…कहते हैं दावपेंचों की कलाबाजी से सियासी रास्तों पर मुकाम तय होते हैं। कुछ मेहनत और हिम्मत से रास्ते बनाते हैं कुछ चाटुकारिता की परंपरा निभाते हैं। लेकिन अश्विनी चौबे का इतिहास कुछ और ही बयां करता है।केन्द्रीय मंत्रीमंडल में जगह पाने वाले बक्सर से बीजेपी के सांसद अश्विनी चैबे की राजनीतिक राह आसान नहीं रही।
राजनीति के 5 दशकों के लंबे सफर में चैबे ने संघर्ष की तमाम कंटीले-पथरीले रास्तों पर चलकर अपना मुकाम तय किया है। केंद्रीय मंत्रिपरिषद में शामिल किए गए चौबे बिहार के बक्सर से लोकसभा सदस्य हैं। वह 1970 के दशक में जेपी आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल थे। उन्हें आपातकाल के दौरान मीसा के तहत हिरासत में लिया गया था। ‘घर-घर में हो शौचालय का निर्माण, तभी होगा लाडली बिटिया का कन्यादान’ का नारा देने का श्रेय भी चौबे को जाता है। इसके साथ ही, उन्होंने महादलित परिवारों के लिए 11,000 शौचालय बनाने में भी मदद की। मई 2014 के आम चुनाव में 16 वीं लोकसभा के लिए चुने गए। वह ऊर्जा पर संसद की प्राक्लन एवं स्थायी समिति के सदस्य हैं। वह केंद्रीय रेशम बोर्ड के भी सदस्य हैं। भागलपुर के दरियापुर के रहने वाले चौबे बिहार विधानसभा के लिए लगातार पांच बार चुने गए। वह 1995 से 2014 तक बिहार विधानसभा के सदस्य रहे। वह बिहार सरकार में आठ साल तक स्वास्थ्य, शहरी विकास और जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी सहित अहम विभागों के पदभार संभाल चुके हैं। उन्होंने पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष के तौर पर अपने राजनीतिक करियर की शुरूआत की थी।
साभार – देश प्रदेश मीडिया
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