जानिए किस हाल में हैं, जीते-जागते सुपर कंप्यूटर के नाम से मशहूर यह शख्स

डॉ वशिष्ठ नारायण सिंह ने आंइस्टीन के सापेक्ष सिद्धांत को चुनौती दी थी। उनके बारे में मशहूर है कि नासा में अपोलो की लांचिंग से पहले जब 31 कंप्यूटर कुछ समय के लिए बंद हो गए तो कंप्यूटर ठीक होने पर उनका और कंप्यूटर्स का कैलकुलेशन एक था। डॉ वशिष्ठ नारायण सिंह का जन्म 2 अप्रैल 1942 को बिहार के भोजपुर जिला मे बसंतपुर नाम के गाँव मे हुआ। सन् 1962 में उन्होंने नेतरहाट विद्यालय से मैट्रिक किया था और संयुक्त बिहार में टॉपर रहे थे। उसके बाद अागे की पढ़ाई के लिए पटना विज्ञान महाविद्यालय (सायंस कॉलेज) में आये। पटना साइंस कॉलेज में बतौर छात्र ग़लत पढ़ाने पर वह अपने गणित के अध्यापक को टोक देते थे। कॉलेज के प्रिंसिपल को जब पता चला तो उनकी अलग से परीक्षा ली गई, जिसमें उन्होंने सारे अकादमिक रिकार्ड तोड़ दिए। इसी दरम्यान उनकी मुलाकात अमेरिका से पटना आए प्रोफेसर कैली से हुई। उनकी प्रतिभा से प्रभावित हो कर प्रोफेसर कैली ने उन्हे बरकली आ कर शोध करने का निमंत्रण दिया। 1963 मे वे कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय मे शोध के लिए गए। 1969 मे उन्होने कैलीफोर्निया विश्वविघालय मे पी.एच.डी. प्राप्त की। चक्रीय सदिश समष्टि सिद्धांत पर किये गए उनके शोध कार्य ने उन्हे भारत और विश्व मे प्रसिद्ध कर दिया। वहां साइकिल वेक्टर स्पेश थ्योरी पर पीएचडी की और वाशिंगटन विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर बने। अपनी पढाई खत्म करने के बाद कुछ समय के लिए वे कुछ समय के लिए भारत आए, मगर जल्द ही वे अमेरिका वापस चले गए। इस बार उन्होंने वाशिंगटन में गणित के प्रोफेसर के पद पर काम किया। 1972 में भारत वापस लौट गए। उन्होंने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर और भारतीय सांख्यकीय संस्थान, कलकत्ता में काम किया।1973 मे उनका विवाह वन्दना रानी के साथ हुआ। 1974 मे उन्हे मानसिक दौरे आने लगे।लोग कहते हैं कि डॉ वशिष्ठ नारायण सिंह शादी के बाद भी ज्यादातर समय पढ़ाई व शोध में ही बीताते थे। कमरा बंद करके दिन-दिन भर पढ़ते रहना, पत्नी वंदना ने भी तलाक ले लिया। वर्ष 1977 में वशिष्ठ नारायण सिंह मानसिक बीमारी “सीजोफ्रेनिया” से ग्रसित हुए जिसके इलाज के लिए उन्हें रांची के कांके मानसिक अस्पताल में भरती होना पड़ा। 1988 ई. में कांके अस्पताल में सही इलाज के आभाव में बिना किसी को बताए कहीं चले गए। चार वर्षों तक उनका कोई पता नहीं चला। वर्ष 1992 ई. में बिहार के छपरा स्थित डोरीगंज बाजार दयनीय स्थिति में कुछ लोगों ने उन्हें पहचाना। उन्हें फिर उनके परिवार के पास लाया गया। कुछ दिनों तक सरकार ने उनके इलाज की व्यवस्था की, लेकिन उसके बाद कोई ध्यान नहीं दिया गया। वशिष्ठ नारायण सिंह जैसे गणितज्ञ, जिनकी प्रतिभा का लोहा पूरी दुनिया ने माना है, वे आज गुमनामी के अंधेरे में जी रहे हैं। इसे विडम्बना ही कहेंगे कि यह महान गणितज्ञ पिछले कई दशकों से मानसिक बीमारी के शिकार हैं, लेकिन इनका समुचित इलाज नहीं हो पा रहा है। ये आज भी डायरी पर गणित के फार्मूले हल करते रहते हैं। इनसे जुड़े लोगों का कहना है कि अगर इनकी मानसिक स्थिति ठीक रहती तो वे गणित के क्षेत्र में ऐसे फार्मूले विकसित करते, जिनके आधार पर कई नई खोजें संभव होती।

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