क्या सरकार और पुलिस कर रही किसी अनहोनी के होने का इन्तजार ?

(अनुभव की बात, अनुभव के साथ)

उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में हुए ट्विंकल शर्मा की हत्या ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। करीब ढाई साल की बच्ची की निर्मम हत्या ने मानवता को शर्मसार कर रख दिया। ट्विंकल शर्मा के शव के पोस्टमार्टम करने वाले चिकित्सकों के हाथ कांप उठे,आंखों में आंसू आ गए और खून खौल उठा। पोस्टमार्टम की रिपोर्ट बताती है कि मरने से पहले घंटों तक बुरी तरह से मासूम को पीटा गया था। शव में किडनी और यूरिनली ब्लैडर नहीं पाया गया। बच्ची का सीधा हाथ धड़ से अलग था। शव सड़ चुका था और जहां तहां कीड़े पड़ चुके थे। शरीर में जगह जगह खाल उतरी हुई थी। बाएं तरफ छाती के नीचे पसलियाँ दिख रही थी, बाएं घुटने के नीचे फैक्चर था।आंखों के टिशु तक डैमेज हो गए थे।

यह सब सुनकर ही दिल दहल जाता है, दिमाग काम करना बंद कर देता है। आखिर कोई कैसे किसी ढाई साल के मासूम के साथ इतनी हैवानियत कर सकता है ? नहीं,वो हरगिज इंसान नहीं हो सकता। हजारों वर्ष पहले जिन राक्षसों के बारे में हम कहानियां सुनते हैं, वो राक्षस भी यदि आज होते तो इन वहशी दरिंदों की देखकर शरमा जाते। इस घटना ने हमें सोचने पर मजबूर कर दिया है कि हैवान सिर्फ कहानी की किताबों में, कार्टून नेटवर्क और कॉमिक की बुक में नहीं, असलियत में आज भी मौजूद हैं। मासूम बच्ची 30 मई को लापता हो गई थी। परिजनों ने काफी खोजबीन की, परंतु कुछ पता नहीं चला। थक हार कर परिजनों ने पुलिस में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई।परंतु पुलिस से उन्हें कोई सहायता नहीं मिली। समय पर यदि पुलिस हरकत में आ गई होती तो संभव है इस तरह की घटना नहीं हो पाती। 2 जून की सुबह घर के पास ही कूड़े के ढेर पर बच्ची का शव मिला।

ठीक उसी दिन यानि 30 मई को पटना जिला के मोकामा प्रखंड अंतर्गत दरियापुर की रहने वाली 12 वर्षीय बच्ची फौजिया खातून गायब हो गई। फौजिया खातून कक्षा नौ की छात्रा है और वह ईद मनाने अपने नाना के घर पटना,बांसघाट गई हुई थी। 30 मई को वह गांधी मैदान के लिए घर से अकेली निकली। सीसीटीवी फुटेज में गांधी मैदान में उसे टहलते हुए पाया गया है, परंतु निकास द्वार से निकलते हुए वह नहीं देखी गई। परिजनों ने अपने स्तर से काफी खोजबीन की।जब कुछ पता नहीं चला तो उन्होंने अगले दिन 31 मई को बुद्धा कॉलोनी थाने में बच्ची के गायब होने की रिपोर्ट दर्ज करवाई। आज घटना के तेरह दिन गुजर चुके हैं,बच्ची का कुछ भी पता नहीं चल पाया। बच्ची के परिजन पटना की सड़कों पर खाक छान रहे हैं। बार-बार किसी उम्मीद में पुलिस के पास जाते हैं, पूछने पर पुलिस की तरफ से यही जवाब दिया जाता है कि “हमारे पास कोई जादू तंत्र नहीं है, जो हम पता लगा लें, कार्रवाई हो रही है, पता चलने पर बता दिया जाएगा।” परिजन पटना के एसएसपी से मिलकर गुहार लगाने गए परंतु एसएसपी ने उनसे मिलना भी मुनासिब नहीं समझा। बस एक मिनट उनसे मुलाकात कर बढ़ती चली गईं। सामाजिक कार्यकर्ताओं की ओर से इसकी सूचना मुख्यमंत्री कार्यालय को दी गई, जहां से अगले ही दिन इस मामले को डीजीपी को सुपुर्द कर देने की जानकारी मिली। परंतु पुलिस की गम्भीरता देखकर यही लग रहा है कि पुलिस अब तक हरकत में नहीं आई है। सरकार और प्रदेश के पुलिस महानिदेशक प्रदेश में सुशासन का दंभ भरते नहीं थकते हैं। परंतु घटना के तेरह दिन के गुजर जाने के बावजूद बच्ची का न मिलना बिहार पुलिस की कार्यप्रणाली पर उंगली उठाने के लिए काफी है। ऐसा लग रहा है जैसे हमारी सरकार,हमारी पुलिस किसी अनहोनी के होने का इंतजार कर रही है।

पता नहीं वह मासूम किस हाल में होगी ? क्या वह भी किसी वहशी दरिंदे के चंगुल में फंस गई ? हम सबों को उसकी सकुशल घर वापसी के लिए प्रयास करना चाहिए।क्योंकि सरकार और पुलिस के भरोसे तेरह दिन तो गुजर चुके हैं।

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