वेव माध्यम की प्रकृति को समझें, एक साथ हो कर स्व-नियमन का मार्ग अपनाएं, क्यों है जरूरी वेब मीडिया स्व-नियमन ? अगर आप स्वयं नहीं करेंगे तो सरकार यानि गृह सचिव या कलक्टर साहेब करेंगे और तब वह स्वस्थ प्रजातंत्र का आखिरी दिन होगा।
हर नागरिक अखबार या टीवी तो चला सकता है लेकिन हर नागरिक की बात जरूरी नहीं की अख़बार या चैनल में जाये
भारत के संविधान में अनुच्छेद 19(1) में हर नागरिक को “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” है। ध्यान रखें कि “हर नागरिक को” के दो मतलब है – पहला, न तो किसी विदेशी को यह अधिकार है ना हीं “केवल मीडिया को”। यहीं पर भारत का संविधान अमरीकी संविधान से अलग है जहाँ संविधान के पहले संशोधन के जरिये हीं मीडिया की आजादी को भविष्य के लिए भी अक्षुण्ण कर दिया गया। प्रिंट या टीवी औपचारिक और मूर्त माध्यम है-यानि एक संगठन होता है, एक दफ्तर होता है जिसके पते पर संगठन का रजिस्ट्रेशन होता है, संगठन का अपना एक जाना-माना संपादक और प्रिंटर होता है और एक मालिक होता है। ये दोनों माध्यम संविधान में वर्णित आठ “युक्तियुक्त निर्बंध” और उनके तहत बनाये गये 37 कानूनों से बंधे होते हैं। लिहाज़ा हर नागरिक अखबार या टीवी तो चला सकता है लेकिन हर नागरिक की बात जरूरी नहीं की अख़बार या चैनल में जाये या जैसी वह चाहे वैसी जाये। कालांतर में ये दोनों माध्यम जन-सरोकारों से दूर होते गए। दिल्ली या मुंबई में बारिश से सड़क जाम गोपालगंज के किसी गाँव के बलात्कार की घटना या आलू के भाव जमीन पर आने से उत्तर प्रदेश के कायमगंज में किसान द्वारा की गयी आत्महत्या पर भारी पड़ने लगा। दिल्ली में निर्भया काण्ड समाज पर एक बदनुमा धब्बा हो गया लेकिन बिहार में सरे आम मोटरसाइकिल से किसी की पत्नी को उठाकर गुंडों द्वारा बगल के खेत में घंटों बलात्कार सिंगल कालम खबर हीं बन पायी। राष्ट्रीय चैनलों के एंकर-संपादकों ने, जो मंदिर के मुद्दे पर किसी दाढी वाले मुल्ला और किसी तिलकधारी महामंडलेश्वर के बीच हाथापाई कराने की स्थिति पैदा करने में मशगूल थे, इस खबर को खबर हीं नहीं समझा। संपादकों की अशिक्षा और तज्जनित अविवेक सरकारों को भी खूब भाती रही।
फर्जी पोर्टल या प्लेटफार्म विकसित कर फर्जी विजुअल्स साइट पर डाल कर साम्प्रदायिक सौहार्द्र बिगाड़ा भी जा सकता है
लिहाज़ा नयी तकनीकि के विकास के साथ वेब मीडिया का प्रादुर्भाव अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का “पूर्ण समाजीकरण कहा जा सकता है। एक सामान्य सा व्यक्ति भी सोशल मीडिया पर अपनी बात अपलोड कर सकता है जो कई बार समाज में स्वस्थ सामूहिक जाक्रिश का कारण भी बन रहा है। लेकिन इसके खतरे भी बढ गए हैं। दुबई में बैठा एक आईएसआई का एजेंट भारत में दंगे करा सकता है। फर्जी पोर्टल या प्लेटफार्म विकसित कर वह फर्जी विजुअल्स साइट पर डाल कर भारत में साम्प्रदायिक सौहार्द्र बिगाड़ सकता है क्योंकि सोशल मीडिया पर क्या अपलोड हो और किन संगठनों द्वारा या कौन सा व्यक्ति यह कर सकता है, सरकार द्वारा इसकी पहचान असम्भव हीं नहीं अव्यावहारिक भी है। चूंकि ज्ञान अब संस्थाओं के भव्य प्रसाद में कुछ हीं लोगों तक महदूद न हो कर सबके लिए “गूगल बाबा” ने सुलभ कर दिया है इसलिए सोशल मीडिया पर रोक लगाने की बात सोचना भी बचकाना है। चीन जैसा देश जिसके राज्य तंतु बेहद मजबूत हैं। भी इसमें असफल रहा।
परखी हुई और जनोपदेय खबरें दे
लिहाज़ा खबरों को इस नए माध्यम के जरिये जन-जन तक विश्वसनीयता के साथ पहुँचना हमारे वेब न्यूज से जुड़े लोगों के लिए आज अस्तित्व का प्रश्न है? याद करें अभी कुछ साल पहले हीं ऐसी हीं तकनीकि के आने के बाद अखबार बहु-संस्करण (उपग्रह -संस्करण) निकालने लगे यानि पूर्णिया की खबर बेगूसराय में नहीं या गोपालगंज की खबर अपने हीं कमिश्नरी मुख्यालय तक नहीं। खबरों को लेकर एक ज़माने में कलक्टर को जो भय रहता था कि कमिश्नर या मुख्यमंत्री या मुख्य-सचिव पढेंगे वह भय जाता रहा और साथ हीं चली गयी खबरों को लेकर जिला संवाददाताओं से लेकर कमिश्नरी मुख्यालय तक के रिपोर्टरों की धमक। वेब मीडिया के आने के बाद आपको एक मौका मिला है – परखी हुई और जनोपदेय खबरें दे कर आप को अपनी प्रोफेशनल गरिमा को एक बार फिर हासिल करने का और अपनी प्रोफेशनल धमक बनाये रखने का। लेकिन यह तभी संभव है जब निहायत सदाशयता, नैतिक और प्रोफेशनल प्रतिबद्धता, और आत्मोत्थान के रूप में इस पवित्र पेशे में आयें और आत्म-नियमन के हर पायदान पर अपने को खरा उतारें. समाज आपका खैरमकदम करेगा, अच्छी सरकार आप को अपना मित्र मानेगी और बुरी है तो आप एक चट्टान की मानिंद एकजुट हो कर उसका मुकाबला करेंगे। हाँ, अगर आप में से एक भी इन मानदंडों से गिरता है तो स्व-नियमन के तहत उसे अपने संगठन में एक क्षण भी बर्दाश्त न करें।
स्व-नियमन का उल्लंघन न हो इसके लिए हमें स्वयं हीं समाज के प्रतिष्ठित वर्ग के लोगों व अपने बीच के संत-तुल्य लोगों का प्राधिकरण बनाना होगा जिसके आदेश की वही मान्यता होगी जो किसी बड़ी से बड़ी अदालत की होती है और वह भी स्वेच्छा से। बिहार इसे राष्ट्रीय आयाम दे सकता है और देश के अन्य भागों में, अन्य व्यवसायों के बीच और समाज के लिए भी यह एक अनुकरणीय उदाहरण हो सकता है।
एन के सिंह वरिष्ठ पत्रकार और ब्रॉडकास्ट एडिटर्स एसोसिएशन के पूर्व महासचिव हैं