गया के चार डीएवी स्कूलों के ट्रांसपोर्टरों की अचानक हड़ताल, 10 हजार से ज्यादा बच्चों की पढ़ाई प्रभावित, मानवाधिकार कार्यकर्त्ता विशाल रंजन दफ़्तुआर ने सीएम से लगाई कारवाई की गुहार

गया के चार डीएवी स्कूलों के ट्रांसपोर्टरों की अचानक हड़ताल पर चले गए हैं इस हड़ताल से 10 हजार से ज्यादा बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है मानवाधिकार कार्यकर्त्ता विशाल रंजन दफ़्तुआर ने सीएम को मेल कर इस गंभीर मामले में कारवाई की मांग की है

उन्होंने अपने मेल में स्कूली शिक्षा और विद्यालय मैनेजमेंट पर कई बातों का जिक्र किया है उन्होंने विभिन्न समस्याओं से निपटने के लिए सलाह भी दी है

विशाल रंजन के द्वारा मुख्यमंत्री को लिखा गया पत्र –

माननीय मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार जी,

आशा है आप स्वस्थ-सानंद होंगे।

बच्चे राज्य और देश के भविष्य हैं। इनका पठन-पाठन अगर कोई बाधित करता है तो वो न सिर्फ “राईट टू एजुकेशन” का हनन करता है बल्कि बाल अधिकारों पर भी कुठाराघात करता है और ऐसे किसी भी कुत्सित प्रयास को पूरी सख्ती से कुचलने की आवश्यकता है!
दरअसल आज गया के चार डीएवी स्कूलों के दस हजार से ज्यादा बच्चे ट्रांसपोर्टरों के अचानक हड़ताल पर चले जाने के कारण स्कूल नहीं जा सके? मामले का समाधान कब तक हो पायेगा,यह भविष्य के गर्त में है ?यह अत्यंत गंभीर मामला है ??
इस मामले में प्रथम दृष्टया ट्रांसपोर्टर ही दोषी हैं ? इस बार गर्मी की छुट्टी लगभग 45 दिनों की हो गई थी। इस अवधि में इन्होंने कोई हड़ताल नहीं की !
स्कूल खुलने से ऐन एक दिन पूर्व स्कूल बसों को नहीं चलाने का ऐलान करना एक गंभीर आपराधिक मामला बनता है ? 10 हजार से ज्यादा बच्चों की पढ़ाई बंद है?यह अत्यंत शर्मनाक है और कड़ी कारवाई का विषय भी।इसकी व्यापक जाँच होनी चाहिए। जब स्कूल प्रबंधन का एग्रीमेंट बस मालिकों के साथ हुआ है तो उसमें यूनियन बाजी क्यों?
गया की इस घटना पर त्वरित कारवाई करते हुये राज्य हित में एक व्यापक दिशानिर्देश जारी करें-
1) औसतन प्रत्येक वर्ष स्कूल बस किराया में 100 से 300 की बढ़ोतरी होती है?अगर गया डीएवी की बात करें तो यह 750 से 850 रुपया हो गया।
राज्य स्तर पर सरकार की तरफ से इसकी मोनीटरिंग हो कि ट्रांसपोर्टरों को इसमें से कितना पैसा मिलता है और स्कूल कितना रखता है?
2) ट्रांसपोर्टर जो पैसा लेते हैं उसकी एवज में वो सुरक्षा मानकों और फिटनेस पर भी ध्यान देते हैं!?कई जगहों पर खटारा बस चल रही है? जीपीएस और स्पीड गवर्नर निष्क्रिय हैं? फस्ट ऐड बाक्स और अग्निशमन यंत्र भी नहीं होते?टायर ट्यूब सब पुराने होते हैं जो रिस्की हैं?बस के कागजात अपडेट नहीं होते?
कई जगहों पर ड्राइवर के लाइसेंस नहीं होते!नाबालिग खलासी होता है और कई बार वो अनुपस्थित होता है?ड्रेस कोड का पालन नहीं होता?बच्चों को बस में ठूँँस दिया जाता है?बसें चलते-चलते खराब हो जाती हैं इत्यादि!

इसकी धरपकड़ के लिये राज्य स्तर पर जोरशोर से अभियान चलाया जाना चाहिए?
(Pl Note-कुछ इसी तरह की जाँच स्कूल आटों की भी होनी चाहिए?)

3) ट्रांसपोर्टर को जो पैसा स्कूल बस के संचालन हेतु स्कूल से मिल रहा है उसमें से क्या पर्याप्त पारिश्रमिक बस ड्राइवर और खलासी को मिल रहा है?इसकी भी जाँच होनी चाहिए?

4) किसी भी परिस्थिति में अभिभावकों पर बाद में अतिरिक्त बोझ न डाला जाये क्योंकि अभिभावक नये सेशन में पहले ही बढ़ी हुई फीस को वहन कर अपना बजट असंतुलित कर चुके होते हैं ?

5) स्कूल फीस और बस फीस के निर्धारण हेतु डीएम की निगरानी में एक कमिटी का भी गठन होना चाहिए और इसमें अभिभावकों के अलावा स्कूल मैनेजमेंट और ट्रांसपोर्टरों की सहभागिता भी होनी चाहिए।

6)प्रत्येक स्कूल में अनिवार्य रूप से गार्जियंस कमिटी का गठन होना चाहिए और समय-समय पर स्कूल मैनेजमेंट और ट्रांसपोर्टर (बस के मामले में) के साथ इनकी बैठक होनी चाहिए और उसकी रिपोर्ट डीएम और सरकार को सौंपी जानी चाहिए।
7) बेहतर होगा कि स्कूल मैनेजमेंट विशेषकर बड़े स्कूल ग्रुप ट्रांसपोर्ट की अपनी व्यवस्था करें।
जहाँ पर बड़े वाहन न जा सकें वहां पर छोटे वाहन की व्यवस्था हो।
अगर कोई प्राईवेट बस या आटो अपनी सेवाएं देना चाहे तो स्कूल उसको अंडर टेकिंग करके चलवा सकता है और संचालन के बाद वैसे वाहनों को अपनी कस्डडी में रख सकता है।
प्राय: ऐसा देखा गया है कि प्राईवेट ट्रांसपोर्टर स्कूल अवधि के बाद वैसे वाहनों को अपनी निजी कमाई हेतु अन्यत्र भी चलाते हैं जबकि उनके वाहन पर उस स्कूल का नाम लिखा होता है! ऐसे किसी भी हादसे के बाद वैसे स्कूलों को जनाक्रोश झेलना और सफाई देना पड़ता है?

कृपया तत्काल उचित कारवाई करें।

मंगलकामनाओं के साथ!

सादर,
विशाल रंजन दफ्तुआर,
मानवाधिकार कार्यकर्ता

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