NO to DRUGS” और  “Say NO to DOWRY” को ध्यान में रखकर की गयी है।
बिहार के गया शहर की रहने वाली मनीषा दयाल ने गया शहर से इंटरमीडियट की पढ़ाई की और उसके बाद वर्ष 1995 में राजधानी पटना आ गयी। मनीषा उन दिनों डॉक्टर बनने का सपना देखा करती थी और इसी को देखते हुये उन्होंने मेडिकल में दाखिला ले लिया। हालांकि बाद में किन्ही वजहों वह मेडिकल की आगे की पढ़ाई नही पूरी कर सकी। वर्ष 1996 में मनीषा दयाल की शादी हो गयी और जाने माने बिजनेसमैन जीवन वर्मा की जीवन संगिनी बन गयी।
सपने उन्ही के पूरे होते है, जिनके सपनो मे जान होती है.
पँखो से कुछ नही होता, ऐ मेरे दोस्त!! होसलो से ही तो उड़ान होती है
मनीषा दयाल यदि चाहती तो एक सामान्य शादीशुदा महिला की तरह जिंदगी जी सकती थी लेकिन वह समाज के लिये कुछ करना चाहती थी। मनीषा दयाल ने वर्ष 1996 में बीकॉम में दाखिला ले लिया और इसकी पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने एमबीए फाइनांस की शिक्षा भी हासिल की। मनीषा अपने पति के कदम से कदम मिलाकर चलने लगी और वर्ष 1997 में गारमेंट फैक्ट्री की नीवं रखी। मनीषा कंपनी में फायनांस और मार्केटिंग काम देखने लगी। फैक्ट्री से बने कपड़े बिहार के साथ ही झारखंड और पश्चिम बंगाल में निर्यात किये जाते हैं। वर्ष 2009 में मनीषा दयाल दिल्ली स्थित स्पर्श फाउंडेशन से जुड़ गयी जो नशा मुक्ति की दिशा में काम कर रही है। मनीषा ने कहा कि नशा एक सामाजिक बुराई है और इससे समग्रता से निपटने की जरूरत है। युवा पीढ़ी को नशे के दलदल से बाहर आना चाहिए और इसकी चिंता पूरे समाज को करनी होगी. युवाओं को सोचना होगा कि जिस बुराई को वे खरीद रहे हैं, कहीं उसका पैसा उनके स्वास्थ्य के साथ ही पूरे देश और समाज को भी तबाह तो नहीं कर रहा है।
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ज़िंदगी कैसी है पहेली हाय कभी ये हसाए कभी ये रूलाये…
वर्ष 2011 मनीषा दयाल के जीवन में तूफान आ गया। पिता की अकास्मात मौत ने मनीषा दयाल को अंदर से तोड़ दिया। वह करीब एक साल तक डिप्रेशन में चली गयी। यदि इरादें मजबूत हों तो कोई भी लक्ष्य मुश्किल नहीं होता। जोश और जूनून के साथ हर मंजिल हासिल की जा सकती है। मनीषा एक बार फिर से नयी उमंग के साथ उठ खड़ी हुयी और रेडक्रास और यूनिसेफ जैसी संस्थाओं से जुड़ गयी और महिला सशक्तीकरण और बच्चों की शिक्षा की दिशा में बढ़चढ़कर हिस्सा लेने लगी।
वर्ष 2016 में मनीषा दयाल महिला सशक्तीकरण , वृद्ध आश्रम , बच्चों की शिक्षा , झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाली महिला-बच्चों की मुफ्त चिकित्सा समेत कई सामाजिक काम करने वाली अनुमाया ह्यूमन रिसोर्स फाउंडेशन (एचआरएफ) से जुड़ गयी और सचिव के तौर पर काम करने लगी। मनीषा दयाल पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी काम करना चाहती थी और इसी को देखते हुये उन्होंने वर्ष 2016 में कॉरपोरेट क्रिकेट लीग का आयोजन किया जिसे अभूतपूर्व सफलता मिली। मनीषा दयाल ने बताया कि वह अपने पिता की प्रेरणा मानते हुये ही सामाजिक क्षेत्र से जुड़ी है। उनके पिता के पेट्रोलंपप से आज भी 21 लड़कियों की पढाई की पूरी व्यवस्था की जाती है। उन्होंने बताया कि हर साल कैंसर के दो मरीजों की चिकित्सा की पूरी जिम्मेवारी उनकी संस्था (एचआरएफ) की ओर से की जाती है।
थाम के मेरी नन्ही उंगली , पहला सफ़र आसान बनाया ,हर एक मुश्किल कदम में पापा, तुमको अपने संग ही पाया

मनीषा दयाल अपनी सफलता का पूरा श्रेय अपने पिता को देती है। मनीषा पिता को याद कर भावुक हो जाती है और कहती है।

“थाम के मेरी नन्ही उंगली , पहला सफ़र आसान बनाया ,हर एक मुश्किल कदम में पापा, तुमको अपने संग ही पाया।”
कितना प्यारा बचपन था। जब गोदी में खेला करती। पाकर तुम्हारे स्नेह का साया बड़े-बड़े मैं सपने बुनती, लेकर व्यक्तित्व से तुम्हारे प्रेरणा, देखो आज कुछ बन पाई तुम्हारे हौसले और विश्वास के दम पर एक राह सच्ची मैं चुन पाई।
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