पुलिस थाने में आरोपितों को पैरों में हथकड़ी लगाये जाने के मामले में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, नई दिल्ली ने तुरंत एक्शन लिया है और इसकी जाँच की प्रक्रिया शुरू कर दी है।

गौरतलब है कि प्रख्यात मानवाधिकार कार्यकर्ता विशाल रंजन दफ्तुआर ने कल अपराह्न में आयोग के अध्यक्ष को ईमेल भेज कर मानवाधिकार हनन के इस संवेदनशील मामले पर तुरंत हस्तक्षेप का अनुरोध किया था, जिसे स्वीकार करते हुये कारवाई की प्रक्रिया तुरंत शुरु कर दी गई है, और इसका डायरी नम्बर 92105/CR/2019 है।राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की सक्रियता मामले की गंभीरता को दर्शाता है।
मानवाधिकार कार्यकर्ता विशाल रंजन दफ्तुआर ने गया के विष्णुपद थाना में आरोपितों को पैरों में हथकड़ी लगाने के गंभीर मानवाधिकार हनन के मामले को सूबे के सारे थानों से जोड़ कर इस मुद्दे को राज्य स्तरीय बना दिया है।
उन्होंने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से गया मामले पर कारवाई करने के साथ-साथ बिहार के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे तमाम बिना “हाजत” वाले थानों को चिन्हित करने का अनुरोध किया है और यह भी जाँचने की माँग की है कि क्या वहाँ भी आरोपितों को हाथों की बजाय पैरों में हथकड़ी लगाई जाती है ?
श्री दफ्तुआर ने कहा कि “इंसान के सम्मानपूर्वक जीने का प्राकृतिक सोपान है मानवाधिकार।किसी सिविलियन को पैरों में हथकड़ी लगाना दरअसल एक ‘अपमानजनक’ परिस्थितियों से उन्हें गुजारना होता है और यह कुप्रक्रिया ऐसे आरोपितों को जिन्दगी भर का एक गंभीर मानसिक अवसाद का दंश दे देता है।दरअसल एक सामान्य नागरिक की मनोदशा को मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझने की जरूरत है।”गौरतलब है कि पूर्व में एनजीटी के बिहार में बालू रोक मामले में इनके पत्र को सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस जस्टिस टीएस ठाकुर ने जनहित याचिका में बदल दिया था। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी मधेपुरा और गया पुलिस पिटाई मामले में संज्ञान लेते हुये बिहार के चीफ सेक्रेटरी और डीजीपी को सम्मन जारी कर चुका है।
इस मामले में उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार को भी आज सूचित किया है। सीएम के स्तर पर तत्काल उनके ईमेल को होम सेक्रेटरी और डीजीपी को भेज दिया गया है।
उन्होंने कहा कि इस मामले कि राज्य सरकार के स्तर से निष्पक्ष जाँच मुश्किल है।इसलिये एनएचआरसी से शिकायत की है।ताकि आम जनता की आवाज दबे नहीं।
5 सितंबर,2017 को घटित मधेपुरा मानवाधिकार हनन मामले (निर्दोष बच्चों की पिटाई)के अपने अनुभवों को साक्षा करते हुये उन्होंने बताया कि सीएम के स्तर पर कारवाई तुरंत शुरु तो हुई किन्तु बाद के स्तर पर मामले की जाँच मधेपुरा के डीएम और एसपी को ही सौंप दी गई जहाँ घटना घटी थी।बाद में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने सीधे बिहार के चीफ सेक्रटरी और डीजीपी को पहले नोटिस और फिर कड़ा एक्शन लेते हुये सम्मन जारी कर दिया था।बिहार के मुख्यमंत्री को इन कारगुजारियों पर भी ध्यान देना चाहिए।
उन्होंने अपना ईमेल आई डी humanrights.vishal@gmail.com और व्हाट्सएप नंबर 8434443339 जनहित में जारी किया है। पुलिस थानों ऐसे अपमानजनक हालातों को झेल चुके पीड़ित अपनी जानकारी इस पर शेयर कर सकते हैं।
